Friday, September 20, 2024
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केदारनाथ क्यों कहा जाता है पंचकेदार, जानिए शिव के इन 5 धामों के बारे में

महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वह अंतर्धान होकर केदार आ पहुंचे। पांडव भी उनका पीछा करते-करते केदार आ पहुंचे। उनसे छिपने के लिए भगवान शिव बैल बन गए और अन्‍य जानवरों के बीच में छिप गए। भीम ने इस बात को भांप लिया और विशालकाय रूप में आ गए और दो पहाड़ों के बीच में अपने दोनों पैर रख लिए। अन्‍य जानवर भीम के पैरों के बीच से निकल गए लेकिन बैल के रूप में भगवान शिव पैर के नीचे से नहीं गए। भीम को समझ आ गया और उन्‍होंने बैल की पीठ का त्रिकोण भाग पकड़ लिया। पांडवों की शक्ति और दृढ़ संकल्‍प ने भगवान शिव का मन बदल दिया और उन्‍होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्‍त किया। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।


1. केदारनाथ
केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग है, इसे जीवित ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। यहाँ पर शिव जी त्रिकोण शिव लिंग के रूप में विद्यमान है ऐसा नामा जाता है कि पांडवों से छिपने के लिए जब शिव ने नंदी रूप रखा तो भीम ने उन्हें पहचान लिया, जैसे ही शिवजी को यह बात पता चली तो वह वहां से अंतर्ध्यान होने लगे तभी भीम ने नंदी रुपी शिव की पीठ का त्रिकोण भाग पकड़ लिया। उसी समय से यहां शिवलिंग बैल की पीठ की आकृति के रूप में पूजा जाता है।

2. मदमहेश्वर
मदमहेश्वर मंदिर, मदमहेश्वर नदी के स्रोत (मुख) के पास के इलाके में स्थित है। इस मंदिर को दूसरे केदार के रूप में जाना जाता है। मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम के रूप में होती है। मान्यता है कि यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं।

3. तुंगनाथ
‘तुंगनाथ’ उत्तराखंड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पर्वत है। इसी पर्वत पर स्थित है ‘तुंगनाथ मंदिर।’ यह भोलेनाथ के पंच केदारों में से एक है। यहां के बारे में यह भी मान्यता है कि माता पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए यहीं पर तपस्या की थी। यहां भगवान शिव के हृदयस्थल और शिव की भुजा की आराधना होती है।

4. रुद्रनाथ
रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मंदिर है जो कि पंचकेदार में से एक है। रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नंदा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढ़ाती हैं। यहां पूजे जाने वाले शिव जी के मुख को ‘नीलकंठ महादेव’ कहते हैं।

5. कल्पेश्वर
कल्पेश्वर मंदिर गढ़वाल के चमोली जिले, उर्मगम घाटी, उत्तराखण्ड, भारत में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। कल्पेश्वर मंदिर पंच केदारों में से एक है तथा पंच केदारों में इस पांचवा स्थान है। कल्पेश्वर एकमात्र पंच केदार मंदिर है, जहां पूरे वर्ष भगवान के कपाट खुले रहते हैं। यह एक छोटा सा मंदिर जो पत्थर की गुफा में बना हुआ है ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी। इस मंदिर में भगवान शिव की ‘जटा’ की पूजा की जाती है।

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