Guru Purnima Special: टीचर्स के साथ लाइफ के इन गुरुओं को भी दें सम्मान

Guru Purnima – गुरु का हमारे जीवन में सबसे ऊंचा स्थान हैं, गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है और जहां ज्ञान नहीं वहां अंधकार ही अंधकार होता है। पुराणों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। उनके सम्मान में इस दिन को व्यास पूर्णिमा (Guru Purnima) भी कहा जाता है।

व्यक्ति के जीवन में गुरु की आवश्यकता हमेशा होती है, गुरु सिर्फ शिक्षा के द्वार पर नहीं मिलते बल्कि वो कही भी मिल सकते हैं। यहां इस बात का यह अर्थ है की “जीवन में हर अच्छी सीख देने वाला व्यक्ति गुरु हो सकता है”। जिनका सम्मान करना बहुत जरुरी है, जानते हैं हमारे जीवन के अलग-अलग गुरुजनों के बारे में..

Guru Purnima

हमारे शास्त्रों में वेदों के ज्ञान को सबसे अहम माना गया है। ऐसा कहा जाता है की चारों वेदों को पढ़ लिया जाए तो कुछ और पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है। वेदों के रचियता महर्षि वेदव्यास जी है और उन्होंने गुरु पूर्मिणा के दिन ही इनकी रचना की थी और इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास पड़ा।

मनुष्य के जन्म के पीछे कोई ना कोई लक्ष्य होता है, और उसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए उसे हर क्षेत्र का ज्ञान रखना होता है। विभिन्न क्षेत्रों के अलग-अलग अनुभवी जीवन के साथ हमारे गुरु की भूमिका निभाते रहते हैं। ये गुरु कौन-कौन हैं जानते हैं..

संस्कार की गुरु माता

Guru Purnima

हमारे जीवन में माता को जीवनदायिनी माना गया है, माता का ह्दय कोमल होता है वो बच्चे को स्नेह के साथ जीवन में आने वाली परेशानियों से उबरना सीखाती है।

आज के परिवेश में हम अधिकांशता: यही सोचते हैं की बच्चे को अच्छे स्कूल में डाल दो तो उसमें अच्छे संस्कार आ जाते हैं। पर यह सत्य नहीं है, विद्यालय हमें किताबी ज्ञान अर्जित करवा सकता है, पर संस्कार माता से ही मिलते हैं। संस्कारों से भरा व्यक्ति जहां भी जाता है अपनी पहचान खुद बना लेता है। तो माता रुपी गुरु की वंदना जरुर करते रहें।

अनुशासन के गुरु (Guru Purnima) पिता 

Guru Purnima

पिता मनुष्य के जीवन का वो पात्र है जो अनुशासित रहना सीखातें है। अनुशासन ना हो तो उन्नति संभव ही नहीं है। कुछ करने के इच्छा हो सभी में होती है, पर उसे पाने के लिए किन रास्तों से होकर गुजरना है इसके मार्गदर्शक पिता ही होते हैं। पिता का स्थान उस गुरु के समान के है जो मनुष्य को समय का महत्व समझाते हैं।

सामंजस्य का गुरु परिवार 

 

आगे बढ़ने के लिए लोगों से जुड़े रहने जरुरी है। ऐसे में इस बात को समझना होगा की जिस प्रकार मनुष्य के चेहरे और रंग अलग-अलग होते हैं उसी प्रकार विचारों में भी ‌विभिन्नता होती है। विचारों की ‌विभिन्नता को सम्मान देने की सीख परिवार से ही मिलती है। सरल शब्दों में समझा जाएं तो हर व्यक्ति को सुनने की क्षमता रखने का ज्ञान परिवार से मिलता है। एक अच्छा वक्ता होने से ज्यादा जरुरी होता है अच्छा श्रोता होना। तो परिवार रुपी इस गुरु का सम्मान बनाएं रखें।

घर के बाहर के गुरु मित्र 

mentor

जब शिक्षा, संस्कार, अनुशासन और श्रोता का गुण मनुष्य में आ जाता है तो उसे जरुरत होती है एक मंच की जहां वो अपने हुनर का प्रदर्शन कर सके। और यहां उसे कई सारे गुरु मिलते हैं, जो अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। इन विचारों के आदान प्रदान से नया अनुभव मिलता है। सफलता और असफलता का पाठ यहीं से मिलता है। जिस तरह जीत का स्वाद चखना जरुरी होता है उसी तरह हार का स्वागत करना आना भी जरुरी होता है। ये ज्ञान मित्र से ही मिलता है।

हमें अच्छा इंसान बनाने वाले इन सभी विशेष गुरुओं का सम्मान जीवनभर करना चाहिए। हम सभी को अपने पहली क्लास के टीचर याद रहते हैं पर हम कभी उनसे बात नहीं करते। हमारा एक कॉल उन्हें बहुत बड़ी खुशी दे सकता है। गुरुओं को अहसास दिलाना जरुरी होता है कि उनकी मेहनत हमारे लिए कितनी कामगार रही है। गुरु पूर्णिमा के इस शुभ अवसर पर आज अपने सभी गुरुओं को ये बताएं की उनका कितना अहम स्थान हैं। एक व्यक्ति की कामयाबी के पीछे कई हाथ लगे होते हैं तभी जाकर वो व्यक्ति सफलता की ऊंचाई पर पहुंच पाता है। अकेले कभी कुछ हासिल नहीं किया जा सकता।