समुद्र तट पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग दर्शन से मोक्ष की होती है प्राप्ति

तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है रामेश्वरम (Rameswaram) मंदिर। यह हिंदूओं का एक पवित्र मंदिर है, जो चार धामों में से एक माना जाता है। इसे रामनाथ स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। जिस तरह से उत्तर भारत में काशी का महत्व है, ठीक उसी तरह दक्षिण भारत में रामेश्वरम का भी महत्व है।

 पानी से घिरा प्राकृतिक सौंदर्य 

Rameswaram

हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा है एवं शंख के आकार का द्वीप है,रामेश्वरम। सदियों पहले यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था लेकिन धीरे-धीरे सागर की तेज लहरों से कटकर यह अलग हो गया। जिससे यह टापू चारों तरफ से पानी से घिर गया। एक जर्मन इंजीनियर ने रामेश्वरम (Rameswaram) को जोड़ने के लिए एक पुल का निर्माण किया।

मंदिर से जुड़ी कई प्रचलित कथाएं 

Rameswaram
rameshwaram

हर मंदिर से जुड़ी एक कथा होती है, ऐसी की कहानी है रामेश्वरम मंदिर की। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने श्रीलंका से लौटते समय देवों के देव महादेव (Lord Shiva) की इसी स्थान पर पूजा की थी। इन्हीं के नाम पर रामेश्वर मंदिर और रामेश्वर द्वीप का नाम पड़ा।

स्वंय माता सीता ने बनाएं शिवलिंग (Rameswaram)

Rameswaram
Rameswaram

रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने माता सीता के साथ रामेश्वरम (Rameswaram) तट पर पहुंचे थे। एक ब्राह्मण को मारने के दोष को खत्म करने के लिए वें शिव की पूजा करना चाहते थे। चूंकि द्वीप में कोई मंदिर नहीं था। इसलिए भगवान शिव की मूर्ति लाने के लिए श्री हनुमान जी को कैलाश पर्वत भेजा गया था।

जब हनुमान समय पर शिवलिंग लेकर नहीं पहुंचे तब, माता सीता ने रेत से शिवलिंग बनाया। भगवान ने शिवलिंग से पूजा की। बाद में हनुमान जी के लाएं गए शिवलिंग को भी वहीं स्थापित किया गया।

कई बार हुआ निर्माण

Rameswaram
rameshwaram temple

बता दें कि 15वीं शताब्दी में राजा उडैयान सेतुपति एवं नागूर निवासी वैश्य ने भी यहां (Rameswaram) निर्माण करवा। फिर सोलहवीं शताब्दी में मंदिर के दक्षिणी में दूसरे हिस्से की दीवार का निर्माण तिरुमलय सेतुपति ने कराया। मंदिर के द्वार पर ही तिरुमलय एवं इनके पुत्र की मूर्ति विराजमान है।

सत्रहवीं शताब्दी में भी हुआ निर्माण (Rameswaram)

हालांकि सोलहवीं शताब्दी में मदुरै के राजा विश्वनाथ नायक के एक अधीनस्थ राजा उडैयन सेतुपति कट्टत्तेश्वर ने नंदी मण्डप का निर्माण करवाया था। माना जाता है कि वर्तमान समय में रामेश्वरम मंदिर (Rameswaram) जिस रुप में मौजूद है, उसका निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में कराया गया था। जानकारों के अनुसार राजा किजहावन सेठुपति या रघुनाथ किलावन ने इस मंदिर के निर्माण कार्य की आज्ञा दी थी। मंदिर के निर्माण में सेठुपति साम्राज्य के जफ्फना राजा का योगदान महत्वपूर्ण रहा है।

 मंदिर के बारे में रोचक तथ्य
  1. इसका क्षेत्र (Rameswaram) एक हजार फुट लंबा और 650 फुट चौड़ा है।
  2. मंदिर के निर्माण में लगे पत्थरों को श्रीलंका और नावों से लाया गया।
  3.  यहांं विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। यह उत्तर-दक्षिणमें 197 मीटर एवं पूर्व-पश्चिम 133 मीटर है।
  4. मान्यताओं के अनुसार सभी कुओं को भगवान राम ने अपने अमोघ बाणों से तैयार करवाया। उन्होंने इन कुओं में कई तीर्थों का जल छोड़ा था।ज्योतिर्लिंग पर पूरी श्रद्धा से गंगाजल चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  5. मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग की विधि विधान से पूजा करने से व्यक्ति ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है।
  6. इस मंदिर के अंदर 22 तीर्थ हैं, जो अपने आप में प्रसिद्ध हैं।
  7. मंदिर को अग्नि तीर्थं नाम से जाना जाता है।