28 मई 2023 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करने के साथ संसद भवन को देश को समर्पित करेंगे। साल 1927 और 2023 ताजा सियासी कहानी में ये दो साल बेहद अहम होने वाले हैं। पहला गवाह है देश की पहली संसद का। वहीं, दूसरा इतिहास में दर्ज होने के लिए तैयार है। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के नए संसद भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं। हालांकि, यहां सांसदों का जमघट लगने में समय है, लेकिन देश की सियासत का हृदय स्थान अब गोलाकार से त्रिकोण होने वाला है और इसके सीधे तार मध्य प्रदेश के छोटे शहर विदिशा से जुड़ते हैं।
देश के नए संसद भवन को लेकर एक भ्रान्ति सी बनी हुई है कुछ लोगों का मानना है की इस भवन को एक विदेशी इमारत ‘पेंटागन’ की नकल कर तैयार किया गया है। परन्तु वास्तविकता कुछ और है। जी हां, 28 मई को प्रधानमंत्री मोदी जिस नई संसद का उद्घाटन करने वाले है वह विदिशा स्थित विजय मंदिर की रेप्लिका है। बेहद घनी बस्ती में दूर से बमुश्किल नजर आने वाली इस इमारत का इतिहास खास है। तो चलिए जानते है इस विजय मंदिर के बारे में जिसकी तर्ज़ पर तैयार हुआ है नया संसद भवन।
मंदिर ध्वस्त कर बनाई गई मस्जिद
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI ने 1971-72 और 1973-74 में खुदाई की थी। उस दौरान यहां कई अभिलेख मिले थे। कहा जाता है कि मुगल राजा औरंगजेब ने साल 1682 में यहां आक्रमण कर इसे तबाह कर दिया था। पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, कुछ जानकार बताते हैं कि यह वही ध्वस्त मंदिर है, जिसके स्थान पर मस्जिद खड़ी है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने अपनी विदिशा विजय के बाद कराया था। नृपति के सूर्यवंशी होने के कारण भेल्लिस्वामिन (सूर्य) का मंदिर बनवाया गया। इस भेल्लिस्वामिन नाम से ही इस स्थान का नाम पहले भेलसानी और कालांतर में भेलसा पड़ा।अपनी विशालता, प्रभाव व प्रसिद्धि के कारण यह मंदिर हमेशा से मुस्लिम शासकों के आँखों का कांटा बना रहा। कई बार इसे लूटा गया और तोड़ा गया। ASI की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, हिंदू मंदिर को ध्वस्तकर उस पर मस्जिद का निर्माण किया गया था।
ज्यादातर शिलालेख आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिये हैं। स्तंभ पर मिला एक संस्कृत अभिलेख यह स्पष्ट करता है कि यह मंदिर चर्चिका देवी का था। संभवतः इसी देवी का दूसरा नाम विजया था, जिसके नाम से इसे विजय मंदिर के रूप से जाना जाता रहा। यह नाम “बीजा मंडल’ के रूप में आज भी प्रसिद्ध है। यहां मिले शिलालेख बताते हैं कि यह देवी चर्चिका का मंदिर था, जिसका निर्माण 12वीं- 13वीं शताब्दी में हुआ था। कहा जाता है कि औरंगजेब ने मंदिर को तबाह करने के बाद उसी सामग्री से मस्जिद तैयार कराई थी।
प्राचीन संस्मारक, पुरातत्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 के तहत राष्ट्रीय धरोहर घोषित किए गए इस मंदिर को वास्तविक रूप से परमार काल में तैयार कराया गया था।
मंदिर में है रहस्यमयी बावड़ी
विजय मंदिर के विशाल परिसर में एक बावड़ी भी मौजूद है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां का पानी कभी भी सूखता नहीं है। साथ ही इसकी गहराई और लंबाई को लेकर भी स्थिति साफ नहीं हो सकी है। एक धारणा यह भी विजय मंदिर की इस बावड़ी से एक रास्ता एमपी के ही एक और प्राचीन शहर रायसेन तक जाता है।
क्यों त्रिकोण है नया भवन
971 करोड़ रुपये की लागत से बने इस नए भवन का त्रिकोणीय आकार भी चर्चा में है। सेंट्रल विस्टा की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि इस नए संसद में छोटी से छोटी जगह का भरपूर इस्तेमाल करने के मकसद से इसका आकार त्रिकोण रखा गया है। नए भवन में राष्ट्रीय पक्षी मोर के आधार पर तैयार लोकसभा में सदस्यों के बैठने की संख्या भी बढ़ाकर 888 की गई है। जबकि, कमल के आधार पर तैयार राज्यसभा में 348 सदस्य बैठ सकेंगे।
क्या होगा पुरानी संसद का
सवाल है कि 28 मई को जब देश को नई संसद मिल जाएगी, तो संविधान का गवाह बन चुकी पुरानी इमारत का क्या होगा? सरकार का कहना है कि पुरानी संसद की विरासत को सहेजना राष्ट्रीय महत्व क मुद्दा है। साथ ही सरकार यह भी साफ कर चुकी है कि पुराने भवन को ढहाया नहीं जाएगा। पुराने संसद भवन का निर्माण साल 1921 में शुरू हुआ था जिसे साल 1927 में पूरा कर लिया गया था। इसकी डिजाइन ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स सर एड्विन लुटियन्स और हर्बर्ट बेकर ने तैयार की थी।
मार्च 2021 में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में बताया था कि नई इमारत तैयार है और पुराने भवन को किसी और इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। हालांकि, अब तक तय नहीं है कि यहां क्या होगा। एक रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा था कि मौजूदा संसद भवन के एक हिस्से को संग्रहालय में भी तब्दील कर दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है, तो यहां पहुंचने वाली जनता लोकसभा को अंदर से भी देख सकेगी।