Friday, September 20, 2024
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क्या है कावड़ यात्रा का महत्व और किसने शुरु की ये परम्परा..

बम-बम भोले करता कावड़ियों का जत्था सड़कों पर नज़र आने लगा है, सावन माह शुरु होते ही ये सुंदर दृश्य हर तरफ दिखाई देता है। जितना प्रेम भक्तों को अपने शिव है, उससे अधिक भगवान को अपने भक्तों से स्नेह है। यही वजह है की अपनी पीठ पर 200 लीटर जल लिए कावड़िए कई मीलों की दूरी पार करते चले जाते हैं। पुराणों में इस यात्रा से जुड़ी कई रोचक कथाएं, जिनमें से शिव भक्त रावण की कथा अहम मानी जाती हैं..

समुद्र मंथन के दौरान जो विष समुद्र से निकला था, उससे धरती का विनाश हो सकता था। भगवान शिव ने इसे खुद पी लिया और अपनी योग शक्ति से उसे अपने कंठ में ही रोक लिया। भगवान शिव की ये कृपा ही थी ,नहीं तो मानव  इस विष के विनाशकारी प्रभाव को झेल ना पाता।

shiv abhishek

शिव ने विष को अपने कंठ में धारण तो कर लिया। लेकिन उस विष का प्रभाव भगवान शिव पर होने लगा। वह नकारात्मक ऊर्जा से ग्रस्त होने लगे। जब यह बात भगवान शिव के परम भक्त रावण को पता चली तो वह उन्हें इस प्रकोप से मुक्त कराने का प्रण लेकर चल पड़ा। लंका से रावण उत्तर भारत पहुंचा। उसने तप करने के बाद गंगा के जल से पुरा-महादेव मंदिर में शिव का अभिषेक किया। यह मंदिर आज के उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित है।

 Lord Shiva
Lord Shiva

रावण कई वर्षों तक उत्तर प्रदेश के इस पुरा-महादेव मंदिर में गंगा जल से शिव का अभिषेक करता रहा। उसने तब तक शिव का अभिषेक किया, जब तक कि भगवान भोलेनाथ विष की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त नहीं हो गए। रावण ने जब से शिवलिंग पर जलाभिषेक की शुरुआत की थी, वह महीना सावन का था। इसी को कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है और रावण को पहला कांवड़िया माना जाना लगा।

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