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Women’s Day Special : सक्सेसफुल होते हुए भी चैलेंज से भरी लाइफ, महिलाओं की कहानी उन्हीं की जुबानी

देश के विकास में हर व्यक्ति की भागदारी जरुरी है, फिर चाहे वो स्त्री हो या पुरुष। विकास की राह (Women’s Day Special) में भेदभाव को खत्म करते हुए आज की महिला हर क्षेत्र में अपनी भागदारी निभा रही है। आज के समय में महिला की पहचान सिर्फ “ब्यूटी विथ ब्रेन” नहीं बल्कि “ज्ञान से सुज्जित मस्तिष्क” के रुप में भी होती है।

ईश्वर ने भी महिला को इतना सक्षम बनाया है की वो घर और बाहर दोनों जगह बैलेंस करना जानती है। नारी होना अपने आप में एक खास अहसास है। वो बेहतर बेटी, बहन, पत्नी, बहू और मां, मासी, चाची, मामी, भाभी और सास है। इन सभी रिश्तों को लेकर जब वो घर के बाहर निकलती है तो, वो अपनी एक अलग पहचान बनाती है। जहां वो डॉक्टर, टीचर, इंजीनियर, बिजनेस वुमेन जैसे कई पदों को अपने दम पर सम्हालती है।

हर साल 8 मार्च को हम विश्व महिला दिवस (Women’s Day Special) मनाते हैं। महिलाओं की तरक्की की बात करते हैं पर उनके सामने आने वाले चैलेंज के बारे में कोई बात नहीं करता है। गृहणी हो या कामकाजी महिला दोनों को ही आज भी कई परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। सफलता की कीमत मेहनत से आंकी जाती है। पर एक महिला को मेहनत के साथ एक्स्ट्रा एफर्ट लगाना पड़ता है।

Women's Day Special

क्या हैं वो प्रॉब्लम जो महिला होने के नाते उन्हें फेस करने को मिलती हैं। जानते हैं, आज महिला दिवस पर महिला की  ही जुबानी। समाज की कुछ बेहतरीन और कामयाब महिलाओं से हमें बताया की वर्किंग हो या गृहणी। सभी को आज भी अपने आप को साबित करने के लिए लड़ना पड़ रहा है।

शिल्पा परसाई (अपराजिता फाउंडेशन मध्यप्रदेश प्रमुख)

Head Aparajita Foundation (CG)

एक महिला जो की गृहणी होने के साथ-साथ किसी संस्थान में कार्यरत है, वह आत्मनिर्भर तो है लेकिन वह हर जगह जिम्मेदार नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हैं और हो रही हैं तो वे सिर्फ अपनी ही जरुरतों और इच्छाओं की पूर्ति न करें। बल्कि अपने घर और समाज की जिम्मेदारी भी उठाएं। क्योंकि जब महिला आर्थिक रुप से सभी की जिम्मेदारी उठाती हैं तो उन्हें सामाजिक सम्मान की प्राप्ति होती है।

यह सभी महिलाओं पर लागू नहीं होता है यहां हमें इस बात को भी समझना होगा। यदि आवश्यकता नहीं हो तो महिला को आर्थिक रुप से मजबूत होने की जरुरत नहीं है। महिलाओं को घर परिवार के अनुरूप और अपनी शारीरिक क्षमताओं के अनुरूप आर्थिक गतिविधि को चुनना चाहिए। ना की प्रतिस्पर्धात्मक तौर पर आर्थिक रूप से सक्षम होने की दौड़ में शामिल होना चाहिए। (Women’s Day Special)

रश्मि शर्मा (गृहणी)(Women’s Day Special) 

मैं एक गृहणी हूं जिसे आज के समय में एक होममेकर के नाम से जाना जाता है। मेरी दुनिया पति और बच्चे हैं। उनकी सफलता और उनकी तरक्की सब मुझे अपनी सी लगती है। मैं एक खुशमिजाज महिला हूं, जिसका पूरा समय घर को बनाने में बित जाता है। मुझे किसी बात की कोई कमी नहीं है। पर मेरे आसपास ऐसे कई लोग हैं जिन्हें अक्सर यह कहते सुना है की तुम करती ही क्या हो?

ये बात कहने वाले लोगों में कई पुरुष शामिल हैं, कुछ रिश्तेदार, कुछ दोस्त तो कुछ महिलाएं खुद। मैं चाहती हूं कि समाज गृहणी के काम को सम्मान की नज़रों से देखा जाएं। मैंने खुद इसकी शुरुआत कर दी है, मैं अपनी बेटी और बेटे दोनों को घर के जरुरी काम सीखाती हूं। खाना बनाना, घर साफ करना ये सिर्फ महिला का काम नहीं बल्कि ये हर इंसान की बेसिक जरुरत होना चाहिए। (Women’s Day Special)

ममता जगतपाल (सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट)

International Women's Day

शिक्षा ,जागरूकता,आत्मनिर्भरता महिलाओं के लिए बहुत आवश्यक है। महिलाएं सभी का ख्याल रखती है, किन्तु अपने स्वास्थ पर ध्यान नहीं देती है। आज भी सभी वर्ग की महिलाओं में खून की कमी,कुपोषण इत्यादि समस्याएं है। महिलाओं को अपने स्वास्थ के प्रति सजग होना चाहिए। उन्हें इस बात का ध्यान जरुर रखना चाहिए की वे स्वस्थ्य रहेंगी तभी परिवार स्वस्थ्य रहेगा। (Women’s Day Special)

मंजरी खरे (सीनियर राइटर) 

Women's Day

मैं एक वर्किंग वूमेन हूं और एक बच्ची की मां भी। एक महिला के रुप में हाल ही में मैने एक सबसे बड़ी प्रॉब्लम को फील किया है । जब में प्रेग्नेंट हुई तो सभी की तरफ से मुझे ये सलाह मिली की, इस दौरान क्या करना चाहिए ? और क्या खाना चाहिए ? बच्चे का कैसे ध्यान रखना चाहिए? या बच्चे के लिए क्या सही और गलत है।

पर किसी ने भी मां के विषय में बात नहीं की। बच्चे के जन्म के साथ एक औरत का भी नया जन्म होता है। जहां उसे कई सारे नए बदलाव से गुज़रना पड़ता है। मां को अपना टाइम, अपनी खुशियों को छोड़कर सिर्फ उस नन्हीं से जान के बारे में सोचना पड़ता है। (Women’s Day Special)

मां भी अपने बच्चे की दुनिया में खो जाती है पर उसके अंदर एक खालीपन बसता ही जाता है। खालीपन नौकरी छोड़ने का, खालीपन दोस्तों का, खालीपन अपने शरीरिक बदलावों का, खालीपन अपनों से बात नहीं कर पाने का। इन बदलाव की सूची इतनी लंबी है की बताना मुश्किल है। पर इन पर चर्चा जरुरी है। क्योंकि यही आगे जाकर तनाव की वजह बनते हैं जिसे हम Postpartum Depression के नाम से जानते हैं। जरुरी है की एक गर्भवती महिला को इन सभी बदलावों से भी अवगत कराया जाए, ताकि वो और मजबूत हो जाएं।

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