Thursday, September 19, 2024
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Shree Krishna : नाथद्वारा के श्रीनाथजी का अनोखा स्वरुप…कहलाते हैं सेठ….औरंगजेब भी तुड़वा नहीं पाया था मूर्ति

राजस्थान किलों और विरासत के लिए तो प्रसिद्ध है ही, यह कई धार्मिक संप्रदायों और उनके श्रद्धेय तीर्थस्थलों का घर भी है। जहां एक और राजस्थान का इतिहास वीरगाथाओं से भरा हुआ है। मीरा की कृष्ण भक्ति भी भारतीय इतिहास का एक अभिन्न अंग है। मीरा की कृष्ण भक्ति की तरह ही पूरे भारत में प्रसिद्ध है यहां का एक मंदिर। जिसे आज नाथद्वारा का श्रीनाथजी (Shree Krishna Nathdwara) का मंदिर कहा जाता है।

Shree Krishna Nathdwara

अरावली की गोद में स्थित बनास नदी के किनारे स्थित नाथद्वारा राजस्थान का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। इस प्रमुख वैष्णव तीर्थ स्थल पर श्रीनाथ जी (श्रीकृष्ण) का एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सात वर्षीय ‘शिशु’ अवतार के रूप में विराजित हैं। श्रीनाथ (Shree Krishna Nathdwara) जी के विग्रह को मूलरूप से भगवान कृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है।

नाथद्वारा, उदयपुर से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और भगवान श्रीनाथजी के मंदिर की वजह से देश-विदेश में एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है।

कैसा है श्रीनाथ जी का बाल स्वरुप?

नाथद्वारा के मंदिर में भगवान का बालरूप गोवर्धन पर्वतधारी हैं। मंदिर में स्थित श्रीनाथजी का विग्रह बिल्कुल उसी अवस्था में खड़ा हुआ है, जिस अवस्था में बाल रूप में कृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली पर उठाया था।

भगवान श्रीनाथजी का विग्रह दुर्लभ काले संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है। विग्रह का बायां हाथ हवा में उठा हुआ है और दाहिने हाथ की मुट्ठी को कमर पर टिकाया हुआ है। श्रीनाथजी के विग्रह के साथ में एक शेर, दो-दो गाय, तोता व मोर भी दिखाई देते हैं। इन सबके अलावा तीन ऋषि मुनियों की चित्र भी विग्रह के पास रखे हुए हैं।

श्रीनाथजी (Shree Krishna Nathdwara) हैं स्वयंभू !

मान्यता है कि श्रीकृष्ण की 7 ऐसी प्रतिमाएँ हैं जो स्वयंभू है यानि कि स्वयं प्रकट हुई हैं। जिनमें से एक है नाथद्वारा में विराजमान भगवान श्रीकृष्ण का यह बाल विग्रह जिससे हम श्रीनाथ जी के नाम से जानते हैं। स्वयंभू प्रतिमाएँ हिंदू धार्मिक परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
ये प्रतिमाएँ किसी मूर्तिकार द्वारा नहीं बनाई गईं, बल्कि स्वयं भगवान द्वारा प्रकट की गईं, जिससे उनकी दिव्यता और महिमा का प्रमाण मिलता है।
Shree Krishna Nathdwara
भगवान श्रीकृष्ण के स्वयं प्रकट होने वाली प्रतिमाएँ विशेष रूप से उनकी दिव्य महिमा और भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक होती हैं। इन प्रतिमाओं का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों और किंवदंतियों में मिलता है जिनसे कई सारी सुन्दर कथएँ भी जुड़ी हुयी हैं। नाथद्वारा में स्थित ‘श्रीनाथजी’ की प्रतिमा विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
यह प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप (गोपाल) की है, जिसे ‘स्वयंभू’ माना जाता है। इसे विशेष रूप को व्रजस्वरूप में पूजा जाता है और यह नाथद्वारा के मुख्य मंदिर में स्थापित है।

औरंगज़ेब के तोड़ा श्रीनाथजी का मंदिर

मुगल शासक औरंगजेब मूर्ति पूजा का विरोधी था और उसने अपने शासनकाल में कई मंदिरों को तोड़ने के आदेश दिए थे। इस आदेश के तहत मथुरा जिले में स्थित श्रीनाथजी के मंदिर को भी तोड़ा गया।
लेकिन मंदिर के पुजारी दामोदर दास बैरागी ने श्रीनाथजी (Shree Krishna Nathdwara) की मूर्ति को मंदिर से सुरक्षित निकाल लिया। दामोदर दास वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी थे और वल्लभाचार्य के वंशज थे। उन्होंने श्रीनाथजी की मूर्ति को बैलगाड़ी में रखा और कई राजाओं से अनुरोध किया कि वे श्रीनाथजी का मंदिर बनवाकर मूर्ति को वहाँ स्थापित करें। हालांकि, औरंगजेब के भय के कारण कोई भी राजा उनका प्रस्ताव स्वीकार करने को तैयार नहीं था।
मेवाड़ के राणा राजसिंह ने बनवाया मंदिर
अंततः, दामोदर दास बैरागी ने मेवाड़ के राजा राणा राजसिंह से संपर्क किया, जो पहले भी औरंगजेब को चुनौती दे चुके थे। यह घटना 1660 की है। जब औरंगजेब ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह का प्रस्ताव भेजा और चारुमती ने इसे ठुकरा दिया। ऐसे में राणा राजसिंह ने बिना कोई देरी किए चारुमती से किशनगढ़ में विवाह किया, जिससे औरंगजेब ने उन्हें अपना शत्रु मान लिया।
यह दूसरा मौका था जब राणा राजसिंह ने औरंगजेब को खुली चुनौती दी। उन्होंने कहा कि जब तक वे जीवित हैं, बैलगाड़ी में रखी श्रीनाथजी की मूर्ति को कोई भी छू नहीं पाएगा और इसके लिए औरंगजेब को एक लाख राजपूतों का सामना करना पड़ेगा।
Shree Krishna Nathdwara

बाद में चौपासनी से श्रीनाथ जी की मूर्ति को सिहाड़ लाया गया। दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथ जी की मूर्तियों का स्वागत करने के लिए राणा राजसिंह स्वयं गांव गए। यह सिहाड़ गांव उदयपुर से 30 मील एवं जोधपुर से लगभग 140 मील की दूरी पर स्थित है जिसे आज हम नाथद्वारा के नाम से जानते हैं। फरवरी 1672 को मंदिर का निर्माण संपूर्ण हुआ और श्री नाथ जी की मूर्ति मंदिर में स्थापित कर दी गई।

कई बड़े व्यापारियों के हैं बिज़नेस पार्टनर

भगवान श्रीनाथ जी को कई व्‍यापारी अपना बिजनस पार्टनर बनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान को व्यापार में पार्टनर बनाने से व्‍यापार में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। नाथ द्वारा के गिरिधर गोपाल जी का कई बिजनसों में पार्टनर होने के कारण श्रद्धालु उन्हें सेठ (Shree Krishna Nathdwara) जी नाम से भी पुकारते हैं।

श्रीकृष्ण की तरह ही उनकी लीलाएं भी बहुत ही चमत्कारी हैं। औरंगज़ेब द्वारा मंदिर तुड़वा देने के बाद कई सालों तक श्रीनाथ जी बैलगाड़ी में रहे। आज वही नाथद्वारा के सांवलिया सेठ (Shree Krishna Nathdwara) कहलाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सांवलिया सेठ ही मीरा बाई के वो गिरधर गोपाल हैं, जिनकी वह दिन रात पूजा किया करती थीं।

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