सुरीली दास्तान-ए-जिंदगी की मल्लिका सुरैया जी

फिल्म जगत बहुत बड़ा है, जहां कई बड़ी हस्तियां उनके चाहने वालों के दिलों में राज करती हैं। ऐसी ही एक प्रतिभा हैं, जो सालों से लोगों के जहन में छाप बनाएं हुई हैं, जिनका आज जन्मदिन है। 40 से 50 के दशक की सुरों की मल्लिका सुरैया जी को जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं। वैसे तो ये हस्ती आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका हुनर है, जो कभी हमसे अलग नहीं हो पाया है। आज भी घर के किसी कोने में बैठे दादा जी या पिता जी के म्युजिक लिस्ट में सुरैया जी के गाने सुनने को मिलते ही हैं, उनके कई पुराने गीतों का रीमिक्स भी सुना जा सकता है। वे एक बेहतरीन संगीतकार के साथ अच्छी अदाकारा भी थी।

15 जून 1929 को गुजरांवाला पाकिस्तान में सुरैया जी का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम सुरैया जमाल शेख था, वे अपने माता –पिता की इकलौती संतान थी और उनकी परवरिश भी लाड़ और प्यार से हुई थी। मशहूर खलनायक जहूर, सुरैया जी के चाचा थे। जिनकी वजह से उन्हें साल 1937 में फिल्म ‘उसने क्या सोचा” में बाल कलाकार के रुप में पहला ब्रेक मिला। इसके बाद निर्देशक नानूभाई वकील ने उन्हें फिल्म ‘मुमताज’ के लिए बचपन की मुमताज के रोल के लिए चुना। इस तरह सुरैया का अभिनय करियर चल पड़ा। उनके चाहने वालों की भीड़ अक्सर उनके मुंबई के घर के बाहर देखी जाती थी। कई बार इस वजह से यातायात भी रुक जाता था।

एक बार की बात है, संगीतकार नौशाद ऑल इंडिया रेडियों पर कुछ सुन रहे थे, तभी उन्होंने सुरैया की आवाज पहली बार सुनी जो उन्हें बहुत पसंद आयी। जिसके बाद फिल्म “शारदा” से शुरु हुआ सुरैया जी का गायन करियर।

1947 में भारत की आजादी के बाद सुरैया जी के माता-पिता पाकिस्तान चले गए, पर वे भारत में ही रही। सुरैया जी का जादू 40 से 50 के दशक में चलता रहा। बड़ी-बड़ी सफल फिल्में आयी। सुप्रसिद्ध अभिनेता देव आनंद जी, सुरैया के दीवाने थे। दोनों की जोड़ी कई बार बड़े पर्दे पर देखने को मिली। जिसमें फिल्म “जीत” और “दो सितारे” सबसे ज्यादा प्रसिद्ध रहीं। देव आनंद जी ने अपनी आत्मकथा “रोमांसिंग विद लाइफ” में बताया है, की फिल्म “जीत” के सेट पर उन्होंने सुरैया जी से अपने प्रेम का इजहार किया था।

दोनों बड़े कलाकारों की जोड़ी बड़े पर्दे पर तो छायी रही पर हकिकत का रुप नहीं ले पाई। जिसकी खास वजह थी, सुरैया जी की दादी, जिन्हें देव आनंद जी कुछ खास पसंद नहीं थे। सुरैया जी ने कभी शादी नहीं की। पूरी जिंदगी अकेले मुंबई में गुजार दी, देव आनंद जी से दूर जाने का गम उन्हें इस तरह हुआ की वे काम पर ज्यादा ध्यान न दे पायी। मां के गुजरने के बाद वे पूरी तरह अकेली पड़ गई, उन्होंने लोगों से मिलना-जुलना भी बंद कर दिया। गायन भी धीरे-धीरे बंद कर दिया। सुरैया जी का नाम ही काफी था लोगों के बीच उनकी पहचान बताने के लिए, पर अंदर ही अंदर वे अकेली थी अपनी दुनिया में। 31 जनवरी 2004 को मुंबई में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।

अपने दौर में सुरैया जी इकलौती ऐसी अदाकारा थी जिन्हें अन्य लोगों से ज्यादा वेतन मिलता था। जिसकी खास वजह थी, उनका अभिनय के साथ गायन में निपुण होना। बेहतरीन गायकी के लिए उन्हें उपमहाद्धीप की मल्लिका-ए-तरान्नुम के नाम से नवाजा गया था।

तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी…. सुरैया जी का ये गीत एक अलग संगीत की दुनिया में ले जाता है। लोग आज तक इस गीत को सुनते हैं, पसंद करते हैं। नैंनो में प्रीत है, होठों पे गीत है, मैं तेरी तू मेरा बालम, तेरी मेरी जीत है… ये गीत सुरैया जी का उस दौर का सबसे फेमस गीत रहा है। उन दिनों प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने भी सुरैया के हुनर की तारिफ की थी। सुरैया जी एक ऐसी शख्सियत है, जिनका नाम अमर हो चुका है। लोगों के बीच न होते हुए भी वे दिलों में राज करती हैं।