देवशयनी एकादशी से प्रारंभ हो रहे चातुर्मास, शुभ कार्यों का मिलेगा विशेष लाभ

आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को पड़ने वाली एकादशी को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी के साथ ही भगवान श्री हरि विष्णु अपने धाम बैकुंठ में शयन के लिए चले जाते है। ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी से भगवन विष्णु का शयनकाल शुरू होकर प्रबोधनी एकादशी तक चलता है। इसलिए इस आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवशयनी,पद्मा या हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी के चार महीने बाद प्रबोधनी एकादशी पर भगवान विष्णु अपनी योग निंद्रा से जागते हैं। इन चार महीनों में यानि की इस चातुर्मास में सृष्टि के पालन का दायित्‍व देवादिदेव महादेव पर होता है।

कब शुरू होता है चातुर्मास

भगवान विष्णु के शयनकाल को चातुर्मास कहा जाता है। आमतौर पर ये समय चार महीने का होता है, इसलिए भी इसे चातुर्मास कहा गया है। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलने वाले चातुर्मास में धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व रहता है। ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास में सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान शिव के हाथ में होता है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में ऐसा मन गया है कि महादेव को प्रसन्न करना, किसी ओर देवी-देवता को प्रसन्न करने से आसान है। इसलिए चातुर्मास में किया गया थोड़ा पुण्य कार्य का भी उत्तम फल मिलता है। इस साल देवशयनी एकादशी 29 जून को है, यानी 29 जून से ही चातुर्मास शुरू होंगे। इस बार चातुर्मास के साथ पुरुषोत्तम मास या अधिक मास भी पड़ रहा है इसलिए यह चातुर्मास कई मायनों में खास रहने वाला है तो चलिए जानते है क्या होता है चातुर्मास और पुरुषोत्तम मास का हिन्दू धर्म में क्या महत्व है।

चातुर्मास में क्या करें और क्या ना करें ?

इन कामों की होती है मनाही

चातुर्मास के दौरान तामसिक और गरिष्‍ठ भोजन, शराब, नॉनवेज, अंडा आदि चीजों को नहीं खाना चाहिए। इस समय को संयम का समय कहा गया है। साथ ही चातुर्मास के दौरान विवाह समारोह, सगाई, सिर मुंडवाना और बच्चे का नामकरण, गृहप्रवेश जैसे तमाम मांगलिक कार्य करने की मनाही होती है। चातुर्मास के समय में दही, मूली, बैंगन और साग आदि खाने के लिए मना किया जाता है। इसका एक वैज्ञानिक कारण भी दिया गया है, भारतीय जलवायु और मौसम के अनुसार बारिश के 4 महीनों में इन वस्तुओं का उपयोग शरीर में पित्तदोष का कारक बनता है इसलिए भी चातुर्मास में इस वस्तुओं का उपरोग वर्जित माना गया है। अगर आप चातुर्मास के दौरान चार माह का व्रत रखते हैं या कोई विशेष साधना करते हैं तो इस बीच यात्रा न करें।

इन कामों को करने से होगा लाभ

ये समय साधना का समय होता है। इसमें श्रीहरि की उपासना करनी चाहिए। इस बीच आप विशेष अनुष्‍ठान, मंत्र जाप, गीता का पाठ आदि कर सकते हैं।चातुर्मास में दान-पुण्‍य का विशेष महत्‍व बताया गया है। इस बीच धन, वस्त्र, छाता, चप्पल और अन्न का दान आदि करें। इससे आपकी तमाम समस्‍याएं दूर होंगी। चातुर्मास के दौरान एक संयमित जीवन जीने का अभ्‍यास करें। सुबह जल्‍दी उठें और रात को जल्‍दी सोएं। सादा भोजन करें और समय पर भोजन करें। वाणी को संयमित रखें और सोच-समझकर बात करें।

क्या होता हैं अधिक मास

हिन्दू पंचांग के 12 महीनो में सभी दिनों को गिनने के बाद यह 354 ही होते हैं, जबकि एक वर्ष 365 दिनों का होता क्योंकि इतने वक्त में पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा पूरा करती हैं इस प्रकार हिन्दू पंचांग में 11 दिन कम होते हैं, इसलिए इन दिनों को जोड़कर प्रति तीन वर्षो में अधिक मास आता हैं, जिसे मल मास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं।

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक तीन वर्षो के बाद एक अतिरिक्त महिना आता है, जिसे अधिकमास या मलमास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता हैं। हिन्दू संस्कृति में इसका विशेष महत्व होता हैं। पुरुषोत्तम मास में महिलायें पुरे महीने व्रत, दान, पूजा पाठ एवं सूर्योदय से पूर्व स्नान करती हैं। अधिक मास में दान का विशेष महत्व है, कहते हैं इससे सभी प्रकार के दुःख कम होते हैं।

कब शुरू हो रहा हैं पुरुषोत्तम मास

इस बार मलमास की शुरुआत 18 जुलाई से हो रही है, जो 16 अगस्त तक चलने वाला है। मान्यता है कि अधिकमास में पालनकर्ता भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस मास में अगर कोई व्यक्ति विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करता है, तो भगवान विष्णु के आशीर्वाद से उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे पुण्य प्राप्त होता है। इसके फलस्वरूप साधक की हर मनोकामना भी पूर्ण होती है।