भक्ति काल के प्रमुख कवि कबीरदास जी की रचनाओं की गुंज युगों-युगों से ब्रहांड में चली आ रही है। मनुष्य को सही मार्ग दिखाने वाले ये दोहे युवा, बुजुर्ग सभी की पसंद हैं। हिन्दी साहित्य के महान कवि, विचारक एवं समाज सुधारक थे संत कबीर दास। इनकी रचनाओं में ब्रज हरियाणवी,हिन्दी,पंजाबी, राजस्थानी और कई भाषाओं को पढ़ा जा सकता है। आज संत कबीर दास जी की जयंती पर जानते हैं उन्हें थोड़ा करीब से..
संत कबीर दास जी का जन्म 1398 में लहरतारा ताल काशी में हुआ था। इनके पिता का नाम नीरू और माता नीमा थी। इनका विवाह लोई जी से हुआ था, पुत्र कमाल और पुत्री कमाली थी। भारत में जब भी धर्म, भाषा, संस्कृति की चर्चा होती है तो सबसे पहले कबीरदास जी का जिक्र होता है। अपने दोहों के जरिए इन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने की कोशिश की जो पूर्णता सफल रही, जिनका प्रभाव आज तक हमें देखने को मिलता है। कबीर जी का पालन-पोषण बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था। काशी के प्रसिद्ध विद्वान रामानंद जी उनके गुरु थे। संत कबीर दास जी की मृत्यु मगहर उत्तर प्रदेश में हुई थी। जहां उनकी समाधि बना दी गई। आज उन्हीं के सम्मान में उत्तर प्रदेश के एक जिले का नाम संत कबीर नगर रखा गया है।
कबीर जी के कुछ खास दोहे..
1-दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय, जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय…
इस दोहे में कबीर जी ने ये बताया है की, मनुष्य भगवान को दुख में याद करता है, यदि वह सुख में भी भगवान से जुड़ा रहे तो, दुख होगा ही नहीं।
2-गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लांगू पांय, बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय
अपने इस दोहे में कबीर जी ने बताया है, कि आपके सामने यदि गुरु और भगवान दोनों खड़े है, तो आप किसके पैर पहले छुएंगे? कबीर जी के अनुसार गुरु से ही ईश्वर का ज्ञान प्राप्त होता है, तो सबसे पहले उन्हें ही प्रणाम करना चाहिए।
3- जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहन जो म्यान
समाज में जाति का इतना प्रभाव फैला है, कि मनुष्य इंसान को ही भूला देता है, इस पर कबीर का ये दोहा सबसे अच्छा संदेश देता है, की जाति से बड़ा ज्ञान होता है, क्योंकि तलवार का मूल्य अधिक होता है, ना की मयान का।