प्रभु राम की जन्मस्थली अयोध्या, जो माता सीता की ससुराल है। इस जगह एक मंदिर ऐसा है जहां के पुजारी सीता माता की सखियां माने जाते हैं। वे माता की तरह तिलक के साथ बिंदी लगाते हैं, और घूंघट डालते हैं। जिस प्रकार मिथिला (सीतामढ़ी, बिहार) में सीता जी की पूजा की जाती है, उसी प्रकार अयोध्या के रंगमहल में माता की खास पूजा की जाती है। पर मिथिला में सीता माता की पूजा का अर्थ तो समझ में आता है, पर अयोध्या में पुजारियों का यूं सखियां बनने की क्या है वजह जानते हैं..
अयोध्या में यूं तो बहुत से छोटे-बड़े मंदिर है, जो प्रभु राम से जुड़े हैं। सरयु नदी है, नदी के तट हैं, खेत खलियान और जंगल है। जो भगवान के होने के साक्षी हैं। इन्हीं में से एक है रंगमहल, जिसे रंग महल नाम बसंत के उत्सव के चलते मिला। जो यहां का सबसे खास उत्सव माना जाता है। बसंत के मौसम में यहां झूले डाले जाते हैं, जिस पर आनंद लेने के लिए लोग यहां आते हैं।
राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री सीता का विवाह राम के साथ तय हुआ। दशरथ नंदन राम ने स्वयंवर में शिवधनुष तोड़कर सीता जी से स्वयंवर में विवाह रचाया। इसके बाद वे अपने गृह नगर अयोध्या पधारे। यहां सबसे पहले सीता माता की मुंह दिखाई हुई, सभी माताओं ने उनके दर्शन किए। दशरथ जी की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने सीता जी की मुंह दिखाई की, और उन्हें रंग महल उपहार में दे दिया। तब से ही ये महल सीता जी का महल माना जाता है, और यहां के पुजारी उनकी सखी माने जाते हैं।
इस मंदिर में पुजारी माथे पर तिलक के साथ बिंदी लगाते हैं, इसके साथ ही सबसे मुख्य बात है की हर दिन की आरती के दौरान पुजारी घुंघट डालकर पूजा करते हैं। मंदिर मुख्य रुप से सीता जी का है, और भगवान राम के दूल्हे रुप की पूजा यहां होती है। यहां रहने वाले संत रसिक सम्प्रदाय के माने जाते हैं। इस मंदिर में कई विशेष त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें सावन झूला, सीता-राम विवाह, राम नवमी, जानकी नवमी और बसंत पंचमी मनाई जाती है। राम जन्मभूमि का ये मंदिर हमारे इतिहास और हमारी संस्कृति से जुड़ा है।