शारदीय नवरात्रि का पहला दिन, माता शैलपुत्री की विशेष पूजा से मिलेगी सुख-समृद्धि

Maa Shailputri – नवरात्रि देवी दुर्गा की पूजा का एक महापर्व है । नवरात्रि पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न शक्तिपीठों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना करने से जीवन के सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होने वाले इस उत्सव (Maa Shailputri) में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
Maa Shailputri
नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री (Maa Shailputri) की आराधना के लिए समर्पित है। यह दिन न केवल नवरात्रि की शुरुआत करता है, बल्कि यह शक्ति, साहस और धैर्य का प्रतीक भी है। मां शैलपुत्री (Maa Shailputri) का स्वरूप पर्वतों की रानी और दुर्गा का शक्तिशाली रूप है। इस दिन भक्तगण विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और मां से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। देवी की आराधना के साथ-साथ भक्त उपवासी रहकर साधना में लीन होते हैं, जो इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है।

कौन हैं माता शैलपुत्री?

माता शैलपुत्री, देवी दुर्गा के नौ रूपों में से पहले स्वरूप हैं। उनका नाम “शैल” (पर्वत) और “पुत्री” (बेटी) से बना है, जो उन्हें पर्वतों की देवी के रूप में दर्शाता है। माता शैलपुत्री का स्वरूप शांत और सौम्य होता है। माता का यह रूप भक्तों के हृदय में शक्ति और साहस का संचार करता है। पर्वतराज हिमालय के घर में इनका जन्म हुआ था इसलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। Maa Shailputriमाता शैलपुत्री (Maa Shailputri) को अक्सर एक सफेद रंग की गाय और तीर-धनुष के साथ चित्रित किया जाता है। उनका यह स्वरूप शक्ति और साहस का प्रतीक है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है, जो जीवन की सुंदरता और शक्ति को दर्शाता है।

मां शैलपुत्री (Maa Shailputri) के जन्म की कथा

माता शैलपुत्री का जन्म हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती की पुत्री के रूप में हुआ था। देवी की कथा के अनुसार, उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

Maa Shailputri

इस प्रकार, माता शैलपुत्री को माता दुर्गा का पहला रूप माना जाता है। ज्ञात हो कि माता शैलपुत्री को देवी पार्वती का ही स्वरुप मन गया है।

मां शैलपुत्री का महत्व

मां शैलपुत्री (Maa Shailputri) का नाम पर्वतों की देवी के रूप में स्थापित है। उनका स्वरूप बहुत ही शांत और सौम्य है। भक्तों का मानना है कि मां की आराधना से जीवन में सकारात्मकता और शक्ति का संचार होता है। यह दिन विशेष रूप से नए आरंभ के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है, जहां भक्त नई ऊर्जा और उत्साह के साथ अपने कार्यों की शुरुआत करते हैं।

ऐसे करें माता शैलपुत्री (Maa Shailputri) की पूजा

माता शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिनकी जाती है। इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। फिर, एक विशेष स्थान (घर के मंदिर) पर मां की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके साथ ही लाल फूल, नारियल, फल और मिठाइयाँ अर्पित करते हुए मां की आरती करना चाहिए। कई लोग पूजा के साथ व्रत भी रखते हैं। पूजा उपरांत माता शैल पुत्री के बीज मंत्र का जाप भी करना शुभ माना जाता है।

  • माता शैलपुत्री का बीज मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।

माता शैलपुत्री के इन मंत्रों का जप अगर आप नवरात्रि के पहले दिन करते हैं तो माता की कृपा आप पर बरसती है। आप बिना व्रत रखे भी इन मंत्रों के जप से माता की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि मंत्र जप करते समय इस बात का ध्यान रखें कि मंत्र का उच्चारण सही तरीके से करें।

मां शैलपुत्री की आराधना के साथ नवीनीकरण और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है। इस दिन की आराधना से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने की संभावना होती है, जिससे भक्त अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।