Thursday, September 19, 2024
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त्र्यंबकेश्वर में करें अपने दोषों का निवारण

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में पंचवटी से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर गोदावरी नदी कें किनारे स्थित है। त्र्यंबकेश्वर को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नौवाँ ज्योतिर्लिंग माना जाता है। जिस प्रकार 9 अंक को पूर्णांक या शिवांक कहा जाता है, उसी प्रकार त्र्यंबकेश्वर को भी एक संपूर्ण जोर्तिर्लिंग माना गया है। अत्यंत प्राचीन त्र्यंबकेश्वर मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग हैं। इन तीन शिवलिंग को ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाना जाता हैं। ये शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए है, यानी इसे किसी ने स्थापित नहीं किया था। गौतम ऋषि और गोदावरी नदी ने भगवान शिव से यहां निवास करने के लिए प्रार्थना की थी इसलिए यहां भगवान शिव यहाँ त्रयंबकेश्वर के रूप में निवास करते है। क्या है त्र्यंबकेश्वर से जुड़ी पौराणिक कथा चलिए जानते है

त्र्यंबकेश्वर की कथा
दण्डकारयण वन गौतम ऋषि रहते थे। ऋषि की प्रसिद्धि भूलोक के साथ साथ स्वर्गलोक तक फैली हुई थी। इसलिए इस क्षेत्र में ऐसे कई ऐसे ऋषि थे जो गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते थे। एक बार सभी ऋषियों ने गौतम ऋषि पर गौहत्या का आरोप लगा दिया। सभी ने कहा कि इस हत्या के पाप के प्रायश्चित में देवी गंगा को यहां लेकर आना होगा। तब गौतम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना करके पूजा शुरू कर दी। ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी और माता पार्वती वहां प्रकट हुए। भगवान ने वरदान मांगने को कहा। तब ऋषि गौतम से शिवजी से देवी गंगा को उस स्थान पर भेजने का वरदान मांगा। देवी गंगा ने कहा कि यदि शिवजी भी इस स्थान पर रहेंगे, तभी वह भी यहां रहेगी। गंगा के ऐसा कहने पर शिवजी वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप वास करने को तैयार हो गए और गंगा नदी गौतमी के रूप में वहां बहने लगी। गौतमी नदी का एक नाम गोदवरी भी है।

गोदावरी का यहाँ पर एक विशेष महत्व है, कालसर्प दोष निवारण पूजा के लिए पुरे विश्व से लोग त्र्यंबकेश्वर आते है। ऐसी मान्यता है की गोदावरी में स्नान करने पे पश्चात कालसर्प दोष निवारण की पूजा करने से मनुष्य को सारे दोषों से मुक्ति मिल जाती है। त्र्यंबकेश्वर से थोड़ी ही दूरी पर पंचवटी स्थित है, जहाँ भगवान् श्रीरामचंद्र जी ने वनवास का कुछ समय व्यतीत किया था, पंचवटी वही स्थान है जहाँ पर लक्ष्मण जी ने सूर्पनखा की नाक काटी थी, और श्रीराम ने खर और दूषण नामक रावण के अनुयायी राक्षसों का वध किया था।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों एक साथ शिवलिंग में स्थापित हैं
त्र्यंबकेश्वर मंदिर बहुत ही प्राचीन है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग हैं। ये तीन शिवलिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाने जाते हैं। त्र्यबंकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मगिरी को शिव स्वरूप माना जाता है। नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है। गंगा द्वार पर्वत पर देवी गोदावरी यां गंगा का मंदिर है। मूर्ति के चरणों से बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो कि पास के एक कुंड में जमा होता है।

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