Maa Kushmanda – नवरात्र के चौथे दिन देवी मां को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा माता ने अंड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा के नाम से पुकारा जाता है। माता कुश्मांडा (Maa Kushmanda) का नाम सुनते ही मन में एक अद्भुत शक्ति और ऊर्जा का अनुभव होता है। वे देवी दुर्गा के चौथे रूप के रूप में जानी जाती हैं और उन्हें समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। इस कारण इन्हें आदिस्वरूपा या आदिशक्ति भी कहा गया है। देवी कुष्मांडा (Maa Kushmanda) के आठ हाथ हैं और इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने की सारी शक्ति माँ कुष्मांडा की जप माला में निहित है।
माँ कुष्मांडा (Maa Kushmanda) की कथा
माता कुष्मांडा की कहानी का संबंध सृष्टि के आरंभ से है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब संपूर्ण ब्रह्मांड केवल अंधकार में लिपटा हुआ था । किसी भी प्रकार का जीवन नहीं था। तब एक विस्फोट के साथ एक प्रकाश की एक आकृति का अवतरण हुआ। ये आकृति थी माँ कुष्मांडा की। उनके अद्वितीय स्वरूप और शक्तियों के माध्यम से उन्होंने सृष्टि का निर्माण किया। 10 करोड़ महिलाओं को मिला Profit
कहानी के अनुसार, जब सृष्टि के आरंभ में कोई भी जीव नहीं था, तब माता कुष्मांडा (Maa Kushmanda) ने अपनी दिव्य ऊर्जा से सृष्टि का अंडा यानि ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। उन्होंने इस अंडे को अपनी शक्ति से सजाया और ब्रह्मांड को आकार दिया। इस प्रक्रिया में उन्होंने अपने तेज से सभी ग्रहों, तारों और अन्य आकाशीय पिंड का निर्माण किया।
कुष्मांडा (Maa Kushmanda) शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है ‘कु’ जिसका अर्थ है ‘छोटा’। दूसरे शब्द का अर्थ है उष्मा यानि गर्मी और तीसरा शब्द है अंडा। ‘अंडा’ जिसे जीवन का कारक माना गया है। इस परिपेक्ष में माता कुष्मांडा को ही सृष्टि की सृजनकर्ता माना जाता है। 10 करोड़ महिलाओं को मिला Profit
माँ कुष्मांडा का स्वरुप
माता कुष्मांडा को सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। इनकी आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए भी इन्हें कुष्मांडा कहा जाता है।
इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।
नीले फूलों से करें माता कुष्मांडा की पूजा
माता कुष्मांडा को विशेष रूप से संतुलन और आंतरिक शांति की देवी माना जाता है। उनका पूजन करने से न केवल भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि मानसिक और आत्मिक विकास भी होता है। भक्तों का मानना है कि माता कुष्मांडा सभी दुखों और बाधाओं को दूर करने में समर्थ हैं।
चौथे दिन, भक्त श्रद्धा पूर्वक माता कुश्मांडा की पूजा करते हैं। इस दिन विशेष रूप से नीले फूलों, कद्दू की सब्जी, और मीठे पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है। भक्त जन प्रार्थना करते हैं कि माता उनके जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा भरें। इस दिन उपवास भी रखा जाता है, जिससे मन और शरीर को शुद्ध किया जा सके।