भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग द्वितीय ज्योतिर्लिंग है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित है। यह मंदिर कृष्णा नदी के तट पर शैल पर्वत पर स्थित है इसे श्री शैल पर्वत भी कहा जाता है। सभी शक्तिपीठों में से महा शक्तिपीठ मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर को अधिक पवित्र माना गया है। यह हैदराबाद से 250 किलोमीटर दूर कुरनूल के पास में स्थित है। ग्रंथों के अनुसार हिंदुओं के लिए श्री शैल पर्वत का अधिक महत्व है और इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस पर्वत पर जो व्यक्ति भगवान शिव की पूजा अर्चना करता है वह अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल पाता है। और भगवान शिव की कृपा से उसके सारे दुख नष्ट हो जाते हैं। उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती है। शिव पुराण के अनुसार यह बताया गया है कि मल्लिका का अर्थ मां पार्वती और अर्जुन भगवान शिव को कहा गया है।
मलिकार्जुन ज्योर्तिलिंग का पौराणिक कथा
भगवान शिव और पार्वती के 2 पुत्र हैं जिनका नाम गणेश और कार्तिकेय है एक दिन भगवान गणेश और कार्तिकेय विवाह के लिए आपस में झगड़ रहे थे और झगड़ते – झगड़ते अपने माता पिता के पास झगड़ा सुलझाने के लिए गए। भगवान शिव और पार्वती जी ने झगड़े का कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि पहले किसका विवाह होगा इसी विषय में झगड़ा हो रहा है। यह सुनकर माता पार्वती ने झगड़े के समाधान के लिए दोनों भाइयों से कहां की जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा उसी का विवाह पहले होगा, माता पार्वती के द्वारा ऐसा सुनकर कार्तिकेय जी ने पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। कार्तिकेय का वाहन मोर है और गणेश जी का वाहन चूहा है लेकिन भगवान गणेश बहुत ही बुद्धिमान थे। जब कार्तिकेय परिक्रमा के लिए वहां से चले गए तब गणेश ने कुछ विचार किया उसके बाद फिर अपने माता पिता से एक स्थान पर बैठने का आग्रह किया। उसके बाद अपने माता पिता का 7 बार परिक्रमा किया जिससे पृथ्वी की परिक्रमा से मिलने वाले फल की प्राप्ति की और शर्त जीत गए।
उनकी यह बुद्धि देखकर भगवान शिव और पार्वती बहुत ही प्रसन्न हुए और गणेश जी का विवाह कराया पृथ्वी की परिक्रमा पूरा कर जब कार्तिकेय जी वापस आए तो गणेश जी का विवाह देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। तब उसी समय कार्तिकेय जी ने अपने माता-पिता के चरण छू कर वहां से चले गए। जब माता पार्वती और भगवान शिव को पता चला कि कार्तिकेय जी नाराज हो कर चले गए तब उन्होंने नारद जी को मनाने के लिए भेजें और कहां की कार्तिकेय जी को मना कर घर वापस लाएं। क्रौंच पर्वत पर नारद जी कार्तिकेय जी को मनाने पहुंचे और मनाने का बहुत प्रयत्न किया। कार्तिकेय जी ने नारद जी की एक न सुनी अंत में निराश होकर नारद जी वापस चले गए और माता पार्वती और भगवान शिव से सारा वृत्तांत सुनाया।
यह सुन माता पार्वती भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर कार्तिकेय जी को मनाने पहुंची। माता पिता के आगमन को सुन कार्तिकेय जी 12 कोस दूर चले गए तब भगवान शिव वहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से वह स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से प्रसिद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि वहां पर पुत्र स्नेह में माता पार्वती हर पूर्णिमा और भगवान शिव हर अमावस्या के दिन वहां आते हैं।
इस स्थान पर माता सती का एक अंग गिरने से यह स्थान शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यहां मंदिर में महालक्ष्मी के रूप में अष्टभुजा मूर्ति स्थापित है यह स्थान बहुत ही पवित्र माना गया है यहां भक्तों की लंबी कतार दर्शन के लिए लगता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व-
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है। यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। भारतवर्ष में इस ज्योतिर्लिंग को दक्षिण भारत का कैलाश भी कहा गया है, मान्यताओं के अनुसार इसके दर्शन मात्र से ही सभी लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं, हिंदू धर्म पुराणों में बताया गया है कि मल्लिका अर्जुन ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त रूप से दिव्य ज्योतियाँ विराजमान है
51 शक्तिपीठों में से 1 शक्तिपीठ यह भी है। यहां एक जगदंबा माता का मंदिर भी है और यहां सावन के महीने में भक्तों की अधिक भीड़ लगती है दर्शन के लिए यहां भक्तों की लंबी कतार में लाइन लगती है।