बम-बम भोले करता कावड़ियों (Kavad Yatra) का जत्था सड़कों पर नज़र आने लगा है, सावन माह शुरु होते ही ये सुंदर दृश्य हर तरफ दिखाई देता है। जितना प्रेम भक्तों को अपने शिव है, उससे अधिक भगवान को अपने भक्तों से स्नेह है।
यही वजह है की अपनी पीठ पर 200 लीटर जल लिए कावड़िए कई मीलों की दूरी पार करते चले जाते हैं। पुराणों में इस यात्रा से जुड़ी कई रोचक कथाएं, जिनमें से शिव भक्त रावण की कथा अहम मानी जाती हैं..
#WATCH उत्तर प्रदेश: वाराणसी में मार्कण्डेय महादेव मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर और कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर द्वारा पुष्प वर्षा की गई।
(सोर्स: सूचना विभाग) pic.twitter.com/bmNrHlpFbT
— ANI_HindiNews (@AHindinews) July 11, 2023
विश्व कल्याण के लिए शिव ने पिया था विष
समुद्र मंथन के दौरान जो विष समुद्र से निकला था, उससे धरती का विनाश हो सकता था। भगवान शिव ने इसे खुद पी लिया और अपनी योग शक्ति से उसे अपने कंठ में ही रोक लिया। भगवान शिव की ये कृपा ही थी ,नहीं तो मानव इस विष के विनाशकारी प्रभाव को झेल ना पाता।
शिव ने विष को अपने कंठ में धारण तो कर लिया। लेकिन उस विष का प्रभाव भगवान शिव पर होने लगा। वह नकारात्मक ऊर्जा से ग्रस्त होने लगे। जब यह बात भगवान शिव के परम भक्त रावण को पता चली तो वह उन्हें इस प्रकोप से मुक्त कराने का प्रण लेकर चल पड़ा।
लंका से रावण उत्तर भारत पहुंचा। उसने तप करने के बाद गंगा के जल से पुरा-महादेव मंदिर में शिव का अभिषेक किया। यह मंदिर आज के उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित है।
रावण कई वर्षों तक उत्तर प्रदेश के इस पुरा-महादेव मंदिर में गंगा जल से शिव का अभिषेक करता रहा। उसने तब तक शिव का अभिषेक किया, जब तक कि भगवान भोलेनाथ विष की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त नहीं हो गए। रावण ने जब से शिवलिंग पर जलाभिषेक की शुरुआत की थी, वह महीना सावन का था। इसी को कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है और रावण को पहला कांवड़िया माना जाना लगा।