श्रावण का दूसरा सोमवार, एक ऐसा दिन जब शिवालयों (Lord Shiva) में भक्तों की भीड़ को देखा जा सकता है। माना जाता है कि श्रावण के सोमवार को देवादि देव महादेव का जल अभिषेक करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते है और श्रावण में महादेव की पूजा करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।
कहते है शिव ही मोक्ष का रास्ता प्रशस्त करते हैं इसलिए महादेव शिव (Lord Shiva) को प्रसन्न करने के लिए केवल श्रावण ही नहीं बल्कि साल के सभी महीनों में शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में शिव भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन दक्षिण भारत में एक मंदिर ऐसा भी है जहां केवल मनुष्य ही पूजा करने नहीं आते बल्कि ऐसा माना जाता है कि देवी-देवता भी यहां शिव को प्रसन्न करने के लिए पहुँचते है।
यह प्रसिद्ध महादेव (Lord Shiva) मंदिर कोई ज्योतिर्लिंग तो नहीं है,पर कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहां कभी देवों के देव महादेव ने तांडव किया था। जहां परमेश्वर शिव के नटराज रूप की पूजा भवगान सुंदरेश्वर रूप में की जाती है, जहां माता पार्वती को मीनाक्षी अम्मा (माँ) माना जाता है। जी हां हम बात कर रहे हैं दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर की तो चलिए जानते है भवगान सुंदरेश्वर के इस प्रसिद्ध मंदिर की जुड़ी शिव-पार्वती रोचक कहानी को-
मदुरई को कहा जाता है दक्षिण का काशी
भारत के दक्षिणी प्रदेश तमिलनाडू के वैगई नदी के दाहिने तट पर बसा हुआ है प्राचीन और पवित्र नगर मदुरई। इस नगर में स्थित है मीनाक्षी देवी पीठ। यह मंदिर माँ पार्वती के मंदिरों में से सबसे अधिक पवित्र माना जाने वाला स्थल है। यह मन्दिर पांडियन राजाओं की राजधानी रह चुका है।
ढाई हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन इस नगर का नाम संस्कृत भाषा के ग्रंथों में मधुरा लिखा मिलता है। इसलिए इस स्थान को दक्षिण मथुरा भी कहा जाता है। मदुरई शताब्दियों से तमिल साहित्य और संस्कृति का केंद्र रहा है। इसका दक्षिण में वही स्थान है जो उत्तर भारत का विद्या के क्षेत्र में काशी (Lord Shiva) या बनारस का था। इसीलिए मदुरई को दक्षिण काशी भी कहते हैं। यह मंदिर तमिलनाडु के मुख्य आकर्षणों में से एक है।
भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है मीनाक्षी मंदिर
यह मंदिर द्रविड़ियन वास्तु कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। आयताकार क्षेत्र में बना यह मंदिर परिसर लगभग 45 एकड़ में फैला हुआ है, जो मदुरई के पुराने नगर में स्थित है। मंदिर में कुल 27 गोपुरम हैं जिन पर देवी–देवताओं और विभिन्न जीव-जंतुओं की बेशुमार रंग-बिरंगी आकृतियां बनी हैं। इसमें दक्षिण दिशा का गोपुरम सबसे विशाल है। जिसकी ऊंचाई 170 फुट है। इस गोपुरम से मदुरई नगर का दृश्य बड़ा मनोरम दिखता है।
मीनाक्षी मंदिर में प्रवेश द्वार के पास तीन परिक्रमा स्थल हैं। तीसरे परिक्रमा पथ में देवी मीनाक्षी के दर्शनों के लिए गर्भ गृह तक जाने का मार्ग है। मीनाक्षी मंदिर तमिलनाडु के कुछ ऐसे मंदिरों में से एक है जिसमें चार दिशाओं से चार प्रवेश द्वार हैं। इस मंदिर के भवन में लगभग एक हजार स्तंभ भी हैं। इस मंदिर के प्रदेश द्वार से लेकर खंभों तक सभी में विभिन्न देवताओं और देवी की छवियों को उकेरा गया है। मंदिर का गर्भ गृह 3500 वर्ष पुराना है। मीनाक्षी देवी की श्याम वर्ण की मूर्ति अत्यंत सजीव है। बहुमूल्य आभूषणों से सजी इस मूर्ति को देखकर श्रध्दालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
