लोगों की निस्वार्थ मदद करने के लिए हमेशा हाजिर रहीं वो। थी तो दूसरे देश की, पर भारत के लिए उन्होंने ऐसे-ऐसे काम किए की उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इस मददगार को हम सभी मदर टेरेसा (Mother Teresa) के नाम से जानते हैं। हर साल 27 अगस्त को हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उन्हें जन्मदिन मुबारक कहते हैं। जानते है मेसेडोनिया से आयीं मदर टेरेसा (Mother Teresa) कैसे भारत के लोगों की मसीहा बन गईं।
अपने नाम भी संत से प्रभावित होकर खुद चुना
मेसेडोनिया देश में मदर टेरेसा (Mother Teresa) का जन्म एक अल्बेनीयाई परिवार में हुआ था। उनका परिवार एक अच्छी आर्थिक स्थिति वाला था। उन्हें जन्म के एक दिन बाद ही बैप्टाइज किया गया था, यह इसाईयों में एक धार्मिक प्रक्रिया होती है। यहीं वजह थी की वें अपना जन्मदिन 27 अगस्त को मानती थीं। मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस था। उन्होंने अपना नाम त्याग कर टेरेसा नाम चुना। वो अपने नाम से संत थेरेस ऑस्ट्रेलिया और टेरेसा ऑफ अविला को सम्मान देना चाहती थीं इसलिए उन्होंने टेरेसा नाम चुन लिया।
भारत के प्रति खास लगाव
निस्वार्थ सेवा करने वाली इस नन (Mother Teresa) ने साल 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चेरिटी की स्थापना की थी। सिस्टर टेरेसा आयरलैंड से 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में लोरेटो कॉन्वेंट पंहुचीं और अध्यापन का काम किया। वर्ष 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों, बीमारों और लाचारों की सेवा का संकल्प ले लिया।
ऐसे मिली उन्हें मां की उपाधि
वे (Mother Teresa) एक संपन्न परिवार से थी, पर उन्होने सभी सुख-सुविधाओं को त्यागकर गरीबों की सेवा करने का निर्णय लिया। वे नन बन गई, 24 मई 1937 को मदर टेरेसा ने अंतिम प्रतिज्ञा ली। नन की प्रतिज्ञा लेने के साथ ही उन्हें मदर की उपाधि दी गई। इसके बाद ही वें पूरी दुनिया में मदर टेरेसा के नाम से जानी गईं।
देश के सर्वोच्च नागरिक पदक से की गईं सम्मानित
टेरेसा लोगों की मदद हमेशा निस्वार्थ भाव से करती थीं, पुराने दौर में चली आ रही छूआछूत भांतियों को तोड़ वे बस जरुरतमंदों का ध्यान रखतीं थी। कुष्ठ रोगियों और अनाथों की सेवा में अपनी जिंदगी समर्पित करने वाली मदर टेरेसा को 25 जनवरी, 1980 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।
स्नेहमयी मां ने हर कर्तव्य निभाया
नन मदर टेरेसा को उनके कार्य के लिए 17 अक्टूबर 1979 को नोबल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। वे भारत के प्रति विशेष रुप से स्नेह रखती थीं। उन्होंने अपनी इच्छा से साल 1948 में भारतीय नागरिकता ली थी। उनके कर्तव्यों के बारे में जीतना जाना जाएं कम है। लोगों के लिए वे आज भी किसी मसीहा से कम नहीं हैं। उन्हें मदर की उपाधि प्राप्त हुईं। जिसे उन्होंने पूरी तरह सार्थक किया। मां का हर एक कर्तव्य उन्होंने बहुत खूब निभाया।