चतुर्मास के चार महीनों यानि की सावन मास से कार्तिक मास तक का समय, ये वह समय होता है जब सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु विश्राम के लिए क्षीर सागर चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन का दायित्व देवादिदेव महादेव (Shivling) के हाथ में होता है। महादेव (Shivling) को इन चतुर्मास में सबसे अधिक सावन का महीना प्रिय है।
कहा जाता है कि सावन माह में भोलेनाथ (Shivling) अपने भक्तों की हर विनय को स्वीकार करते हैं। वैसे तो भोले बाबा को प्रसन्न करना सबसे सरल बताया गया है लेकिन ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में शिवजी (Shivling) को प्रसन्न करना और भी अधिक सरल हो जाता है।
सावन मास में भोलेनाथ (Shivling) का दूध, दही, शहद, घी और जल से अभिषेक कर उन्हें बेलपत्र, धतूरा और पुष्प अर्पित करने चाहिए। महादेव को प्रसन्न करना जितना सरल है, उतनी ही जल्दी वो क्रोधित भी हो जाते है। इसलिए शिवजी की पूजा में कुछ विशेष बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। तो चलिए जानते हैं कि महादेव (Shivling) की पूजा में किन वस्तुओं के उपयोग नहीं करना चाहिए..
1. शिवलिंग पर ना चढ़ाएं हल्दी
महादेव शिव की पूजा चंदन और गुलाल से करनी चाहिए, और भोलेनाथ को कभी भी हल्दी नहीं लगानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि हल्दी नारीत्व का प्रतीक है जबकि शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक माना गया है। वहीँ बात की जाये इसके दूसरे कारण की तो समुद्र मंथन से निकले विष हलाहल को पीने के बाद भोलेनाथ की प्रकृति गर्म मानी गयी है। जबकि हल्दी की प्रकृति गर्म होती है इसलिए शिवजी को ठंडी वस्तुएँ जैसे दूध, दही चढ़ाया जाता है और हल्दी चढाने को मन किया जाता है।
2. टूटे अक्षत से ना करें भोलेनाथ की पूजा
भूल कर भी कभी टूटे अक्षत महादेव पर न चढ़ाएं। टूटे अक्षत या चावल को अशुद्ध माना जाता है इसलिए कभी भी महादेव या अन्य किसी भी पूजा में टूटे अक्षत का भूल कर भी प्रयोग न करें। ऐसा माना जाता है कि पूजा में टूटे अक्षत का उपयोग करने से घर में दरिद्रता आती है। शास्त्रों के अनुसार टूटे चावल अधूरे होते हैं और महादेव अपने आप में सम्पूर्ण हैं, इसलिए महादेव की पूजा में भी टूटे अक्षत का उपयोग वर्जित मन गया है।
3. शिवजी को न चढ़ाएं सिंदूर
सिंदूर महिलाओं के लिए सुहाग की निशानी माना जाता है। कहा जाता है कि विवाहित स्त्री अगर सिंदूर लगाती है तो घर में सौभाग्य आता है। इसलिए सिंदूर को सौभाग्य का प्रतीक भी माना गया है। वहीँ बात की जाए सदाशिव महादेव की तो वे एक वैरागी है, इसलिए शिव को सिंदूर चढ़ाने से भी मना किया जाता है।
4. केतकी के फूल शिवजी की न करें अर्पित
केतकी के फूलों का शिवजी की पूजा में उपयोग नहीं करना चाहिए। शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि केतकी के फूल शिवजी द्वारा शापित हैं, इसलिए केतकी के फूलों को महादेव पर नहीं चढ़ाया जाता।
शिव पुराण की एक कथा अनुसार एक बार सृष्टि रचेता ब्रह्माजी और पालनकर्ता विष्णुजी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। तब महादेव एक प्रकाशलिंग के रूप में प्रकट हुए और ब्रह्मदेव और विष्णुदेव को प्रकाशलिंग के अंत छोर का पता लगाने को कहा। इसके बाद ब्रह्माजी प्रकाशलिंग में ऊपर की ओर एवं विष्णुजी लिंग के नीचे की ओर अंत ढूंढने के चले गए। कई युगों तक चलने के बाद ब्रह्माजी को ऊपर से आता एक केतकी का पुष्प दिखाई दिया, जिसे ब्रह्माजी अपने साक्षी के रूप में लेकर वापस आ गए जबकि विष्णुजी ने कहा उन्हें अंत नहीं मिला।
