महिला दिवस पर हर साल हम उनके सम्मान और उनकी योग्यताओं की बातें करते हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं आज भी वे अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। वैसे तो नारी खुद में पूरी है, इसके बावजूद उन पर सवाव उठते ही हैं। यदि गृहणी है तो भी यदि कामकाजी है तो भी सवाल उठते ही हैं। पुरुषों को जहां आगे बढ़ने का चैलेंज मिलता है वहीं महिलाओं को सबसे पहले शंका के घेरे में लिया जाता है। वे प्राप्त हुए कार्य को कर पाएंगी या नहीं या कर लिया तो सहानुभूति भरी नजरों का सामना करना पड़ेगा उन्हें। इसकी मुख्य वजह है पितृसत्ता से घिरा हमारा समाज। जो कभी पितृसत्ता से घिरा ही नहीं था, जी हां यहीं सच है हमारे भारत देश का.. तो जानते हैं आखिर जिस देश की धरती पर मां को हमेशा पूज्यनीय माना गया है, जहां नारी के हाथों में पूरे परिवार और राज्य के निर्णयों की बागडोर रही है, वहां ये पितृसत्ता का जन्म कब हुआ?
महर्षि व्यास जी के अनुसार चार युगों में बटां है जीवन चक्र सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। पहले तीनों युगों में कही भी पिता की सत्ता का जिक्र नहीं हुआ है। पहले तीनों युगों में स्त्री के एक हाथ में रसोई की करछी थी और दूसरे में तलवार। अर्थात वे गृहकार्य और युद्धकला दोनों में निपुण थीं। यहीं वजह थी की सतयुग, त्रेतायुग और द्वारयुग में नारी का सम्मान किया जाता था, उस काल में क्रूर पुरुष भी सामाज में नहीं थे। किसी की कोई बराबरी नहीं थी। भारत देश के राजसिंहासनों पर ऐसी-ऐसी रानियों ने राज किया है, जिनके एक हाथ में नवजात शिशु था तो दूसरे हाथों में राज्य की बागडोर थी। जिसका सबसे बड़ा उदाहारण है रानी लक्ष्मी बाई।
अब बात करते हैं कलयुग की जहां शुरुआत में तो सब सामान्य ही था, नारी का सम्मान भी होता था। पर कुछ बाहरी लोगों ने आकर, हमारे देश पर कब्जा करना शुरु कर दिया। हालात इस प्रकार के बने की स्त्रियों को घरों पर छुपाकर रखना पड़ा, क्योंकि अक्रमणकारी स्त्रियों को उठाकर वे जाने लगे थे, उनके साथ क्रूर व्यवहार करते थे। सालों-साल ऐसा चलता रहा। कई बड़े राजाओं ने इसका विरोध भी किया, कई स्त्रियों ने युद्ध भी लड़ा। सरोजनी नायडू, रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मी बाई जैसी कई स्त्रियों ने अपना सामर्थ भी दिखाया। उनके रहते तक हालात ठीक रहे पर उनके बाद फिर वहीं आक्रमणकारियों का आंदोलन चलता रहा। छोटी-छोटी बच्चियों की सुरक्षा भी बहुत बड़ी चुनौती बन गई। यहां से सोच जन्मी की बच्चियां पैदा ही ना हो। क्योंकि लोग मासूम बच्चियों की जान से होते खिलवाड़ नहीं देख सकते थे। जिनके घरों में लड़कियां थी उन्हें छुपाकर रखा जाने लगा, वे घरों की चार दीवारियों में ही बंद रहने लगी। एक लंबा अंतराल आ गया, यहां स्त्रियों को घरों के कार्य में ही व्यस्त रहना पड़ा।
कई युद्ध हुए, आक्रमणकारी को हमारें युद्धाओं ने देश से बाहर खदेड़ दिया। अब ये दौर था जहां देश में फिर से जनता खुलकर सांस ले सकती थी, नारी घरों से निकलकर आंगन में, आंगन से निकलकर मेलों में, बाजारों में नजर आने लगी। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, उनकी स्थिति अब बिगड़ चुकी थी, वे सिर्फ गृहकार्य के लिए सबसे बेहतर समझी जाने लगी। नारी तलवारबाजी, युद्धकला से कोसों दूर हो चुकी थी। ये वो समय था जिसे पितृसत्ता का नाम दिया जाने लगा।
बात सिर्फ इतनी सी है कि, हां समाज नारी की काबिलियत को भूल चुका है, पर वो आज भी उतनी ही सक्षम है जितनी पहले तीनों युगों में थी। बस कुछ अंतराल की वजह से वे पीछे हो चुकी हैं, तो नारी शक्ति को गुजरे वक्त को देखकर आगे बढ़ते रहना चाहिए। क्योंकि जिस प्रकार सूरज का कार्य है रोजाना उगना उसी प्रकार दोनों वर्गों को भी रोजाना उगना पड़ेगा। एक कम ज्यादा नहीं हो सकता, नहीं तो जीवन की रेस में वह पिछड़ जाएगा। यहीं हुआ है नारी के साथ। जिसे कुछ कमजोर वर्गों ने उनकी कमी मान लिया, जबकि ये बिल्कुल भी सत्य नहीं है।
प्रेरणा के स्त्रोत बहुत से हैं, आज हर क्षेत्र में नारी अपनी पहचान बना चुकी है। नारी शक्ति को समझने के लिए आज गूगल ने खास डूडल तैयार किया है। जिसमें उसके अनेक रुप को बयां किया गया है। नारी को बस तैयार रहना है, की जब भी कोई दूषित मानसिकता ऊंगली उठाएं, उसे नजर अंदाज करके बस आगे बढ़ें।
क्रिकेटर मिताली राज ने एक जगह कहा था कि “जब आपका कोई सपना होता है, तो आप दुनिया के बारे में मत सोचिए बस सपने के लिए काम करिए”। बस उनकी इसी बात पर फोकस रहना जरुरी है। इनके जैसी लाखों-करोड़ों महिलाओं से प्रेरणा लें और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करें। हां समय लगेगा, पितृसत्ता वाली सोच को हटाने में पर ये असंभव तो नहीं है। जिस प्रकार बिमार जब तक मन से नहीं हारता तब तक जिंदगी भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। उसी तरह नारी को जरुरत है वो खुद पर फोकस करें, और अन्य चर्चाओं का जबाव अपने अनुभव और ज्ञान से दें। क्योंकि यदि नारी एक जीवन को जन्म दे सकती है तो वो कुछ भी कर सकती है, सृष्टि की रचना नारी से ही है। अपनी परवरिश के जरिए वो एक रोशन देश का निर्माण भी कर सकती है और उसे नाश भी कर सकती है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हर नारी को बहुत बहुत बधाई और सभी को नमन।