Maa Chandraghanta – हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व एक विशेष महत्व रखता है, जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन्हीं में से एक प्रमुख रूप हैं माता चंद्रघंटा। नवरात्रि के तीसरे दिन, श्रद्धालु माता चंद्रघंटा की आराधना करते हैं, जो कि साहस, धैर्य और शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं।
माता चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) का स्वरूप अत्यंत सुंदर और आकर्षक है। उनका रंग सुनहरा है और वे अक्सर तीन आँखों और आठ भुजाओं के साथ दिखाई देती हैं। उनका भव्य स्वरूप बड़ा ही सौम्य दिखाई देता है। वे आमतौर पर विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों के साथ दिखती हैं, जैसे त्रिशूल, तलवार, ढाल और फूलों की माला।देवी मां (Maa Chandraghanta) का वर्णन भारतीय शास्त्रों में अत्यंत सुंदरता से किया गया है। उन्हें तीन आँखों वाली, सोने के रंग की और आठ भुजाओं वाली देवी के रूप में चित्रित किया गया है। उनकी एक भुजा में त्रिशूल, दूसरी में ढाल, तीसरी में तलवार और अन्य भुजाओं में विभिन्न अस्त्र होते हैं। माता का यह रूप न केवल भक्तों को सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि उन्हें मानसिक स्थिरता और आत्मविश्वास भी देता है।
माता चंद्रघंटा की पूजा का महत्व
मां चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) की पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और वे डर तथा नकारात्मकता से मुक्त होते हैं। इस दिन उपवास रखने से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से, इस दिन “ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः” मंत्र का जाप किया जाता है, जो भक्तों को शक्ति और साहस प्रदान करता है।
चंद्रघंटा माता की कथा
माता चंद्रघंटा की कथा का वर्णन विभिन्न पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच लगातार युद्ध चल रहा था, तब असुरों की बढ़ती शक्ति से देवता चिंतित हो गए। उन्होंने माता दुर्गा से सहायता की प्रार्थना की। माता दुर्गा ने उनकी प्रार्थना सुनकर असुरों को नष्ट करने का निर्णय लिया।
मां दुर्गा ने अपने तीसरे स्वरूप में माता चंद्रघंटा का अवतरण किया। उनका यह रूप अत्यंत शक्तिशाली और सौम्य था। माता चंद्रघंटा ने अपने सिर पर चाँद के आकार की घंटी धारण की, जो उनके सौम्य स्वभाव और नकारात्मकता को दूर करने की शक्ति का प्रतीक थी।जब माता चंद्रघंटा युद्ध भूमि पर आईं, तो उन्होंने अपने त्रिशूल और तलवार के बल पर असुरों का संहार शुरू कर दिया। उनकी शक्ति और साहस ने देवताओं में नई ऊर्जा का संचार किया। उन्होंने अपने भक्ति और शक्ति से असुरों को पराजित किया, जिससे देवताओं को विजय प्राप्त हुई।
माँ चंद्रघंटा की दूसरी कथा
एक अन्य कथा के अनुसार धरती पर जब राक्षसों का आतंक बढ़ने लगा तो दैत्यों का नाश करने के लिए मां चंद्रघंटा ने अवतार लिया था। उस समय महिषासुर नाम के दैत्य का देवताओं के साथ युद्ध चल रहा था। महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन हथियाकर स्वर्ग लोक पर राज करना चाहता था।
इसके बाद देवता त्रिदेव यानि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे। ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों ने देवताओं की बात सुनकर क्रोध प्रकट किया। इन त्रिदेवों के क्रोध अग्नि से एक दैवीय ऊर्जा निकली जिसने एक देवी का अवतार लिया। ये देवी मां चंद्रघंटा थीं।
इन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना वज्र, सूर्य ने अपना तेज, और बाकी सभी देवताओं ने अस्त्र शस्त्र प्रदान किए। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने असुरों का वध करने के बाद महिषासुर का वध किया।
तप, साधना, ज्ञान और शक्ति की देवी मां ब्रह्मचारिणी
माता की पूजा की विशेषता और प्रभाव
माता चंद्रघंटा के पूजा से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। यह दिन भक्तों के लिए एक नए आरंभ का प्रतीक होता है, जब वे अपनी समस्याओं का सामना करने का साहस जुटाते हैं। माता की कृपा से सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, और भक्तों में आत्मविश्वास का संचार होता है।
इस प्रकार, माता चंद्रघंटा का स्वरूप और उनकी पूजा हमें साहस, शक्ति और मानसिक शांति का मार्ग दिखाती है। नवरात्रि के इस दिन माता की आराधना करके, भक्त उनकी अनंत कृपा प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में सकारात्मकता लाते हैं।