इस लेडी सिंघम का नाम सुनकर कांपते हैं आतंकी, अब तक कर चुकीं हैं कई एनकाउंटर

देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा बचपन से ही उनके दिलो-दिमाग में बसा हुआ था। हालात ने उनका साथ नहीं दिया, परिवार भी उसकी इच्छाओं के लिए कुछ न कर पाया, लेकिन बावजूद इसके उसने उस सपने को मरने नहीं दिया और बन गई देश की जांबाज पुलिस ऑफिसर(DSP Shahida Parveen)।

ऐसी पुलिस ऑफिसर जिनकी गोली ने न जाने कितने ही आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया। ये कहानी है जम्मू-कश्मीर पुलिस की पहली महिला पुलिस अधिकारी और जम्मू-कश्मीर में सीआईडी सेल के लिए एक पूर्व सहायक पुलिस आयुक्त रह चुकी शाहिदा परवीन की।

शाहिदा परवीन (DSP Shahida Parveen) 1995 में जम्मू कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर के तौर पर भर्ती हुईं थीं। स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में शामिल होने वाली वे पहली महिला कमांडो थी। 1997 से 2002 के बीच उन्होंने राजौरी और पुंछ जिलों में हिजबुल मुज़ाहिदीन और लश्कर-ए-तैय्यबा के कई खूंखार आतंकियों का सफाया किया। अब जम्मू-कश्मीर के लोग उन्हें कश्मीर की लेडी सिंघम कह कर बुलाते हैं।

बचपन से देखा पुलिस ऑफिसर बनने का सपना

हमारे देश में कई फेमस एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हुए है, लेकिन शाहिदा परवीन (DSP Shahida Parveen) के निशाने पर दूसरे अधिकारियों की तरह अपराधी नहीं बल्कि हमेशा खतरनाक आतंकी रहे हैं। हर रोज जिंदगी और मौत से मुठभेड़ करती इस जांबाज ऑफिसर की कहानी दूसरी महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है। शाहिदा का जन्म एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार हुआ। शाहिदा अपने छह भाई बहनों में सबसे छोटी थी। जब 4 साल की की छोटी उम्र में ही शाहिदा के सिर से पिता का साया उठ गया। घर की आमदनी काम होने के कारण पढ़ाई के बाद शाहिदा पर नौकरी का दबाव बढ़ने लगा।

टीचर की नौकरी छोड़कर पुलिस में हुईं भर्ती

परिवार की आर्थिक मदद के मकसद से शाहिदा ने टीचर की नौकरी के लिए आवेदन किया और शाहिदा को टीचर की नौकरी मिल भी गई, लेकिन उनका मन कभी अपने इस काम में नहीं लगा। साथ ही शाहिदा ने अपने उस सपने को कभी नहीं छोड़ा जो उन्होंने बचपन से देखा था। शाहिदा शुरू से ही पुलिस ऑफिसर बनकर देश और अपने राज्य जम्मू-कश्मीर की सेवा करना चाहती थीं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में आतंकियों को निर्दोष लोगों को निशाना बनाते अपने बचपन से ही देखा था। आतंकवादियों के लिए उनकी यही नफरत बड़े होने तक उनका जुनून बन चुकी थी। अपने जुनून को पूरा करने की लिए शाहिदा ने परिवार वालों से छुपकर पुलिस में भर्ती का फॉर्म भर दिया और परीक्षा दी।

आतंकी इलाकों में मिली पोस्टिंग

शाहिदा परवीन ने पुलिस परीक्षा में पास होने के बाद टीचर की नौकरी छोड़कर दी और जम्मू-कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर जॉइनिंग हो गयी। शाहिदा के पूरे संघर्ष में उनकी मां ने हमेशा अपनी बेटी का साथ दिया। पुलिस अधिकारी बनने के साथ ही शाहिदा का बचपन का सपना पूरा हो रहा था, लेकिन यहां शाहिदा का संघर्ष ख़त्म होने वाला नहीं था, असली संघर्ष तो यहां से शुरू होने वाला था।अपनी पोस्टिंग के शुरुआती दौर में शाहिदा राजौरी और पुंछ जिलों में पोस्टेड रहीं। उस दौर में पहले उन्हें आतंकी ऑपरेशन्स के लिए नहीं भेजा जाता था। उनका काम होता था जानकारियां इकट्ठी करना और अपने साथी पुलिस ऑफिसर्स को देना, लेकिन बाद में शाहिदा ने खुद आतंकियों के ऑपरेशन्स में जाना शुरू किया।

किया कई सफल ऑपरेशन्स का नेतृत्व

शाहिदा बताती हैं कि एक बार उनके सीनियर ऑफिसर ने तो ये तक कह दिया था कि एनकाउंटर करना महिलाओं का काम नहीं है। अपने सीनियर की इस बात को उन्होंने एक चैलेंज की तरह लिया और उन्होंने आतंकियों से मुठभेड़ का काम शुरू किया। अपने पहले एनकाउंटर के बाद तो शाहिदा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक कई सफल ऑपरेशन्स को अंजाम देती गईं। राजौरी, पुंछ में उन्होंने कई खूंखार आतंकवादियों को मार गिराया। एक साल में ही उन्होंने कई एनकाउंटर्स को अंजाम दिया जिसके बाद उनका ऑउट ऑफ द टर्न प्रमोशन भी मिला और वो बन गयी सब इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर।

राष्ट्रपति पदक से सम्मानित हैं शाहिदा परवीन

शाहिदा परवीन को उनकी अदम शौर्य और बहादुरी के लिए राष्टपति से पुलिस पदक भी मिल चुका है। फिलहाल शाहिदा डीसीपी के पद पर तैनात हैं, लेकिन मकसद आज भी वही है देश के सेवा, आतंकियों का खात्मा। शाहिदा परवीन जैसी अधिकारी सिर्फ कश्मीर ही नहीं बल्कि पुरे भारत की युवा शक्ति के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत है खास कर उन महिलाओं के लिए जो जीवन के संघर्षो से आगे निकलकर बनना चाहती हैं, कुछ हाशिल करना चाहती हैं।