आसमान में आज भी चमकती है “अंतरिक्ष परी” की यादें

एक भारतीय महिला जिन्होंने एक बार नहीं बल्कि दो बार अंतरिक्ष पर कदम रखा। ये सवाल सुनते ही उस वंडर वूमेन की याद आ जाती है, जो आज हमारे बीच तो नहीं पर उनका कार्य हमें उनकी याद दिला ही देता है। जी हां, यहां बात हो रही कल्पना चावल की। जिनका लक्ष्य बचपन से ही तय था, की उन्हें एरोनॉटिक इंजीनियर बनना है, तो बस वे जुटी रहीं अपने मिशन के लिए और चलती रहीं उसी राह पर। जब जिंदगी सपने को सच बना ले तो बस उसके साथ ही जीना और मरना चाह बन जाती है, और ऐसा ही हुआ। कल्पना चावला ने अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अपना सारा जीवन अपने काम को समर्पित कर दिया। आज उनका जन्मदिवस है, वे धरती पर तो नहीं और आसमान में उनकी चमक आज भी मौजूद है।

अंतरिक्ष परी के नाम से जाने जाने वाली कल्पना चावला को अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला के रुप में जाना जाता है। वे स्वाभाव से मजबूत इरादें रखने वाली और किसी भी चीज से ना डरने वाली महिला थी। वे बचपन से ही पिता का हाथ थामें स्थानीय फ्लाइंग क्लब्स में जाती थीं।

कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च साल 1962 में हरियाणा के करनाल में हुआ था, उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और फिर 1982 में अमेरिका चली गईं। वहां यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्सस से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया। 1986 में उन्होंने दूसरी मास्टर्स डिग्री ली, इसके बाद उन्होंने पीएचडी पूरा किया। इनके पिता का नाम बंसारी लाल और मां का नाम संयोगिता था।

कल्पना चावला को भारत का गौरव कहा जाता है इसके साथ ही वे उन हजारों लड़कियों की प्रेरणा है, जो इस क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहती हैं। कल्पना चावला 372 घंटे में अंतरिक्ष में यात्रा करने वाली पहली भारतीय महिला थीं इसके साथ ही उन्होंने पृथ्वी के चारों ओर 252 चक्कर पूरे किए थे। कोलंबिया शटल हादसे के दौरान उन्होंने अपनी जान गंवा दी। उनकी उपलब्धियां भारत और विदेश में बहुत अहम मानी जाती है। कल्पना चावला जैसी बहादुर और साहसी महिला आज जहां भी होंगी, दुनियाभर के लोगों की दी जा रही बधाईयां उन तक जरुर पहुंच रही होगी। तारों की तरह चमकती कल्पना चावला, आज खुद एक तारा बन चमक रहीं है, हमारे बीच, खुले आसमान में।