2 अप्रैल से चैत्र नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं, यह विक्रम संवत 2079 है, जो शनिवार से शुरु हो रहा है, अर्थ्रात इसके राजा शनि है। अलग-अलग राज्यों में इसे कई तरह से मनाया जाता है। किसी के लिए ये चैत्र नवरात्र है, तो किसी के लिए गुड़ी पड़वा तो कहीं उगादी पर्व, तो कहीं भगवान झूलेलाल का जन्मउत्सव। नाम अलग है, पर उद्देश्य एक, नववर्ष उत्सव का दिन। इस दिन से नए कार्य शुरु किए जाते हैं, शरीर और मन को आने वाली संभावनाओं और स्थिती में संतुलित रहने के लिए तैयार किया जाता है। नवरात्रि का संबंध सिर्फ पूजा पाठ से नहीं होता इसका सीधा कनेक्शन हैं, हमारे शरीर और मन से। तो जानते हैं, क्या है, नवरात्रि में जागरण का महत्व और कैसे संतुलित करते हैं मन को।
मां दुर्गा को शक्ति स्वारुपा माना गया है, उनके स्मरण मात्र से मन मजबूत होता है।मां के इसी गुण को अपनाने का समय होता है नवरात्र। 9 दिनों में पहले तीन दिन हम तमोगुण प्रकृति की आराधना करते है, दूसरे तीन दिन रजोगुण और आखिरी तीन दिन सतोगुण प्रकृति की आराधना का महत्व है। अंतिम दिन हम विजयोत्सव मनाते हैं। प्रकृति के साथ चेतना के उत्सव को नवरात्र कहते हैं। अब जानते हैं कि, क्या है इन गुणों का अर्थ।
संसार पांच तत्वों से मिलकर बना है और इनके तीन गुण है, सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। समय-समय पर ये गुण हमारे अंदर नजर आते हैं, जैसे सतोगुण हमारे शरीर और वातावरण में होता है, तो हम प्रफुल्लित होते हैं सजग और बोधपूर्ण नजर आते हैं। रजोगुण की प्रधानता में हमारी उत्तेजना, विचार, इच्छाएं बढ़ जाती है, बहुत कुछ करने की इच्छा होती है, ऐसे में या तो हम बहुत खुश होते हैं, या बहुत उदास। तमोगुण प्रधान होने पर हम सुस्ती, आलस्य और भ्रम के जाल में फंस जाते हैं। तो इन्हीं गुणों को संतुलित करने का काम होता है नवरात्र में। जिस प्रकार शरीर में पानी, हवा की मात्रा तय है, उसी प्रकार गुणों का संतुलन बहुत जरुरी है। एक भी यदि ज्यादा कम होता है, तो शरीर रोगों का शिकार हो जाता है। नवरात्रि में जागरण से अर्थ होता है, नौ रात्र जागकर मां शक्ति देवी की आराधना करने से, जिससे मन मजबूत हो, रात में ध्यान, साधाना करने से दिमाग की एकाग्रता बढ़ती है।
जिस प्रकार देवी मां प्रकृति में हो रहे कार्यों के लिए अपने अलग-अलग रुपों को व्यक्त करती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के भी हर भावनाओं को व्यक्त करने के विभिन्न रुप और गुण होने चाहिए। देवी एक पर रुप कई। इसी बात से समझे की मनुष्य एक पर भावनाओं का पूरी तरह संतुलन। जीवन में संतुलन होना बहुत जरुरी है। हमेशा कोई हंसी खुशी नहीं रह सकता ना ही कोई हमेशा दुखों का शिकार नहीं हो सकता, बैलेंस होना जरुरी है।
वैज्ञानिक आधार पर समझें नवरात्र को
जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, तो एक साल की चार संधियां होती है। जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र आते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावनाएं होती है। यही वजह है, की इन नौ दिन शरीर को व्रत उपवास कर रोगों से लड़ने के लिए तैयार किया जाता है। जिस प्रकार घर की सफाई हर माह में एक बार होती है, उसी प्रकार शरीर को शुद्ध बनाने की प्रक्रिया 6-6 माह में की जाती है। 9 दिन सही आहार और भक्ति के सात ध्यान करने से तन और मन दोनो मजबूत होता है।
रात्रि की महत्व
हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्रि उत्सवों को रात में ही मनाए जाने की परंपरा है। वैज्ञानिक तौर पर भी समझा जाए तो दिन की अपेक्षा रात्र में शांत वातावरण होता है, दिन में तेज आवाज में भी बात सुनाई नहीं देती पर रात्रि में मध्धम ध्वनि काम कर जाती है। इसलिए कहा जाता है, नौ दिन मां की आराधाना रात्रि जागरण के साथ की जाए तो देवी शक्ति देती है, मन को मजबूत बनाती है। शांत वातावरण का गहरा प्रभाव पड़ता है मन पर।
खुद के शरीर पर अधिकार पाने के लिए भी काम करना होता है, तभी हम विश्वास के साथ जीवन की हर मुश्किलों से पार हो सकते हैं। इसी क्षेत्र में काम करने का उत्सव है, नवरात्र। तो नौ दिन शरीर को क्या देना है, मन के लिए किस तरह का आहार सही है, इसका चयन करें। नौ दिन व्रत करें, निश्चय करें की आने वाली चुनौतियों से किस तरह सामना किया जा सकता है। थोड़ा समय ध्यान करें, मां दुर्गा की शक्ति के आगे कोई मुश्किल, परेशानी बड़ी नहीं हैं। शक्ति तभी हासिल कि जा सकती है, जब हमारा शरीर हमारी सोच के अनुसार काम करें, हमारे मन पर हमारा हक हो, किसी और के कहने पर हमें गुस्सा या हंसी ना आए। सुख-दुख की अवस्था में हम एक जैसी सामानता बनाएं रखें। संतुलन स्वरुपा मां दुर्गा को प्रणाम।
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