महाकालेश्वर दर्शन से मिलेगी काल के भय से मुक्ति

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित महाकालेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में तीसरा ज्योतिर्लिंग मन जाता है। क्षिप्रा नदी के किनारे स्थिति महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपना एक बहुत ही खास महत्त्व है कहा जाता है कि महाकाल के भक्तों की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती।
अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का,
काल भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।
मतलब साफ़ है महाकाल के भक्तों का काल भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, तो चलिए जानते हैं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? इसकी पौराणिक कथा क्या है?

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
शिव पुराण की कथा के अनुसार, उज्जैनी में चंद्रसेन नाम का राजा शासन करता था, जो शिव भक्त था। भगवान शिव के गणों में से एक मणिभद्र से उसकी मित्रता थी एक दिन मणिभद्र ने राजा को एक अमूल्य चिंतामणि प्रदान की, जिसको धारण करने से चंद्रसेन का प्रभुत्व बढ़ने लगा। यश और कीर्ति दूर दूर तक फैलने लगी। दूसरे राज्यों के राजाओं में उस मणि को पाने की लालसा जाग उठी। कुछ राजाओं ने चंद्रसेन पर हमला कर दिया। राजा चंद्रसेन वहां से भागकर महाकाल की शरण में आ गया और उनकी तपस्या में लीन हो गया। कुछ समय बाद वहां पर एक विधवा गोपी अपने 5 साल के बेटे साथ वहां पहुंची। बालक राजा को शिव भक्ति में लीन देखकर प्रेरित हुआ और वह भी शिवलिंग की पूजा करने लगा। बालक शिव आराधना में इतना लीन हो गया कि उसे मां की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। उसकी मां उसे भोजन के लिए बार बार आवाज लगा रही थी। बालक के न आने पर गुस्साई मां उसके पास गई और उसे पीटने लगी। शिव पूजा की सामग्री भी फेंक दी। बालक मां के इस व्यवहार से दुखी हो गया।

तभी वहां पर चमत्कार हुआ, भगवान शिव की कृपा से वहां पर एक सुंदर मंदिर निर्मित हो गया, जिसमें दिव्य शिवलिंग भी था और उस पर बालक द्वारा अर्पित की गई पूजा सामग्री भी थी। इस तरह से वहां पर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति हुई। इस घटना से उस बालक की मां भी आश्चर्यचकित रह गई।

जब राजा चंद्रसेन को इस बात की सूचना मिली तो वह भी महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने पहुंच गया। जो राजा मणि के लिए चंद्रसेन पर हमला कर रहे थे, वे युद्ध का मार्ग छोड़कर महाकाल की शरण में आ गए। इस घटना के बाद से ही भगवान महाकाल उज्जैनी में वास करते हैं। जिस प्रकार से काशी के राजा बाबा विश्वनाथ है, वैसे ही उज्जैन के राजा भगवान महाकाल हैं।

क्यों होती है भस्म आरती?
शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टि का सार है। एक दिन पूरी सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित होनी है। सृष्टि के सार भस्म को भगवान शिव सदैव धारण किए रहते हैं। इसका अर्थ है कि एक दिन यह संपूर्ण सृष्टि शिवजी में विलीन हो जाएगी। भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के वृक्ष की लकड़ियों को एक साथ जलाया जाता है। इस दौरान उचित मंत्रोच्चार भी किए जाते हैं। इन चीजों को जलाने पर जो भस्म प्राप्त होती है, उसे कपड़े से छान लिया जाता है। इस प्रकार, तैयार की गई भस्म भगवान शिव को अर्पित की जाती है। आपको बता दें कि पौराणिक काल में भस्म आरती के लिए चिता की भस्म का उपयोग किया जाता था पर कालांतर में चिता की भस्म के स्थान पर मानव निर्मित भस्म का उपयोग किया जाने लगा।

पापों से मिलेगी मुक्ति
ऐसी मान्यताएं हैं कि शिवजी को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाना चाहिए। जिस प्रकार भस्म से कई प्रकार की वस्तुएं शुद्ध व साफ की जाती हैं, उसी प्रकार भगवान शिव को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी। साथ ही, कई जन्मों के पापों से भी मुक्ति मिल जाती है। महाकाल की पूजा में भस्म का विशेष महत्व है और यही इनका सबसे प्रमुख प्रसाद है। ऐसी धारणा है कि शिव के ऊपर चढ़े हुए भस्म का प्रसाद ग्रहण करने मात्र से रोग दोष से मुक्ति मिलती है।

महाकाल लोक
महाकाल लोक का उदघाटन पिछले साल 2022 में माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा किया गया, जिसके बाद इसे आम जनता के लिओए भी खोल दिया गया। आज महाकाल लोक को देखने लोग दूर दूर से आते है और श्री महाकाल ज्योतिर्लिंग के दर्शन के साथ साथ शिव के अनेक दूसरे रूपों का भी दर्शन करते है। इस महाकाल लोक में शिवजी द्वारा विश्वकल्याण के लिए किये गए महासुरों के वध को दिखाया गया है जिसमे त्रिपुरासुर वध, जालंधर वध के साथ और दूसरे दानवों के वध और शिवजी के जीवन की दूसरी मुख्य घटनायें देखने को मिलती हैं।