PM मोदी ने बढ़ाई चीन की टेंशन, Sela Tunnel से मिलेगी आल वेदर कनेक्टिविटी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में सेला टनल (Sela Tunnel) को आम जनता के लिए चालू कर दिया। इसे दुनिया की सबसे लंबी डबल लेन टनल (Sela Tunnel) बताया जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश और असम को जोड़ने वाली यह टनल भारतीय सेना के तेज मूवमेंट के काम आएगी।

क्यों भारतीय सेना की रणनीति का हिस्सा है सेला ?Sela Tunnel

तवांग को असम के तेजपुर के कामेंग इलाके से जोड़ने वाली इस डबल लेन टनल से अब अरुणाचल प्रदेश में 12 महीने आवाजाही हो सकेगी। जिससे किसी भी मौसम में भारतीय सेना आसानी से चीन सीमा तक पहुंच पाएगी।

महज 5 साल में बनकर तैयार हुई इस टनल (Sela Tunnel) को पूर्वी सेक्टर में भारतीय सीमा की सुरक्षा के लिहाज से सामरिक अहमियत वाला माना जा रहा है।

हाई अलटीटुडे पर बनी है सेला सुरंग (Sela Tunnel)

High Altitude Double Tube Tunnel

सेला टनल को हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को समर्पित किया है। अरुणाचल प्रदेश के हिमालयी इलाके में स्थित है और इसका निर्माण समुद्र तल से लगभग 13,000 फुट की ऊंचाई पर किया गया है। इस महत्वपूर्ण टनल का निर्माण सीमा सड़क सुरक्षा संगठन (BRO) ने किया है।

यह टनल असम में स्थित सेना के 4 कोर मुख्यालयों को अरुणाचल के तवांग इलाके से जोड़ने का कार्य करेगी। जिससे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में सेना और भारी हथियारों के डिप्लॉयमेंट में सुधार होगा। जो राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती प्रदान करेगा।

5 साल में बनकर तैयार हुई सेला (Sela Tunnel) सुरंग

BRO achievement

इस सेला टनल की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2019 में रखी थी और महज 5 सालों में इस टनल का निर्माण हो गया। इस महत्वपूर्ण परियोजना के निर्माण में करीब 825 करोड़ रुपये की लागत आयी है।

सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organization) ने इसे अपने बनाए सबसे चैलेंजिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कैटेगरी में रखा है।

एक अत्यंत जटिल क्षेत्र में होने के कारण इस टनल को तैयार करने में बहुत ही तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सेला टनल का चालू होना अरुणाचल प्रदेश के विकास और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

सेला टनल के अंदर बनाई गई हैं दो ट्यूब

Double Tube Tunnel

सेला टनल, एक डबल लेन वाली सुरंग है जिसमें दो अलग-अलग ट्यूब्स हैं। पहली T1 ट्यूब की लंबाई 1,595 मीटर है, जबकि दूसरी T2 ट्यूब करीब 1,003 मीटर लंबी है।

इस डिजाइन का मुख्य उद्देश्य एक टनल के किसी प्राकृतिक आपदा के कारण बंद होने की स्थिति में दूसरे ट्यूब के माध्यम से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने की सुनिश्चितता बनाए रखना है।

टनल का डिजाइन यह सुनिश्चित करता है कि इस टनल का उपयोग विभिन्न परिस्थितियों में सुरक्षित रूप से हो सकता है और आपदा के समय त्वरित रेस्क्यू ऑपरेशन की संभावना भी बनी रहे।

चीन नहीं रख पाएगा भारतीय सेना पर नजर

galwan vally clash

अरुणाचल प्रदेश में अब तक भारतीय सेना सेला दर्रे से आवाजाही करती थी। सेला दर्रे से भारतीय सेना के मूवमेंट को चीन अपनी सीमा के अंदर से निगरानी में रख सकता था। लेकिन सेला सुरंग से, अब चीन के लिए यह अडवांटेज समाप्त हो गया है। इससे भारतीय सेना को अपनी सीमा क्षेत्र में सुरक्षित और स्वतंत्र रूप से संचालन करने में मदद मिलेगी।

आपको बता दें कि साल 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान वैली में भारत-चीन सेना के बीच हुई झड़प के बाद से, चीनी सेना ने भारत से सटी 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा पर लगातार तनाव बनाए रखा है।

कई बार चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुसपैठ कर चुके हैं। इसलिए भारतीय सेना को चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अपने संचालन में तेजी दिखाने की जरूरत थी, और इसके लिए सेला सुरंग का निर्माण तेजी से किया गया है।