Thursday, September 19, 2024
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विश्व साड़ी दिवस: जानिए इस परिधान को करीब से..

कोई भी खास दिन हो या शुभ मंगल कार्य हो, तो नारी की परिधान में सबसे पहली पसंद होती है साड़ी। हां, समय के साथ आज साड़ी को कैरी करना थोड़ा मुश्किल हो गया है, पर फिर भी विशेष दिन में इसे पहनना ही नारी की पहली पसंद होती है। साड़ी के महत्व और उसकी खूबसूरती को दर्शाने के लिए हर वर्ष 21 दिसंबर को विश्व साड़ी दिवस के रुप में निश्चित किया गया है। इस वस्त्र कि कई सारी वैरायटी हमारे देश में देखने को मिलती है, हर राज्य की अपनी एक अलग कारीगरी है। तो जानते है आज इस विशेष परिधान को थोड़ा करीब से…

बनारसी साड़ी

विवाह और शुभ अवसरों में पहनी जाने वाली बनारसी साड़ी हर महिला की पहली पसंद होती है। सभी महिलाओं की अलमारी में एक बनारसी साड़ी होती ही होती है। ये साड़ियां उत्तर प्रदेश के चंदौली, बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर में तैयार की जाती है। इन साड़ियों को बनाने के लिए कच्चा माल बनारस से आता है। रेशम की साड़ियों पर बनारस की बुनाई, जरी के साथ डिजाइन की जाती है। एक समय इसमें शुद्ध सोने की जरी का प्रयोग भी किया जाता था, जिस वजह से इनकी कीमत भी अधिक होती थी। इसमें तैयार किए जाने वाले नमूनों को मोटिफ कहा जाता है। आज कई तरह के मोटिफ चलन में है, पर परम्परागत मोटिफ में बूटी, बूटा, कोनिया, बेल, जाल, जंगला और झालर है। इन साड़ियों में हर उम्र की लड़कियां और महिलाएं बेहद ही सुंदर लगती है।

कांजीवरम साड़ियां

ये साड़ियां भारत के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में बनाई जाती है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस साड़ियों के बुनकरों को महर्षि मार्कण्डेय जी का वंशज माना गया है। जो कमल के फूल के रेशों से खुद देवताओं के लिए बुनाई किया करते थे। सिल्क साड़ियों का प्रमुख उत्पादन केंद्र होने कि वजह से कांचीपुरम को सिल्क सिटी के नाम से भी जाना जाता है। कांचीवरम की साड़ियां भारत सरकार से भौगोलिक उपदर्शक का स्टेटस भी प्राप्त कर चुकी है। इन्हे तैयार करने के लिए मलबरी सिल्क का प्रयोग किया जाता है, और हाथों की बुनाई कि जाती है इनपर । इसे कोरवई तकनीक कहा जाता है। इस साड़ियों की चौड़ाई अधिक होती है, आम साड़ियों की चौड़ाई 45 इंच होती है, पर कांचीवरम कि 48 इंच रखी जाती है। इनमें ज्यादातर सूर्य, चन्द्रमा, मोर, हंस, रथ एवं मंदिर के चित्रों को बनाया जाता है।

चंदेरी

इस साड़ियों का इतिहास वेदिक युग में मिलता है, जानकारों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल ने इसकी खोज की थी। मध्यप्रदेश के चंदेरी में इस साड़ियों को तैयार किया जाता है। ये तीन तरह के फैब्रिक्स में तैयार की जाती है, प्योर सिल्क, चंदेरी कॉटन और सिल्क कॉटन में। भारत सरकार ने चंदेरी फैब्रिक को एमपी के ज्योग्रफिक इंडिकेशन से प्रोटेक्ट किया हुआ है। इस साड़ियों में नलफर्मा, इंडीदार, चटाई, जंगला और मेहंदी वाले हाथ जैसी डिजाइन पॉपुलर है।

महेश्वरी

इन साड़ियों का इतिहास लगभग 250 साल पुराना है, होल्कर वंश की महान शासक देवी अहिल्याबाई होल्कर ने महेश्वर में सन् 1767 में कुटीर उद्योग स्थापित करवाया था। गुजरात और भारत के अन्य शहरों से कारीगरों के परिवारों को अहिल्याबाई होल्कर ने एकत्रित कर मध्यप्रदेश के महेश्वर में बसाया, उन्हें घर व्यापार आदि की सुविधाएं प्रदान की तभी से इन साड़ियों का कारोबार चल रहा है। चटकीले रंग और धारीदार या चेकमुना बॉर्डर इन साड़ियों की प्रमुख डिजाइन है। इन साड़ियों को बुनने के लिए 300 काउंट का अत्यंत बारीक सूत इस्तेमाल किया जाता है।

पोचमपल्ली

दक्षिण भारत ये साड़ियां बहुत ही सुंदर होती है, इन्हें पोचमपल्ली इकत के नाम से भी जाना जाता है। ये बहुत ही मुलायम होती है, इनमें इस्तेमाल होने वाला कपड़ा कपिस, सिल्क और सिको होता है। पोचमपल्ली इकत की विशिष्टता अक्षरों का उपयोग करके अत्यधिक जटिल डिजाइन बनाने की क्षमता है। इनमें धागों का प्रयोग कर पहाड़नुमा आकृतियां बनाई जाती है। तेलंगाना राज्य में हैदराबाद से 40 किमी दूर पोचमपल्ली गांव में हरकघा से जुड़े बहुत से समूह है, जिनका मुख्य कार्य इन साड़ियों को तैयार करना है।

पैठणी

महाराष्ट्र की मुख्य साड़ी है पैठणी। इसकी उत्पति औरंगाबाद में पैठण नामक छोटे से शहर से हुई। ये तीन प्रकार के रेशम से तैयार की जाती है, जिनमें सिडल गट्टा सिल्क, चाइना सिल्क और चारका सिल्क शामिल है। इस साड़ियों में मोर, तोते ज्यादातर बने होते है, पत्तियां और तोते के रंग हमेशा हरे होते है। ये साड़ियां महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है।

हर राज्य कि अपनी एक विशेष साड़ी है, जो है तो रंग और डिजाइन में अलग, पर असल में ये सभी एक ही है, एक बिना सिला हुआ लंबा वस्त्र। जो नारी की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। कहने के लिए 21 दिसम्बर को विश्व साड़ी दिवस के रुप निर्धारित किया गया है, पर भारतीय नारी के लिए हर दिन साड़ी दिवस है। जब भी वो अपने आप को सुंदर छबि में देखती है, तो आज भी परिधान साड़ी ही होता है।

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