हम हर साल शरद पूर्णिमा पर खीर बनाते है, रातभर खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखते है फिर सुबह प्रसाद की तरह उसे ग्रहण करते हैं। पर ऐसा क्यों किया जाता है ये सवाल सभी के मन में चलता रहता है, पर जवाब नहीं मिलता। शरद पूर्णिमा Sharad Purnima भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में विशेष महत्व रखती है। यह दिन वर्ष के उन कुछ खास मौकों में से एक है जब चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में होता है, और मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। इस शुभ अवसर पर खीर बनाने और उसे रातभर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आइए जानते हैं कि शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है।
धार्मिक मान्यता
हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा को अत्यधिक शुभ दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों को धन-धान्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। खीर, जो चावल, दूध और चीनी से बनाई जाती है, इसे मां लक्ष्मी का प्रिय भोजन माना जाता है। इसे शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की रोशनी में रखकर भगवान को अर्पित किया जाता है और अगली सुबह इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी किरणों के माध्यम से अमृत का संचार करता है, और उस अमृत से युक्त खीर स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक बन जाती है।
चंद्रमा और खीर का वैज्ञानिक संबंध (Sharad Purnima)
इस पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने का एक वैज्ञानिक कारण भी है। आयुर्वेद के अनुसार, इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष गुण होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माने जाते हैं। दूध और चावल से बनी खीर जब चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है, तो उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं। माना जाता है कि इससे पाचन तंत्र में सुधार होता है, मन को शांति मिलती है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। यह विशेष खीर एक प्राकृतिक ठंडक देने वाला भोजन भी होता है, जो शरीर को संतुलित करने में मदद करता है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
आयुर्वेद के अनुसार, शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के समय वातावरण में विशेष प्रकार की शीतलता होती है, जो शरीर के ‘पित्त दोष’ को शांत करने में मदद करती है। पित्त दोष को संतुलित करने के लिए ठंडी और पौष्टिक खीर का सेवन इस समय विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। दूध और चावल का संयोजन शरीर में ठंडक प्रदान करता है और मानसिक शांति भी देता है।
समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक
आज के दिन (Sharad Purnima) पर खीर को भगवान को अर्पित करना और परिवार के साथ इसे प्रसाद के रूप में बांटना समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस दिन खीर खाने से पूरे परिवार में सुख-शांति और धन-धान्य की वृद्धि होती है। धार्मिक ग्रंथों में भी इसे एक महत्वपूर्ण रस्म के रूप में वर्णित किया गया है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
व्रत और उपवास के बाद खीर का महत्व
आज के दिन (Sharad Purnima) पर कई लोग उपवास रखते हैं और रात को खीर का सेवन करते हैं। उपवास के बाद शरीर को पोषण की जरूरत होती है, और खीर जैसा हल्का और पौष्टिक भोजन शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और कैल्शियम का संतुलन शरीर को ताकत देता है और इसे आसानी से पचाया जा सकता है, जो उपवास के बाद आदर्श भोजन है। शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने और उसे चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा धर्म, विज्ञान और स्वास्थ्य के बीच का एक अद्भुत संगम है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी इसे सेहत के लिए लाभकारी माना गया है। शरद पूर्णिमा की खीर को चंद्रमा के अमृतमय प्रभाव से युक्त माना जाता है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से संतुलन और समृद्धि लाती है।