आखिर क्यों अक्षय तृतीया पर किए गए दान का मिलता है विशेष लाभ..

भारतीय संस्कृति में अक्षय तृतीया का बहुत ही महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन बिना मुहूर्त के भी किसी भी कार्य का शुभारंभ किया जा सकता है फिर चाहे वह मुंडन या जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार पाणिग्रहण हो। इस वर्ष अक्षय तृतीया कब है और क्या है इसका वैदिक और सांस्कृतिक महत्व, जानिए…

इस वर्ष अक्षय तृतीया शनिवार 22 अप्रैल 2023 को है। अक्षय तृतीया को अकती या अखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदुओं और जैनियों द्वारा मनाया जाने वाला एक प्राचीन त्यौहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्षय तृतीया मनाई जाती है। अक्षय शब्द का अर्थ है कभी कम न होने वाला। इसलिए इस दिन कोई भी जप, यज्ञ, पितृ-तर्पण, दान-पुण्य करने का फल कभी कम नहीं होता और व्यक्ति के पास सदैव बना रहता है। साथ ही अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने का भी विशेष महत्व है।

अक्षय तृतीया पूजा का शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया 22 अप्रैल दिन शनिवार को सुबह 07:49 सुबह से होकर 23 अप्रैल 2023 को प्रातः 07:47 बजे तक रहेगी। वैसे तो अक्षय तृतीया पर आप पूरे दिन कभी भी पूजा पाठ और दूसरे शुभ कार्य शुरु कर सकते हैं, परन्तु आपको अक्षय तृतीया पर कुछ विशेष कार्य शुरु करने है या दिन के श्रेष्ठ मुहूर्त में पूजा करना है तो अक्षय तृतीया का विशेष मुहूर्त 22 अप्रैल सुबह 07:49 से शुरु होगा और 22 अप्रैल दोपहर 12:20 तक रहेगा। अक्षय तृतीया पर सोने की खरीदारी करना भी बहुत ही शुभ माना जाता है।

अक्षय तृतीया का महत्व


सौभाग्य और सफलता लाने के लिए लोग अक्षय तृतीया का त्यौहार मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने से भविष्य में समृद्धि और अधिक धन की प्राप्ति होती है। अक्षय शब्द का अर्थ है कभी कम न होने वाला। इसलिए यह माना जाता है कि इस दिन खरीदा गया सोना कभी कम नहीं होगा और बढ़ता रहेगा। अक्षय तृतीया के दिन, भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं जो हिंदू त्रिमूर्ति में संरक्षक भगवान हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन हुई थी। वैदिक ज्योतिषी भी अक्षय तृतीया को सभी हानिकारक प्रभावों से मुक्त एक शुभ दिन मानते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन कर सकते हैं ये शुभ काम


अक्षय तृतीया के दिन को नए बिजनेस, विवाह, महंगे निवेश जैसे सोने या अन्य संपत्ति में, और कोई नई शुरुआत करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन, विवाहित महिलाएं अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के साथ प्रार्थना करती हैं। पूजा के बाद अंकुरित चने, ताजे फल और मिठाई बांटे जाते हैं। यदि अक्षय तृतीया सोमवार (रोहिणी) को पड़ती है, तो त्यौहार और भी शुभ माना जाता है। इस दिन उपवास, दान और दूसरों की मदद करने की भी प्रथा है।

अक्षय तृतीया कथा


अक्षय तृतीया से संबंधित एक पौराणिक कथा में द्रौपदी, भगवान श्री कृष्ण और ऋषि दुर्वासा का उल्लेख मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि अपने निर्वासन के दौरान, राजसी पांडव भोजन की कमी के कारण भूखे थे और उनकी पत्नी द्रौपदी अपने कई संत मेहमानों के लिए प्रथागत आतिथ्य के लिए भोजन की कमी का सामना कर रहीं थीं। पांच पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने भगवान सूर्य की तपस्या की, जिन्होंने उन्हें एक कटोरा दिया। पात्र के साथ ही वरदान दिया था कि यह पात्र द्रौपदी के भोजन करने तक भरा रहेगा। एक बार ऋषि दुर्वासा की यात्रा के दौरान अपने साथी ऋषियों के साथ पांडवों की कुटिआ में पहुचे पर तब तक द्रौपदी भोजन कर चुकी थी। ऋषि दुर्वासा ने पांडवों से भिक्षा मांगी तब कुटिआ में खाने के लिए कुछ भी शेष नहीं था। तब वहां भगवान् श्री कृष्ण पहुंचे और ऋषियों को स्नान कर आने को कहा। जब सभी ऋषि स्नान को गए तो श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के भोजन के बाद पात्र में बचे हुए एक चावल के दाने को ग्रहण कर सभी ऋषियों की भूख को शांत कर पांडवों को ऋषि दुर्वासा के क्रोध से बचाया, इसके बाद भगवान कृष्ण ने पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी के लिए इस कटोरे को अक्षय बनाया, ताकि अक्षय पात्र हमेशा उनकी पसंद के भोजन से भरा रहे, यहां तक कि उससे पूरे ब्रह्मांड को तृप्त किया जा सकता था।

भगवान परशुराम के जन्म की कथा


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था। उनके पिता ऋषि जमदग्नि थे। ऋषि जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था। ऋषि जमदग्नि और रेणुका ने पुत्र की प्राप्ति के लिए एक महान यज्ञ किया। इस यज्ञ से प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उन्हें तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम जी ने जन्म लिया। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम राम रखा था। राम ने शस्त्र का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया और शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना फरसा यानि परशु प्रदान किया। इसके बाद वह परशुराम कहलाए।

भगवान परशुराम जी किसी धर्म, जाति, वर्ण या वर्ग विशेष के आराध्य ही नहीं बल्कि वे समस्त मानव मात्र के आराध्य है। इन्होंने सनातन संस्कृत के वैभव को बढ़ाने का कार्य किया है। भगवान परशुराम जी ने एक युद्ध में 21 प्रजा शोषक, धर्मांध, और आताताई राजाओं का संहार किया था। लेकिन दुष्प्रचार के कारण यह बताया गया कि इन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया भी कहते हैं। भगवान परशुराम का प्रकटोत्स्व हर साल अक्षय तृतीया को ही मनाया जाता है।

अन्य पौराणिक कथाएं


एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, वेद व्यास ने अक्षय तृतीया पर भगवान श्री गणेश को महाकाव्य महाभारत का पाठ करना शुरू किया था। एक अन्य कथा में कहा गया है कि इस दिन गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। यह भी माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के बचपन के मित्र सुदामा ने इसी दिन द्वारका में उनसे मुलाकात की थी और उन्हें असीमित धन की प्राप्ति हुई थी। साथ ही, यह भी माना जाता है कि इस शुभ दिन पर कुबेर को ‘धन के देवता’ के रुप में अपना धन और पद प्राप्त हुआ था।