12वां ज्योतिर्लिंग है घृष्णेश्वर, शिव की कृपा से जीवित हुआ था घुष्मा का पुत्र

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (12 Jyotirling) भारत के महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद में एल्लोरा गुफा के निकट स्थित हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों (12 Jyotirling) में से एक हैं जो कि भगवान शिव को समर्पित हैं और यह दर्शनीय स्थान यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल हैं। घृष्णेश्वर मंदिर का निर्माण लगभग 13वीं शताब्दी के आसपास हुआ। घृष्णेश्वर (12 Jyotirling) मंदिर को घुश्मेस्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं।

पौराणिक है घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास

12 jyotirling

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (12 jyotirling) मंदिर की स्थापना की वास्तविक तिथि की कोई प्रमाणिकता तो हैं। लेकिन इस मंदिर के बारे में कहा जाता हैं कि इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी से भी पहले किया गया था। सोमनाथ मंदिर की तरह ही इस मंदिर पर भी मुग़ल आक्रांताओं ने कई बार हमले किए। मंदिर के आसपास के क्षेत्र में 13वीं और 14वीं शताब्दी के बीच इस इलाके में कई मराठा-मुग़ल संघर्ष हुए। जिनकी वजह से यह मंदिर भी क्षतिग्रस्त हो गया।

16वीं शताब्दी के दौरान बेलूर के प्रमुख के रुप में छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा मालोजी भोसले ने इस मंदिर को दोबारा निर्मित करवाया था। हालाकि 16वीं शताब्दी के बाद मुगल सेना ने घृष्णेश्वर मंदिर पर फिर से कई हमले किए। सन् 1680 और 1707 के दौरान हुए मुगल मराठा युद्ध में यह मंदिर फिर से क्षतिग्रस्त हुआ और अंतिम बार इसका पुनर्निर्माण 18वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी रानी अहिल्या बाई ने करवाया।

उन्नत वास्तुकला का उदहारण है घृष्णेश्वर (12 jyotirling) मंदिर

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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में पारंपरिक दक्षिण भारतीय वास्तुकला को देखा जा सकता है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर में आंतरिक कक्ष और एक गर्भगृह बना हुआ है। यह संरचना लाल रंग के पत्थरों से बनी हुई है और इसका निर्माण 44,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर है। मंदिर परिसर में पांच स्तरीय लंबा शिखर और कई स्तंभ बने हुए हैं।

मंदिर के शिखर और स्तंभों पर पौराणिक जटिल नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में बनी लाल पत्थर की दीवारों पर ज्यादातर भगवान शिव और भगवान विष्णु के दस अवतारों कथा को दर्शाया गया है। गर्भगृह में पूर्व की ओर शिवलिंग है और इसके मार्ग में नंदिस्वर की मूर्ति के दर्शन भी किए जा सकते हैं।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी पति-पत्नी के जोड़े सुधर्मा और सुदेहा की कहानी से शुरु होती हैं। दोनों अपने विवाहिक जीवन में खुश थे, लेकिन वह संतान सुख की प्राप्ति से वंचित थे। सुदेहा कभी माँ नही बन सकती है यह प्रमाणित हो चुका था। इसलिए सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुष्मा के साथ अपने अपने पति सुधर्मा का विवाह करवा दिया। समय व्यतीत होने लगा और घुश्मा के गर्व से एक खूबसूरत बालक ने जन्म लिया। लेकिन धीरे-धीरे अपने हाथों से पति, प्रेम, घर-द्वार, मान-सम्मान को छिनते हुए देख सुदेहा के मन में ईर्ष्या के बीज अंकुरित होने लगे।

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Grishneshwar Mahadev

वहीं सुधर्मा की दूसरी पत्नी घुष्मा भगवान शिव की परम भक्त थी। घुष्मा प्रतिदिन सुबह उठकर भगवान शिव के 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका पूजन करती और फिर उन शिवलिंगों को तालाब में डाल देती थी। एक दिन सुदेहा ने मौका देखकर घुष्मा के बेटे की हत्या कर दी और उसके शव को उसी तालाब में डाल दिया। जिसमे घुष्मा भगवान शिव के पार्थिव शिवलिंगों का विसर्जन करती थी।

बालक की खबर सुनकर चारों ओर हाहाकार मच गया। लेकिन घुष्मा प्रतिदिन की तरह शिवलिंग बनाकर शांत मन से पूजन करने में लगी रही और जब वह शिवलिंग को तालाब में विसर्जन करने के लिए गई तो उसका पुत्र तालाब से जीवित बाहर निकल आया। साथ ही साथ भगवान शिव ने भी घुष्मा को दर्शन दिए।

सुदेहा के कृत्य से रूष्ठ भोलेनाथ उसे दंड और घुष्मा को वरदान देना चाहते थे। लेकिन घुष्मा ने सुदेहा को माफ़ करने के लिए विनती की और जन कल्याण के लिए शंकर भगवान को इस स्थान पर निवास करने की प्रार्थना की। घुष्मा की विनती स्वीकार करके भोलेनाथ ज्योतिर्लिंग के रुप में यही निवास करने लगे और यह स्थान कालांतर में घुष्मा के नाम के कारण घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रसिद्ध हुआ।

ये हैं 12 ज्योतिर्लिंग

  1. सोमनाथ
  2. मल्लिकार्जुन
  3. महाकालेश्वर
  4. ओमकारेश्वर
  5. केदारनाथ
  6. भीमाशंकर
  7. विश्वनाथ
  8. त्र्यंबकेश्वर
  9. वैजनाथ
  10. नागेश्वर
  11. रामेश्वर
  12. घृष्णेश्वर (घुश्मेश्वर)