राजस्थान किलों और विरासत के लिए तो प्रसिद्ध है ही, यह कई धार्मिक संप्रदायों और उनके श्रद्धेय तीर्थस्थलों का घर भी है। जहां एक और राजस्थान का इतिहास वीरगाथाओं से भरा हुआ है। मीरा की कृष्ण भक्ति भी भारतीय इतिहास का एक अभिन्न अंग है। मीरा की कृष्ण भक्ति की तरह ही पूरे भारत में प्रसिद्ध है यहां का एक मंदिर। जिसे आज नाथद्वारा का श्रीनाथजी (Shree Krishna Nathdwara) का मंदिर कहा जाता है।
अरावली की गोद में स्थित बनास नदी के किनारे स्थित नाथद्वारा राजस्थान का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। इस प्रमुख वैष्णव तीर्थ स्थल पर श्रीनाथ जी (श्रीकृष्ण) का एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सात वर्षीय ‘शिशु’ अवतार के रूप में विराजित हैं। श्रीनाथ (Shree Krishna Nathdwara) जी के विग्रह को मूलरूप से भगवान कृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है।
नाथद्वारा, उदयपुर से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और भगवान श्रीनाथजी के मंदिर की वजह से देश-विदेश में एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है।
कैसा है श्रीनाथ जी का बाल स्वरुप?
नाथद्वारा के मंदिर में भगवान का बालरूप गोवर्धन पर्वतधारी हैं। मंदिर में स्थित श्रीनाथजी का विग्रह बिल्कुल उसी अवस्था में खड़ा हुआ है, जिस अवस्था में बाल रूप में कृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली पर उठाया था।
भगवान श्रीनाथजी का विग्रह दुर्लभ काले संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है। विग्रह का बायां हाथ हवा में उठा हुआ है और दाहिने हाथ की मुट्ठी को कमर पर टिकाया हुआ है। श्रीनाथजी के विग्रह के साथ में एक शेर, दो-दो गाय, तोता व मोर भी दिखाई देते हैं। इन सबके अलावा तीन ऋषि मुनियों की चित्र भी विग्रह के पास रखे हुए हैं।
श्रीनाथजी (Shree Krishna Nathdwara) हैं स्वयंभू !
औरंगज़ेब के तोड़ा श्रीनाथजी का मंदिर
मेवाड़ के राणा राजसिंह ने बनवाया मंदिर
बाद में चौपासनी से श्रीनाथ जी की मूर्ति को सिहाड़ लाया गया। दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथ जी की मूर्तियों का स्वागत करने के लिए राणा राजसिंह स्वयं गांव गए। यह सिहाड़ गांव उदयपुर से 30 मील एवं जोधपुर से लगभग 140 मील की दूरी पर स्थित है जिसे आज हम नाथद्वारा के नाम से जानते हैं। फरवरी 1672 को मंदिर का निर्माण संपूर्ण हुआ और श्री नाथ जी की मूर्ति मंदिर में स्थापित कर दी गई।
कई बड़े व्यापारियों के हैं बिज़नेस पार्टनर
भगवान श्रीनाथ जी को कई व्यापारी अपना बिजनस पार्टनर बनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान को व्यापार में पार्टनर बनाने से व्यापार में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। नाथ द्वारा के गिरिधर गोपाल जी का कई बिजनसों में पार्टनर होने के कारण श्रद्धालु उन्हें सेठ (Shree Krishna Nathdwara) जी नाम से भी पुकारते हैं।
श्रीकृष्ण की तरह ही उनकी लीलाएं भी बहुत ही चमत्कारी हैं। औरंगज़ेब द्वारा मंदिर तुड़वा देने के बाद कई सालों तक श्रीनाथ जी बैलगाड़ी में रहे। आज वही नाथद्वारा के सांवलिया सेठ (Shree Krishna Nathdwara) कहलाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सांवलिया सेठ ही मीरा बाई के वो गिरधर गोपाल हैं, जिनकी वह दिन रात पूजा किया करती थीं।