राजा मलयध्वज की कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी कंचन माला के साथ संतान प्राप्ति के लिए घोर तप कर भगवान महादेव को प्रसन्न किया शिवजी ने उन्हें कन्या संतान होने का वरदान दिया। तब स्वयं माता पार्वती अपने अंश से एक सूंदर कन्या रूप में प्रकट हुईं। माता पार्वती की अंश इस सूंदर कन्या के नेत्र अत्यधिक सुन्दर थे। इसलिए राजा मलयध्वज और रानी कंचन माला ने इनका नाम मीनाक्षी रखा। माता पार्वती रुपी इस कन्या से विवाह करने के लिए शिवजी ने सुंदरेश्वर का रूप लिया और मीनाक्षी से विवाह का संकल्प किया। तब उन दोनों का विवाह भगवान विष्णु ने संपन्न कराया।
भगवान विष्णु ने कराया था विवाह संपन्न
ऐसी मान्यता है कि इस विवाह में पूरी पृथ्वी के लोग उपस्थित थे। मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु स्वयं अपने स्थान वैकुण्ठ से इस विवाह के संचालन के लिए आ रहे थे लेकिन इंद्र के कारण भगवन विष्णु को समारोह में पहुंचने में देरी हो गयी। इसलिए विवाह का संचालन स्थानीय देव कूडल अझघ्अर के द्वारा पूर्ण कराया गया।विवाह संपन्न होने के बाद भगवान विष्णु आये और ऐसा देखकर क्रोधित हो गए और उन्होंने निर्णय लिया कि वे कभी भी मदुरई नहीं आएंगे और नगर की सीमा से लगे पर्वत अलगार कोइल में जाकर रहने लगे। भगवान विष्णु को देवी-देवताओं के द्वारा मनाया गया और बाद में उन्होंने मीनाक्षी और सुंदरेश्वर का विवाह संपन्न कराया।
नाराज़ भगवान विष्णु को मनाने का भी होता है उत्सव
मीनाक्षी देवी और सुंदरेश्वर भगवान का विवाह कराना और भगवान विष्णु जी के क्रोध को शांत करना, इन दोनों ही घटनाओं को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है जिसे – चितिरई तिरुविझा कहते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार मदुरई में सुंदरेश्वर का स्वयंभू लिंग था,और ऐसा माना जाता है कि स्वयं देवता उस स्वयंभू लिंग की पूजा करते थे।
शिव-पार्वती की प्रतिमा मोह लेतीं है मन
इस मंदिर में मीनाक्षी देवी और सुंदरेश्वर भगवान महादेव की आकर्षक प्रतिमा है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित देवी मीनाक्षी की प्रतिमा अपने दाहिने हाथ में एक तोते के साथ दिखाई देती हैं। ऐसा माना जाता है कि तीर्थ उन पांच स्थानों में से एक है जहां शिव ने तांडव किया था।
सुंदरेश्वर सदाशिव की प्रतिमा नटराज मुद्रा में स्थापित है। जिसमें नटराज भगवान शिव को दाहिना पैर उठा कर नाचते हुए दिखाया गया है और यह नटराज की बाकी छवि से बिलकुल अलग है क्योंकि नटराज की बाकी प्रतिमाओं में उनका बायां पैर उठा हुआ होता है। यह नटराज की विशाल प्रतिमा चांदी की वेदी में है। इस कारण से इसे वेल्ली अम्बलम् (रजत आवासी) कहते हैं।
मदुरई मनाता है मीनाक्षी सुंदरेश्वर के विवाह का उत्सव
यहाँ हर साल अप्रैल के महीने में “मीनाक्षी थिरुकल्याणम” या मीनाक्षी के दिव्य विवाह का त्यौहार बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। जहाँ लांखों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। यह उत्सव महिला वर्चस्व समारोह का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे मदुरै विवाह भी कहा जाता है। आपको बता दें कि यह उत्सव एक महीने तक चलता है जिसमें रथ महोत्सव और फ्लोट उत्सव जैसे कई कार्यक्रम शामिल होते हैं। नवरात्रि और शिवरात्रि के उत्सव भी यहां मनाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस त्यौहार को मनाने के लिए मनुष्य के साथ-साथ सभी देवी – देवतागण मीनाक्षी देवी और सुंदरेश्वर भगवान दिव्य विवाह के लिए मदुरई में उपस्थित होते हैं। कुछ अन्य त्यौहार जैसे शिवरात्रि और नवरात्रि इस मंदिर में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यहाँ वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।