Thursday, September 19, 2024
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“आदिपुरुष” के डायलॉग जिनका हो रहा जमकर विरोध

फिल्म आदिपुरुष (Adipurush) को लेकर विरोध शुरु हो चुका है। फिल्म आदिपुरुष (Adipurush) देखकर लौट रहे दर्शकों का कहना यही है की फिल्म जैसी भी बनी, जो भी दिखा उसे भूला दिया जा सकता है, पर फिल्म आदिपुरुष (Adipurush) के डायलॉग ! उन्हें नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता है। कल हमने बात की थी फिल्म की कहानी, कास्ट और VFX के बारे में, पर आज थोड़ा डीप में जाते हैं। जहां इस बात पर गौर करेंगे की, क्या ये रामायण हमारे बच्चों और युवाओं के लिए सही है? ये बहुत बड़ा सवाल है जिस पर ध्यान देना जरुरी है…

फिल्म आदिपुरुष (Adipurush) के डायलॉग, जिनका विरोध हो रहा है

film poster

पहला डायलॉग- लक्ष्मण बाली और सुग्रीव की लड़ाई देखकर अपने भाई प्रभु श्री राम से सुग्रीव के बारे में कहते हैं “ये तो फिसड्डी है, हमें मदद के लिए बाली के पास जाना था”।

दूसरा डायलॉग- रावण बंदी बने हनुमान जी को देखकर अपने सेवकों से बोलता है ” और कुछ काम नहीं, अब बंदरों को पकड़ने लगा है”।

तीसरा डायलॉग – इंद्रजीत हनुमान जी की पूंछ में आग लगाते कहता है “जली ना?”।

चौथा डायलॉग- हनुमान जी इंद्रजीत को रिप्लाई देते हैं ” कपड़े तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, तो जलेगी भी तेरे बाप की”।

पांचवा डायलॉग- हनुमान जी कहते हैं – “बोल दिया, जो हमारी बहनों को हाथ लगाएगा उसकी लंका ढहा देंगे”।

छटवां डायलॉग – इंद्रजीत अशोक वाटिका में हनुमान जी को देखकर कहते हैं “अपनी बुआ का बागीचा समझ के आ गए क्या ”

फिल्म आदिपुरुष (Adipurush) के डायलॉग राइटर का बयान

फिल्म के डायलॉग राइटर ने फिल्म रिलीज के बाद कई मीडिया हाउस से चर्चा की जिसमें उन्होने लाइव चैनल में ये बात रखी की “आज के यूथ के साथ जुड़ने के लिए उनकी भाषा का प्रयोग करना जरुरी है, जो हमने फिल्म आदिपुरुष में किया है”।

फिल्मों का क्या प्रभाव पड़ता है हमारे जीवन में

Adipurush

अब बात करते हैं सभी विरोधियों के विचारों की, जिनका मानना है ये रामायण हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए उचित नहीं है। पर फिल्म को बनाने वालों के अनुसार फिल्म आज के समय के हिसाब से सही है। फिल्मों का हमारे जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है इस बात को इसी से समझा जा सकता है की जब एक हीरो फिल्म में कोई सुंदर रुप-पहनावा रखता है तो न्यू जनरेशन उसे तुरंत फॉलो करती है। मार्केट में तुरंत उसी तरह के कपड़े मिलने लगते हैं।

कैसे होने चाहिए एक फिल्म के संवाद

फिल्म के संवाद और गानों को सभी अपनी निजी जीवन में शामिल करने लगते हैं। जैसे एमएस धोनी देखकर युवाओं में जोश भरता है उसी तरह गब्बर जैसे विलन को देखकर बच्चें उसकी कॉपी करने लगते हैं। मतलब साफ है थियेटर से निकली न्यू जनरेशन उस किरदार की कॉपी जरुर करेगी। जिस प्रकार कृति सेनन के साड़ी वाले सुंदर लुक ने युवतियों को साड़ी के प्रति आकर्षित किया है, उसी प्रकार हनुमान जी के नाम पर बच्चें और युवक बोलेंगे की “तेल तेरे बाप का कपड़ा तेरे बाप का तो जलेगी भी तेरे बाप की”।

न्यू जनरेशन को टारगेट कर फिल्म तैयार करना, कितना सही?

Adipurush

देश जहां एक और पश्चिमी सभ्यता से बाहर निकल रहा है। हमारा ज्ञान, धर्म, आध्यात्म, इलाज सब कुछ विदेशों में अपनाया जा रहा है। ऐसे में सिर्फ युवाओं को फिल्म से जोड़ने के लिए फिल्म का तैयार करना सही नहीं लगता है। हमारा कल सुनहरा है, यदि हम हमारी जड़ों को ना छोड़े तो। इस बात की जिम्मेदारी फिल्म निर्माताओं को भी लेनी चाहिए की जो चीज जैसी है वैसी ही उसे बताया जाए तो ही सही रहता है।

मॉर्डन आर्ट संभव है, पर मॉर्डन भगवान का चरित्र नहीं उचित लगता। घर में आज भी बच्चें माता-पिता से एक मर्यादा में रह कर बात करते हैं, और जहां मर्यादा और अनुशासन है वहीं तरक्की है। राम के नाम पर जनता को एकत्रित किया जा सकता है, पर कथा वाचक, कथा में बदलाव करें तो दस लोग खड़े हो जाते हैं। क्योंकि ये कथा सदियों पुरानी है, जिसमें भावना सबसे बड़ी ताकत है।

फिल्म के संवादों पर क्या कहा डायरेक्टर ओम राउत ने

डायरेक्टर ओम राउत को उन छोटे टीवी सीरियल से प्रेरणा लेना चाहिए जो कम बजट में हनुमान, कृष्णा, गणपति जैसे शो चला रहे हैं। जिनकी भाषा आज की ही है, पर उनकी भावना में वो प्रेम-भाव झलकता है जिससे दर्शक जुड़े रहते हैं।

आदिपुरुष तथ्यों से अलग 

1- रावण की मृत्यु नाभि में बाण मारने से हुई, ये बात देश का हर बच्चा-बच्चा जानता है। क्योंकि उसके पेट में अमृत था, जिसके बारे में रावण के भाई विभीषण प्रभु राम को बताते हैं। ये सब कैसे पता चलेगा आज के बच्चों को? उन्हें तो यही लगेगा की एक युद्ध हुआ और रावण आसानी से मारा गया।

2- हनुमान जी सूर्य को जो फल समझकर खा गए थे वह सेब नहीं था। वो फल आम था, जो सदियों से सुना जा रहा है।

3- संजीवनी बूटी के बारे में वैद्य जी ने बताया था ना की किसी स्त्री ने। और ये वैद्य ही लक्ष्मण जी को इसकी औषधी बना कर देते हैं। जिनका नाम है सुषेण वैद्य, जिनकी अहम भूमिका रही है रामायण काल में। जो इस फिल्म के माध्यम से नई पीढ़ी कभी नहीं जान पाएंगी।

आदिपुरुष फिल्म के जरिए यदि हम नई पीढ़ी को छोड़ दे दो उनका ज्ञान अधूरा और गलत ही कहलाएंगा। इससे अच्छा है रामानंद सागर जी की रामायण देखी जाएं। या बहुत अच्छा होगा की ग्रंथों को ही पढ़ाया जाएं। हां ये दौर मॉर्डन है और हमारी नई पीढ़ी हर क्षेत्र में अव्वल हैं। पर फिर भी धर्म और आस्था से जुड़े रहने के लिए नई पीढ़ी झुकना पसंद करती है।

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