Friday, September 20, 2024
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“व्यथा” से समझें “परवरिश में बदलाव है जरुरी”

देश को विकसित बनाने की ओर हमारे कदम बढ़ रहे है, पर रोजाना बढ़ रहे क्राइम पर लगाम लगना भी तो जरुरी है। विकसित होने का मतलब क्या सिर्फ बड़ी-बड़ी कंपनियों की भागादारी होना, शिक्षित होना, साइंस रिसर्च में सफल होना है? आए दिन हो रही विभत्स घटनाओं पर रोक लगाना भी तो जरुरी है, हाल ही में श्रद्धा मर्डर केस के बारे में हमें हर तरफ सुनाई दे रहा है, इस घटना ने हम सभी के सामने एक सवाल खड़ा कर दिया है की एक लड़की जो शिक्षित और समझदार थी फिर भी उसके साथ ऐसी घटना कैसे हुई? कई सारे विद्वानों के अनुसार बच्चों कि परवरिश में बदलाव की बहुत जरुरत है, इस बात को समझते है एक बेहद ही खुबसूरत शॉर्ट फिल्म “VYATHAA” के जरिए….

हर लड़की की कहानी व्यथा

व्यथा हर लड़की, हर नारी की कहानी है, जो बताती है कि किस प्रकार आज भी बेटे और बेटी के जन्म पर फर्क किया जाता है। बेटे के जन्म पर दादी के चेहरे पर अलग खुशी की चमक नजर आती है और बेटी के जन्म पर बहुत सी जगह तो उनकी आरती उतरना भी लोगों को अच्छा नहीं लगता। हां आज हमारे देश की बेटियां बहुत तरक्की कर रही है, हर क्षेत्र में उनकी भागीदारी है, फिर भी हर हंसते चेहरे के पीछे एक काला दर्दनाक कल छुपा है। वो बेटी जो आज बढ़ती उम्र के साथ आगे तो निकल आयी है सफलता के शिखर पर बैठी है, पर उसके अंदर एक डर बहुत ही गहरी छाप छोड़े हुए रहता है।

हर नारी के जीवन में एक काला पन्ना

दफ्तर में बड़े-बड़े पद पर बैठी महिला जब कभी अपने जीवन के पन्नों को पलटकर देखती है तो वो उस काले पन्ने को फाड़कर फेंकना चाहती है। सब कुछ हासिल कर भी उसे रोना आता है बीते कल को याद कर। उसकी सफलता की डायरी में कुछ आंसूओं की बूंद टपककर रह जाती है, उन सवालों की तरह जिनके जबाव उसे कभी मिले ही नहीं। इन सवालों के जवाब समाज के पास है कुछ बदलाव के जरिए, यदि हर लड़का, लड़कियों के जीवन को करीब से समझ पाएं तो वो इस तरह के क्राइम को अंजाम देने का सोचेगा ही नहीं, लड़कों में भी कोमलता को पनपा जाएं ये जरुरी है। इस काम के लिए मां की भूमिका सबसे अहम होती है। वहीं दूसरी तरफ लड़कियों को ये सीखाना जरुरी है कि वे खुलकर अपनी समस्या बताएं।

आवाज उठाना है जरुरी

रेप, मर्डर, मारपीट जैसे केस में ज्यादातर महिलाएं घटना को छुपाना पसंद करती है, क्योंकि उनकी परवरिश ही ऐसे हुई है। जिसमें उन्हें ये सीखाया गया है की उनके साथ कुछ भी हो उन्हें छुपाना है, किसी से कहना नहीं है, क्योंकि लोग क्या कहेंगे, यही की लड़की में ही कोई खामी है इसलिए ऐसा हुआ। यहां भी भेदभाव होता है लड़के और लड़की का। जिसका अंजाम ये होता है कि बड़ी घटना घटित हो जाती है। जैसे श्रद्धा मर्डर केस में हुआ, मारपीट और झगड़े को छुपाते-छुपाते श्रद्धा मौत के घाट उतर गई, यदि उसकी परवरिश लड़को की तरह होती तो उसे अपनी अभिव्यक्ति की आजादी मिलती, वो पहली बार में ही आवाज उठाती और आज वो हमारे बीच सही सलामत होती।

परवरिश में बदलाव की बहुत जरुरत है, जहां लड़कों को लड़कियों के बराबर ही रखा जाए, उनके जन्म पर भी उतनी ही खुशी हो जितनी लड़कों के जन्म पर होती है। यदि आज भी हम इस अंतर को खत्म नहीं कर पाए तो घटनाओं के बढ़ने का सिलसिला जारी रहेगा। इस बात को बयां करती है शॉर्ट फिल्म “व्यथा”। बृज फिल्म्स प्रोडक्शन की यह फिल्म हमें आज की हकीकत से रुबरु कराती है। फिल्म के अंत में एक सवाल है, जो दर्शकों को हमेशा याद रहेगा की हर निर्भया को कोर्ट के नहीं बल्कि लोगों और समाज के फैसले का इंतजार है, उसे आज भी उम्मीद है कि हमारी सोसायटी में कुछ तो परिवर्तन आएगा, जहां बेटा-बेटी को लेकर भेदभाव नहीं होगा, लड़कियां खुलकर आवाज उठा सकेंगी, गलत को गलत बता सकेंगी। फिल्म “VYATHAA” कि डायरेक्टर है रीना पारीक, प्रॉड्यूस किया है सरस्वती श्रीवास्तव ने और बेहद ही सुंदर डॉयलॉग में पिरोया है लेखक अज़्म इलाहाबादी ने। फिल्म के हर शब्द, हर डॉयलॉग में सच्चाई है, जो बेहतर काम को प्रदर्शित करता है।

व्यथा फिल्म ये संदेश देती है की, बच्चों को गलत हरकत पर आवाज लगाना आना चाहिए। वे निडर होकर अपनी हर परेशानी बयां करें, क्योंकि सत्य की गूंज तेज होती है। बस कानों तक पहुंचाना जरुरी है। हर माता-पिता को इसकी जिम्मेदारी लेना चाहिए, यदि पहली बार में ही किसी को जोरदार फटकार लगा दी जाए तो यकिनन ऐसी घटनाओं में कमी आएगी। बच्चों को सीखाएं की घर हो या बाहर कोई भी उन्हें गलत तरीके से हाथ लगाता है या बदसलूकी करता है तो उसकी जानकारी वे तुरंत अपने किसी करीबी को दें, कोई पास ना हो तो जोरदार आवाज लगाकर मदद मांगे। माता- पिता भी अपने बच्चें की हर बात को गैर से सुने। बेटा और बेटी का फर्क खत्म कर, दोनों को एक जैसी परवरिश दें। हमें ये नहीं भूलना चाहिए की आज के भागते दौर में हम जिस पैसे के पीछे भाग रहे है, वह परिवार के लिए ही तो अर्जित कर रहे हैं, तो बच्चों को समय देने में कमी ना करें। बच्चें माता-पिता को बेझिझक तभी सब कुछ कह पाएंगे जब वे उनसे दोस्ताना व्यवहार रखेंगे। अच्छी परवरिश कभी भी गलत काम को अंजाम नहीं दे सकती। लड़को को लड़कियों की इज्जत करने की सीख घर से मिलेगी ना की स्कूल-कॉलेज से। हमारे समाज का ये कड़वा सच है कि “बेटियों से ज्यादा बेटों की परवरिश में ध्यान देने की आवश्यकता है”।

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