ओपेनहाइमर: भागवत गीता से प्रेरित वैज्ञानिक जिसने बदली द्वितीय विश्वयुद्ध दिशा

इन दिनों हॉलीवुड की फिल्म ओपेनहाइमर (Oppenheimer) काफी चर्चा में है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक फिजिसिस्ट और साइंटिस्ट ओपेनहाइमर (Oppenheimer) ने परमाणु बम बनाया। उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिका के लिए प्रोजेक्ट मैनहट्टन के तहत पहले परमाणु बम को बनाया। जब न्यू मैक्सिको में ट्रिनिटी टेस्ट हुआ और इनकी टीम ने पहला परमाणु परीक्षण किया तो जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर (Oppenheimer) मुंह से भगवद गीता का एक श्लोक निकल पड़ा था।

दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद् भासस्तस्य महात्मनः॥12॥

आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय होने से जो प्रकाश उत्पन्न होगा। वह भी उस विश्वरूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश कदाचित् ही हो।

ओपेनहाइमर (Oppenheimer) ने बदला वर्ल्ड वॉर-2 का नतीजा

Oppenheimer

ध्यान देने की बात ये है कि ये वही जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर हैं, जिन्हें दुनिया परमाणु बम का जनक मानती है। ध्यान देने की बात ये है किएटम बम के धमाके के साथ ही वर्ल्ड वॉर-2 में जापान की हार सुनिश्चित हुई। जापान के हारते ही जर्मन सेना ने भी हथियार डालने शुरू किये।

भागवत गीता से प्रेरणा लेते थे ओपेनहाइमर (Oppenheimer)

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6 अगस्त 1945 को अमेरिकी सेना ने पर्ल हार्बर का बदला लेने के लिए जापान के हिरोशिमा एटम बम गिराया था। हिरोशिमा पर गिराये गए इस बम ने पूरी दुनिया को एटम बम की ताक़त के रुबारु कराया। इस बम के धमाके में पूरा का पूरा शहर बरबाद हो गया। इस बम के निशान आज भी हिरोशिमा में दिखाई देते हैं।

गौरतलब है कि जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर हमेशा अपने साथ भागवत गीता रखते थे। गीता के श्लोकों को पढ़ते हुए ही उन्होंने एटम बम का आविष्कार किया। हिरोशिमा की तबाही देख उन्होंने भागवत गीता का एक श्लोक कहा था-

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।…॥32॥

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – मैं लोकों का नाश करने वाला प्रवृद्ध काल हूँ। इस समय, मैं इन लोकों का संहार करने में प्रवृत्त हूँ।

नागासाकी ने बदला नजरिया 

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हिरोशिमा की तबाही के बाद ओपेनहाइमर नागासाकी पर हुए परमाणु हमले से काफ़ी दुखी थे। उन्होंने राष्ट्रपति हेनरी ट्रुमैन से मिले, और उनसे आग्रह किया कि परमाणु हथियारों को आगे युद्ध के इस्तेमाल में ना लाया जाए। हैरत की बात ये है कि उन्होंने हाइड्रोजन बम बनाए जाने का भी भरपूर विरोध किया। ओपनहाइमर न्यूक्लियर प्रोग्राम से भी अलग हो गए।

इसका नतीजा हुआ कि सरकार ने उनके कम्युनिस्ट पार्टी से उनके पुराने रिश्तों का हवाला देकर उनका सुरक्षा क्लीयरेंस छीन लिया। उन्होंने अपनी ज़िंदगी के आख़िरी साल यूनिवर्सिटी में रहकर बिताए। इस दौरान जब भी उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने न्यूक्लियर बम का हिस्सा बनकर कोई गलती तो नहीं की। तब उन्होंने एक ही जवाब दिया-

“विज्ञान यही सीखने का नाम है कि कैसे एक गलती बार-बार न की जाए”