वीर महारानी जिन्होंने कई मंदिरों का कराया पुर्निर्माण, तैयार की पहली महिला सेना

मालवा प्रांत की वीरांगना महारानी अहिल्याबाई होलकर(Ahilyabai Holkar)। नारी शक्ति की एक बहुत बड़ी मिशाल हैं। उन्होंने (Ahilyabai Holkar) कम उम्र में ही अपनी बुद्धि से राजतंत्र चलाना सीख लिया था। वे समाज सुधारक और क्रांतिकारी महिला थीं। समाज के उद्धार के लिए उन्होंने अपना सारा जीवन निछावर कर दिया था। इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर (Ahilyabai Holkar) को और अधिक जानते हैं आज उनकी पुण्यतिथि पर-

पिता और ससुर जी को मानती थीं गुरु

Ahilyabai Holkar

अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) को आज पूरी दुनिया एक महान विरांगना के रुप में जानती है। पर उनकी  प्रेरणा के स्त्रोत थे उनके पिता और ससुर जी। अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को हुआ, इस दौर में बेटियों को पढ़ाना असंभव कार्य था। ऐसे दौर में इनके पिता मनकोजी शिंदे ने अपनी बेटी को शिक्षित तो कराया साथ ही उन्हें युद्ध से जुड़ी नीती का भी ज्ञान दिया।

महाराजा मल्हारराव को अहिल्या में दिखा एक शासक

malwa Rani

एक बार महाराजा मल्हारराव होलकर पुणे दौरे के बाद वापस इंदौर जा रहे थे। रास्ते में विश्राम के लिए वे छेन्दी गांव में रुक गए। अहिल्या यहीं रहती थीं। महाराजा ने 8 साल की बालिका अहिल्या (Ahilyabai Holkar) को देखा। जिसकी उदारता और ईमानदारी उन्हें इस कद्र लुभा गई वे उसमें अपनी पुत्रवधु को देखने लगे। उन्हें अपने साम्राज्य को चलाने वाला एक शासक अहिल्या में दिखने लगा। महाराज ने तुरंत अहिल्या के पिता मानकोजी शिंदे से अपने बेटे के लिए अहिल्या का हाथ मांग लिया। इस प्रकार अहिल्या का विवाह खंडेराव के साथ हुआ वे बन गई इस बड़े साम्राज्य की रानी।

 तीव्र बुद्धि की धनी रानी, एक नज़र में सीख जाती थीं हर कार्य

great builder of demolished temples

अहिल्याबाई होलकर की तीव्र बुद्धि की धनी थीं। वे हर कार्य को एक बार में सीखने की कला जानती थीं। विवाह के बाद वे बहुत जल्द ही परिवार की प्रिय बहु बन गईं। वे रसोई से लेकर अपने राज्य की हर छोटी-बड़ी जरुरतों का ध्यान रखने लगीं। इसके साथ ही उनके बारे में सबसे विख्यात बात ये हैं की वे अपने पति खंडेराव की मार्गदर्शक भी बनीं।

दुखों का पहाड़ टूटा एक के बाद एक

जीवन अच्छा चलता रहा, अहिल्या के दो बच्चें भी हुए। एक पुत्र और एक पुत्री। पर समय का पहिया अचानक पलट गया और अहिल्याबाई के जीवन में दुखों का पहाड़ गिर गया। एक युद्ध के दौरान खंडेराव का निधन हो गया। पति के निधने के बाद वे टूट गईं। उन्होंने सती बनने का निर्णय भी ले लिया। उस वक्त उनके पिता समान ससुर ने उन्हें रोका और राज्य के प्रति उनकी जिम्मेदारी को उन्हें याद दिलावाया।

अहिल्याबाई होलकर ने मालवा साम्राज्य की बेहतरी के लिए कई कार्य किए। उन्होंने मालवा में कपड़ा व्यापार शुरु करवाया। उन्होंने अपने ससुर जी से राज्य को चलाने की नीती भी सीखी। कुछ सालों बाद ससुर का निधन भी हो गया। अहिल्या ससुर जी की मृत्यु से उभरी भी नहीं थी की उनके पुत्र का भी स्वर्गवास हो गया।

कई मंदिरों का जीर्णोधार करवाया अहिल्याबाई ने 

holkar mahal

वर्ष 1737 से 1795 तक मालवा की रानी के रुप में अहिल्याबाई होलकर ने राज्य किया। वे करीब 30 सालों में उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण करवाया, कुंए, तालाब भी बनवाएं। ओंकारेश्वर पास होने के कारण और नर्मदा के प्रति श्रद्धा होने कारण उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण करवाया। उनके काल में मालवा के सिक्कों पर शिव और नंदी की छबि बनी रहती थी। अहिल्याबाई के नेतृत्व में पहली महिला सेना भी तैयार की गई। शत्रुओं से लड़ने में महिलाओं को भी योग्य बनाया।

अहिल्याबाई शिव भक्त थीं। उन्होंने ध्वस्त वाराणसी काशी विश्वनाथ मंदिर का पुन: निर्माण कराया। इसके साथ ही गुजरात के सोमनाथ मंदिर का भी पुन: निर्माण अहिल्याबाई ने ही करवाया। गुणी महारानी अपने हर कर्तव्य को निभाने में कामयाब रही पर परिवार जनों की कमी उन्हें हमेशा खलती रही। वे दुखी रहने लगीं और 70 साल की उम्र में 13 अगस्त 1795 को उनका निधन हो गया।