Thursday, September 19, 2024
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निर्भया की 10वीं बरसी : नहीं बदले हालात

10 साल पहले जब निर्भया के साथ हुई जघन्य वारदात सामने आई तो लोगों की आंखों में आंसू आ गए थे। सवाल उठा कि कोई इतना निर्मम कैसे हो सकता है। तब समाज और सिस्टम में अनेक खामियां भी उजागर हुई थीं। मसलन, अगर निर्भया को सार्वजनिक परिवहन की उचित व्यवस्था मिलती तो शायद उसका यह अंजाम न हुआ होता। इसी तरह कानून, पुलिस की जांच, मेडिकल जांच आदि की भी खामियां सामने आई थीं। लेकिन तकलीफदेह बात यह है कि नियम-कानून बदलने के बाद भी हालात नहीं बदले हैं।

दोषियों को सजा दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़ाई गई, लेकिन इन अदालतों में महिलाओं के खिलाफ अपराध की संख्या में अभी भी कोई कमी नहीं आयी है। शुक्रवार को संसद में सरकार की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, अक्टूबर 2022 तक फास्ट ट्रैक कोर्ट और विशेष पॉक्सो अदालतों में यौन शोषण और पॉक्सो के लगभग 1.93 लाख मामले लंबित थे, जबकि फास्ट ट्रैक कोर्ट में कुल लंबित मामलों की संख्या 14 लाख से ज्यादा थी। देश में महिला सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा तो हुई पर बदला कुछ नहीं। पुलिस आज भी महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर संवेदनशील नहीं है। निर्भया मामले में सबसे प्रमुख समस्या सार्वजनिक परिवहन को लेकर सामने आई थी। उसके बाद सरकारों ने कई चाक-चौबंद व्यवस्था होने की बात कही थी, लेकिन अभी स्थिति में बड़ा सकारात्मक परिवर्तन नहीं आया है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट, ‘इनेबलिंग जेंडर रिस्पॉन्सिव अर्बन मोबिलिटी एंड पब्लिक स्पेसेज इन इंडिया’ बताती है कि भारत में ज्यादातर महिलाएं बस से यात्रा करती हैं। 82 फीसदी महिलाओं का कहना था कि वे सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट में दिन को खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं, जबकि 20 फीसदी का कहना था कि वह रात में सेफ महसूस नहीं करती हैं। इस स्टडी में केरल सहित कुछ शहरों को केस स्टडी के तौर पर लिया गया। वहीं 68 फीसद महिलाओं ने माना कि उन्हें सफर के दौरान शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है।

विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में चार तरीके से महिलाओं के लिए शहरी परिवहन प्रणाली में सुधार की जरूरत बताई है। पहला, जमीनी स्थिति को महिलाओं के नजरिये से समझा जाए। दूसरे, नीतियों और विकास योजनाओं में महिलाओं की चिंता झलके, इन्हें बनाने में महिलाओं की भूमिका हो। तीसरे, सार्वजनिक परिवहन से जुड़े सभी लोगों की महिलाओं के नजरिये से अनिवार्य ट्रेनिंग हो। कंडक्टर से लेकर स्थानीय कांस्टेबल तक को पता होना चाहिए कि महिलाओं की जरूरतें क्या हैं। चौथा, महिलाओं के अनुकूल इन्फ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं में निवेश बढ़ाया जाए। रिपोर्ट में महिलाओं की शिकायतों के निपटारे के लिए प्रभावी तंत्र बनाने की भी सिफारिश की गई है।

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