ब्रह्मा जी के असत्य वचन को सुनकर सदाशिव साकार रूप में प्रकट हुए और ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया। साथ ही केतकी के पुष्पों को श्राप दिया की शिव पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का उपयोग नहीं होगा। तभी से केतकी के फूलों का महादेव पूजा उपयोग वर्जित माना जाता है।
5. शंख से ना चढ़ाये शिवलिंग पर जल
शंखचूंड नाम का एक राक्षस था जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। परन्तु वह राक्षस महादेव को अपना शत्रु मानता था। उसने अपनी भक्ती से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर उनसे एक “श्री कृष्ण कवच” ले लिया। विष्णुजी से कवच मिलने के बाद शंखचूंड ने ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उनसे वरदान भी ले लिया।
भगवान ब्रह्माजी के वरदान से प्राप्त कर शंखचूंड बहुत शक्तिशाली हो गया। जब भगवान महादेव और शंखचूंड का युद्ध हुआ तो शिवजी भी इस राक्षस का वध करने में असमर्थ दिखाई देने लगे। तब विष्णुजी ने एक ब्राह्मण का रूप ले शखचूंड से “श्री कृष्ण कवच” दान ले लिया। इसके बाद शिवजी और शंखचूंड में भयंकर युद्ध हुआ। महादेव ने अपने त्रिशूल से शंखचूंड पर प्रहार किया जिससे उसका शरीर भस्म हो गया।
शंखचूंड की हड्डियों की भस्म से एक शंख का जन्म हुआ। शंख का जन्म उस राक्षस से हुआ जिसका वध महादेव ने किया है इसलिए शिव पूजा में शंख भी प्रयोग नहीं किया जाता।
6. तुलसी चढाने से करें परहेज
एक पौराणिक कथा के अनुसार तुलसी पूर्व जन्म राक्षसों के राजा जलंधर की पत्नी वृंदा थी। जलंधर जिसका जन्म शिव जी के अंश के रूप में हुआ था। जलंधर से हर कोई परेशान था। फिर भी वृंदा के पतिव्रत के कारण जलंधर का वध करना असंभव था। इसलिए जान कल्याण के लिए एक दिन भगवान विष्णु ने जलंधर का रुप धारण किया और उन्होंने वृंदा की पतिव्रता धर्म को तोड़ दिया। साथ ही विष्णु जी ने वृंदा को लकड़ी बन जाने का श्राप दिया।
इसके बाद शिव जी ने जलंधर का वध कर दिया और विष्णु जी के श्राप के बाद वृंदा कालांतर में तुलसी का पौधा बन गईं। कहा जाता है कि तुलसी श्रापित हैं और शिव जी द्वारा उनके पति का वध हुआ है इसलिए शिव पूजन में तुलसी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। शिवजी सदैव शमी और बेलपत्र अर्पित करने चाहिए।
7. शिवलिंग पर ना चढ़ाएं लाल फूल
शिवलिंग पर कभी भी लाल रंग के फूल नहीं चढ़ाए जाते। मान्यता है कि लाल रंग के फूल चढ़ाने से पूजा का फल नहीं मिलता है। ध्यान रखें कि शिवजी को केवल सफेद रंग के फूल चढ़ाने चाहिए। इससे वे जल्दी प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा अपराजिता का नीला या फिर सफेद जो भी पुष्प हो उसे जरूर चढ़ाएं।
मान्यता है कि यह अपराजिता शिवजी को अत्यंत प्रिय है। इसे चढ़ाने से वह अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं। शिव पूजा में नारियल का प्रयोग तो किया जा सकता है लेकिन शिवलिंग पर कभी भी नारियल पानी नहीं चढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही भोलेनाथ को केवड़े के फूल भी अर्पित नहीं करने चाहिए।