Thursday, September 19, 2024
Homeट्रेवल-फूडशिकागो “धर्म संसद” की यादें आज भी है ताजी

शिकागो “धर्म संसद” की यादें आज भी है ताजी

12 जनवरी 1863 को कोलकाता में स्वामी विवेकानंद जी का जन्म हुआ, एक ऐसे महापुरुष का जिन्होंने विदेश में जाकर उनकी धरती पर भारतीय संस्कृति का परचम लहराया। प्रतिवर्ष इनकी स्मृति में ही हम 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। इस बार हम स्वामी विकेकानंद जी की 160वीं जन्मजयंती मना रहे है। उनके भाषण की यादें आज भी इतने सालों बाद ताजी है, शिकागों धर्म संसद में दिया उनका भाषण भारत की संस्कृति को बयां करता है। स्वामी जी के बोले गए वो 5 शब्दों की महत्वता आज तक बनी हुई है।

इस वर्ष की थीम-

युवाओं को राष्ट्र निर्माण की दिशा में प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल ये दिवस मनाया जाता है। जिसकी थीम अलग-अलग होती है, इस वर्ष यह महोत्सव 12 जनवरी से 16 जनवरी तक कर्नाटक के हुबली-धारवाड़ में आयोजित किया जा रहा है। जिसकी थीम है “विकसित युवा–विकसित भारत”।

आज के युवाओं का स्वामी विकेकानंद जी से परिचय होना बहुत जरुरी है। जहां आज की पीढ़ी गैजेट और सोशल मीडिया में उलझी रहती है, उस उम्र में स्वामी जी इतिहास रच रहे थे। सन् 1884 में स्वामी जी के पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई थी, घर की जिम्मेदारी उनपर आ गई थी। अपने पास कुछ ना होते हुए भी वे हमेशा दूसरों की मदद के लिए खड़े रहते थे। स्वयं भूखे रहकर वे दूसरों को अपना भोजन दे देते थे, बारिश में खुद भीगते ठिठुरते और अतिथि को अपना बिस्तर दे देते थे। 21, 22 वर्ष की आयु में इस तरह की सोच रखना बहुत बड़ी बात है। शिकागो में उनके दिए भाषण ने भारत की छबि ही बदल दी, उसके पहले अंग्रेजों के लिए भारत अंजान था।

कैसे पहुंचे शिकागो

साल 1893 में अमेरिकी के शिकागो की विश्व धर्म संसद स्वामी विवेकानंद के जीवन के लिए एक नया मोड़ साबित हुई और भारत के लिए भी। राजस्थान के खेतड़ी के राजा अजीत सिंह के आर्थिक सहयोग से स्वामी विवेकानंद शिकागो के धर्म संसद में शामिल हुए। कहा जाता है कि अजीत सिंह ने ही उन्हें स्वामी विवेकानंद नाम दिया था, और उन्हें शिकागो में आयोजित धर्म संसद में भाग लेने के लिए प्रेरित किया था।

ये थे वो 5 शब्द

स्वामी जी शिकागो पहुंचे, सूट बूट में मौजूद लोगों के बीच स्वामी जी साधारण वस्त्र पहने हुए थे, सभा में आए लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया, पर स्वामी जी अपने विचारों पर बने रहे। उन्होने सभी आए लोगों को शांति से सूना और बस वो समय आ गया था जब उन्हें अपने विचार लोगों के बीच रखने थे। स्वामी जी स्टेज पर गए, कुछ पल गुजर जाने के बाद स्वामी जी सिर्फ पांच शब्द बोले जिसे सुनने के बाद सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। ये पांच शब्द ही थे जिनसे 500 वर्षों के लिए सनातन संस्कृति का परचम लहरा दिया। ये शब्द थे “सिस्टर्स एंड ब्रदर्श ऑफ अमेरिका”। कहा जाता है स्वामी जी के इन शब्दों के बाद लोगों कि तालियां रुकने का नाम नहीं ले रही थी।

विवेकानंद जी की माता भुवनेश्वरी देवी एक गृहंणी थी, वे उने प्यार से नीलेश्वर पुकारती थी, पर नामकरण के समय उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त रखा गया था। विवेकानंद जी की एक और बात सबसे खास रही है, वो है उनका अपने गुरु के प्रति अपार प्रेम-स्नेह। रामकृष्ण जी को भी अपने इस शिष्य से अति लगाव था। जब विवेकानंद जी कई बार लंबे समय तक उनसे मिलने नहीं आ पाते थे तो परमहंस स्वंय उन्हें बुलावा भेजते थे। गुरु शिष्य का इस तरह का प्रेम बहुत कम देखने को मिलता था। जब स्वामी परमहंस का स्वास्थ्य बहुत ज्यादा खराब हो गया तो विवेकानंद ने पूरी तरह उनका ध्यान रखा। यह देख उनके मित्र उनका हास्य भी करते थे, फिर भी वे अपने कर्तव्य से नहीं भटके।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments