“पय्योली एक्सप्रेस” की प्रतिभा ऐसी, जहां जाती थीं दर्शकों की फेवरेट बनी

कठिन गडर को देख कर रास्ता बदल लेना आसान होता है, पर उन रास्ते को कोई पार कर ले तो उसका नाम हमेशा के लिए स्वर्णिम इतिहास में लिखा रह जाता है। पीटी उषा वहीं नाम है, भारत की पहली महिला एथलीट जिन्होंने जीवन के संघर्ष से कभी हार नहीं मानी। इनकी जीत का जितना भी जिक्र किया जाए कम ही है। इनके जीवन से जुड़े कुछ खास पहलुओं पर आज इनके जन्मदिवस पर नज़र डालते हैं…

प्रतिभा के बदौलत कमाएं कई सारे नामम 

पीटी उषा का जन्म 27 जून 1964 में केरल के पय्योली में हुआ, आज वे अपना 59वां जन्मदिन मना रही हैं। इनका पूरा नाम “पिलावुळ्ळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा” हैं पर अपनी प्रतिभा से उन्होंने कई और नाम कमाएं हैं। किसी के लिए वे “क्वीन ऑफ इंडियन ट्रैक” तो किसी के लिए “उड़न परी” तो कहीं ’द पय्योली एक्सप्रेस” के नाम से जानी जाती है। 

दर्शकों की बन जाती थीं फेवरेट

पीटी उषा की दौड़ का असर ऐसा था की वे जहां भी प्रतियोगिता में जाती थीं, दर्शकों की फेवरेट बन जाती थीं। उनकी प्रतिभा का पता तब चला जब वे सिर्फ 9 साल की थीं। स्कूल की पहली ही दौड़ में उन्होंने चैंपियन को हरा दिया था, जो उनसे तीन साल सीनियर था। मौजूदा शिक्षक हैरान रह गए। इसके बाद तो पीटी उषा की चर्चा हर तरफ होने लगी, और वे केरल सरकार के स्थापित किए स्पोट्स स्कूल में शामिल हो गईं।

पदकों की दौड़ में भी सबसे आगे

1980 के दशक में अधिकांश समय तक एशियाई ट्रैक-एंड-फील्ड इवेंट्स में पीटी उषा हावी रहीं। जहां उन्होंने कुल 23 पदक जीते, जिनमें से 14 स्वर्ण पदक थे। ये मेडल उन्होंने 200 मीटर, 400 मीटर और 1600 मीटर की रेस में हासिल किए। वहीं, 100 मीटर की रेस में वह दूसरे स्थान पर रहीं। साल 1983 में पीटी उषा को अर्जुन अवॉर्ड और 1985 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। आज पीटी उषा राज्यसभा की सांसद हैं, जहां वे अपनी नई प्रतिभा का बखान कर रही हैं। वे जहां भी रहे जिस भी पद पर काम करें पर उनके फैंस के वे हमेशा फेवरेट रहेंगी। देश के लिए हासिल की उनकी जीत को हमेशा याद किया जाता रहेगा। खेल जगत में उनके बेहतरीन योगदान को कभी नहीं भूला जा सकता है।