राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त( Maithili Sharan Gupt) हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे।
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
हिन्दी साहित्य के इतिहास में मैथिली शरण गुप्त( Maithili Sharan Gupt) खड़ी बोली के पहले एवं महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में ‘दद्दा’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। मैथिली शरण गुप्त( Maithili Sharan Gupt) की कृति भारत-भारती ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी भी दी थी। उनका जन्मदिन 3 अगस्त को हर वर्ष ‘कवि दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया भी किया था।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt) का जीवन परिचय
मैथिली शरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ था। उनके पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई थी। शुरुआत में पढाई में उनकी अधिक रूचि नहीं थी इसलिए घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी उनके प्रारंभिक गुरु और मार्गदर्शक थे। 12 साल की उम्र में उन्होंने ब्रजभाषा में कनकलता नाम से कविता रचना आरम्भ किया। इसके बाद वे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आये। महावीर प्रसाद द्विवेदी मैथिली शरण गुप्त के साहित्यिक गुरु थे और उन्हीं की प्रेरणा से गुप्त ने खड़ी बोली में लिखना शुरू किया। इसी 12 साल की उम्र में उनकी कवितायें खड़ी बोली की मासिक पत्रिका “सरस्वती” में प्रकाशित होना शुरू हुईं।
मैथिली शरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt) की काव्यगत विशेषताएँ
वे मुख्य रूप से द्विवेदी काल के कवि हैं और उनकी रचनाएं रामायण एवं महाभारत से अत्यंत प्रभावित हैं। इनका प्रथम काव्य संग्रह “रंग में भंग” और उसके बाद में “जयद्रथ वध” प्रकाशित हुई। उन्होंने बंगाली भाषा के काव्य ग्रन्थ “मेघनाथ वध” और “ब्रजांगना” एवं संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रन्थ “स्वप्नवासवदत्ता” का अनुवाद भी किया। खड़ी बोली को काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने का उन्होंने अथक प्रयास किया।
गुप्त जी स्वभाव से ही लोकसंग्रही कवि थे और अपने युग की समस्याओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील रहे। उनका काव्य जागरण व सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से अनुप्राणित भी था। महात्मा गांधी के भारतीय राजनीतिक जीवन में आने से पूर्व ही गुप्त जी का युवा मन गरम दल और तत्कालीन क्रान्तिकारी विचारधारा से प्रभावित हो चुका था। ‘अनघ’ से पूर्व की रचनाओं में, विशेषकर जयद्रथ-वध और भारत भारती में कवि का क्रान्तिकारी स्वर सुनाई पड़ता है। बाद में महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, और विनोबा भावे के सम्पर्क में आने के कारण वह गांधीवाद के व्यावहारिक पक्ष और सुधारवादी आन्दोलनों के समर्थक बने।
उनके काव्य की विशेषताएँ इस प्रकार उल्लेखित की जा सकती हैं-
- राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता
भूलोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ?
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल कहाँ?
संपूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है?
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है।
- गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता
- पारिवारिक जीवन को भी यथोचित महत्ता
- नारी मात्र को विशेष महत्व
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥
- प्रबन्ध और मुक्तक दोनों में लेखन
- शब्द शक्तियों तथा अलंकारों के सक्षम प्रयोग के साथ मुहावरों का भी प्रयोग
- पतिवियुक्ता नारी का वर्णन
मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाएं
जयद्रथवध, साकेत, पंचवटी, सैरन्ध्री, बक संहार, यशोधरा, द्वापर, नहुष, जयभारत, हिडिम्बा, विष्णुप्रिया एवं रत्नावली आदि उनकी प्रमुख रचनाओं के उदाहरण हैं। उनकी इन रचनाओं में राष्ट्रवाद और गांधीवाद, दार्शनिकता, रहस्यात्मकता एवं आध्यात्मिकता,नारी मात्र की महत्ता का प्रतिपादन,पतिवियुक्ता नारी का वर्णनऔर प्रकृति प्रेम देखने को मिलता है