शक्ति, संयम, साहस यदि अस्तित्व में हो तो जीवन की हर मुश्किलों से जीता जा सकता है, पर व्यक्तित्व में इसे अचानक उतारना सरल नहीं, ऐसे में कोई होता है, जो इंसान को इंसान बनाने की जिम्मेदारी जन्म से ही लेता है। ये कोई और नहीं घर के किसी कोने छिपी, वो देवी होती है, जो कभी स्कूल, दफ्तर के टिफिन में हमें बड़े ही स्नेह से शक्ति से भरा भोजन पकाकर देती है। तो कभी वो सारे रास्ते बंद होने पर भी संयम रखने का ढंढास देती है, तो कभी असतो मा सद्मय, तमसो मा ज्योतिर्गमय के मंत्र की तरह साहस देती है। इनके कई रुप है,जो हमारे आसपास ही घूमते रहते हैं। हम पास हो या, दूर इनकी दी सीख हमेशा हमारे व्यवहार, संस्कार, आचरण में नजर आती है।
सलीके से सजे घर के कोने में, रसोई से आ रही महकती खूशबु में,फोन मैसेज के स्माइली इमोजी में ,घर के रखे अचार– मुरब्बों में, तपती धूप में बने चिप्स पापड़ में, किसी की डांट से बचाने में, अलमारी में छिपे बचत पैसों में, जींस के साथ माथे पर सजी बिंदी में वो देवियां हर जगह रहती हैं।
वैसे तो भगवान ने इन्हें दो हाथ दिए है, पर ये 10 हाथों का काम करने का हुनर रखती हैं। इतना कुछ करने की ताकत रखने वाली महिलाओं को देवी कहा जाना गलत नहीं है। घर के साथ दफ्तर, बिजनेस, चांद पर पहुंचने से लेकर ऊंचे आकाश में प्लेन उड़ाने की ताकत है महिला के पास। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें महिला एक्सपर्ट् ना हो।
सभी को नमन करते हुए, एक पहल ऐसी जिसमें हर महिला खुद को देवी समझे, वो अपने इस हुनर को पहचाने की वो हर घर को हर जिंदगी को खुशहाल बना सकती है। जिस तरह ईश्वर ने सिर्फ उसे कोख दी है, एक जीवन को जन्म देने के लिए। उसी तरह नारी को ये ताकत भी दी है, की वो खुद के साथ सभी की जिम्मेदारी लें, बेहतर भविष्य के निर्माण में नारी का ही हाथ छुपा होता है।