भारत ने लगाया चावल के निर्यात पर प्रतिबंध, इसका दुनिया पर पड़ेगा कैसा असर

भारत में खाने की बात करें तो चावल(Rice) के बिना लोगों का खाना पूरा नहीं होता है। भारतवंशी लोगो चाहे किसी भी देश में हो चावल(Rice) खाए बिना रह नहीं पाते, लेकिन पिछले कुछ महीनों से लगातार चावल(Rice) की कीमत में तेजी देखी जा रही है।

इन बढ़ती कीमत को देखते हुए सरकार ने चावल की कीमतों पर नियंत्रण पाने के लिए चावल के निर्यात पर सख्त फैसला लिया है। सरकार ने बासमती चावल को छोड़कर सभी सफेद चावलों के निर्यात पर रोक लगा दी है। बासमती चावल और उसना चावल को छोड़कर सभी चावलों के निर्यात पर पाबंदी लगाई गयी है। विश्व में चावल के कुल निर्यात का 40 फीसदी निर्यात भारत करता है। ऐसे में निर्यात पर लगे बैन से कई देशों की चिंताएं बढ़ने लगी है।

चावल (Rice) का निर्यात विश्व में कौन-कौन से देश करते हैं rice export ban by india

दुनिया का सबसे ज्यादा चावल निर्यातक देश भारत है। जो वैश्विक चावल व्यापार का 40% से अधिक हिस्से का व्यापर करता है। इसके साथ ही चीन के बाद भारत चावल उत्पादन में भी दूसरा स्थान रखता है। चीन विश्व में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक है पर चीन अपने उत्पादन का लगभग 100 प्रतिशत का उपभोगता भी है। भारत के बाद थाईलैंड दुनिया में चावल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, जो दुनिया का लगभग 15 प्रतिशत का निर्यात करता है। वहीं वियतनाम इस लिस्ट में तीसरे नम्बर पर आता है। आपको बता दें की भारत का चावल चीन, थाईलैंड और वियतनाम भी आयात करते हैं।

भारत ने क्यों किया चावल(Rice) के एक्सपोर्ट को बैन?

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अमेरिकी महाद्वीप पर मौषम में देखे जा रहे बदलाव को देखते हुए भारत ने यह कदम उठाया है। अमेरिका में मौसम में आये इस बदलाव को अल नीनो कहा जाता है। अल नीनो 2 से 7 साल में कभी भी आ सकता है इसका कोई खास पैटर्न नहीं है। अमेरिका में अल नीनो के चलते तापमान काफी बढ़ जाता है और इस बढ़े हुए तापमान का असर एशियाई महाद्वीप तक देखा जाता है। जिस साल अमेरिका में अल नीनो का प्रभाव देखा जाता है उस साल भारत सहित पुरे एशिया में बारिश की कमी और चक्रवाती तूफ़ान देखने को मिलते हैं।

क्या होता है अल नीनो?

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अल नीनो इफेक्ट मौसम संबंधी एक विशेष घटना की स्थिति है, जो मध्य और पूर्वी प्रशांत सागर में समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होने पर बनती है। आसान भाषा में समझे तो इस इफ़ेक्ट की वजह से तापमान काफी गर्म हो जाता है। इसकी वजह से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाला गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है, जिससे भारत के मौसम पर असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में भयानक गर्मी का सामना करना पड़ता है और सूखे के हालात बनने लगते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो अल नीनो वातावरण और महासागर के बीच एक कॉम्प्लेक्स इंटरेक्शन के कारण होता है।

अल नीनो से कैसे प्रभावित होती है दुनिया?

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इस प्रभाव वाले वर्षों में गर्मी के कारण पृथ्वी का तापमान भी बढ़ जाता है। अल नीनो से सामान्य तौर पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का मौसम प्रभावित होता है। सामान्य तौर पर जो मूसलाधार बारिश दक्षिण-पूर्व एशिया या पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में होनी चाहिए वह इस प्रभाव के कारण दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर होती है। इस बदलाव के कारण विश्व के विभिन्न देशों में सूखा और बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। सूखे और बाढ़ के कारण खाद्यान्न की ऊपज प्रभावित होती है।

रूस-यूक्रेन युद्ध भी है इसका एक कारण

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यूक्रेन दुनिया में गेंहू की आपूर्ति के लिए जाना जाता है। यूक्रेन अपने गेंहू का निर्यात काले सागर के द्वारा करता है। रूस और यूक्रेन के बीच इस निर्यात को लेकर काला सागर अनाज समझौता भी किया गया था, लेकिन रूस ने अचानक यह कहकर दुनिया को चौंका दिया है कि वह काला सागर अनाज समझौते को आगे नहीं बढ़ाएगा। यह समझौता इस बात की गारंटी थी की यूक्रेन से आने वाले अनाज के जहाजों को सुरक्षित रखा जाएगा। यह समझौता संयुक्त राष्ट्र संघ और तुर्की की मध्यस्थता से हुआ था।

भारत के चावल(Rice) बैन से कौन होगा प्रभावित

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जब से भारत ने चावल के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध घोषित किया है। तब से अमेरिका सहित दुनियाभर अन्य देशों के सुपर मार्केट के बाहर भारतीयों सहित एशियाई लोगो की भीड़ देखी जा रही है। अमेरिकी सुपर मार्केट ने तो प्रति व्यक्ति 1 चावल पैकेट के फॉर्मूले को लागु कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में ये संभावना व्यक्त की गयी है कि भारत के चावल एक्सपोर्ट बैन का असर सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, इथोपिया, केन्या, कोंगो,सीरिया, पकिस्तान सहित कई और दूसरे देशों पर पड़ेगा। जहां कुछ देशों में भुखमरी के हालात भी बन सकते हैं।