क्यों सभी ज्योतिर्लिंगों में सबसे ख़ास हैं काशी के विश्वनाथ

महादेव जिन्हे लोग भोलेनाथ, शिव, शिवशंकर और न जाने कितने ही नामों से जानते है। ऐसा ही अनेक नामों में से एक है बाबा विश्वनाथ। जिसे लोक काशी विश्वनाथ नाम से भी जानते हैं, जितने नाम महादेव के है उसी तरह कशी को भी लोग अलग अलग नामों से पुकारते है जैसे मंदिरों का शहर, भारत की धार्मिक राजधानी, भोलेनाथ की नगरी, देशी की सांस्कृतिक राजधानी, इस शहर के जितने नाम उतने ही आयाम हैं। तभी तो इतनी खास है काशी कि हर कोई बस खिंचा चला आता है। एक ओर कल-कल बहती गंगा तो दूसरी ओर अपने विराट स्वरूप में बाबा विश्वनाथ। बाबा विश्वनाथ से काशी का रिश्ता आदिकाल से चला रहा है। पुराणों में कई जगह काशी विश्वनाथ मंदिर का संदर्भ मिलता है कई धार्मिक ग्रंथ महादेव के काशी में बसने की कहानी कहते हैं तब से लेकर अब तक बाबा विश्वनाथ काशी की पहचान का हिस्सा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, 12 ज्योतिर्लिंगों में सातवां ज्योर्तिलिंग माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि काशी नगरी महादेव के त्रिशूल पर बसी है। हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। तो चलिए जानते है बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा

शिवजी को पसंद आई काशी नगरी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के बाद से कैलाश पर्वत पर रहते थे। एक दिन माता पार्वती ने कहा कि जिस तरह सभी देवी-देवताओं के अपने घर हैं, उस तरह हमारा घर क्यों नहीं है। रावण ने तो लंका को ले लिया है इसलिए हमको दूसरी जगह के बारे में सोचना चाहिए। शिवजी को दिवोदास की नगरी काशी बहुत पसंद आई। निकुंभ नामक शिवगण ने भगवान शिव के लिए शांत जगह के लिए काशी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। ऐसा करने से राजा को बहुत दुख पहुंचा। राजा ने ब्रह्माजी की तपस्या की और उनको इस बारे में जानकारी देकर दुख दूर करने की प्रार्थना की। दिवोदास ने बोला कि देवता देवलोक में रहें, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्माजी के कहने पर शिवजी काशी को छोड़कर मंदराचल पर्वत पर चले गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। उसके बाद काशी महादेवजी का स्थाई निवास हो गया और यहां आकर भगवान शिव विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। इन्हे ही अब हम बाबा विश्वनाथ के नाम से भी जानते है

काशी को लेकर एक और मान्यता
काशी को लेकर एक मान्यता भी है। एक बार भगवान शिव ने अपने भक्त को सपने में दर्शन दिए और कहा कि तुम जब सुबह गंगा में स्नान करोगे, तब तुमको दो शिवलिंगों के दर्शन होंगे। उन दोनों शिवलिंगों को तुम्हे जोड़कर स्थापित करना होगा तब दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी। तब से ही भगवान शिव माता पार्वतीजी के साथ यहां विराजमान हैं।

भगवान विष्णु ने की थी तपस्या
काशी को सृष्टि की आदिस्थली भी कहा जाता है। एक मत के अनुसार, भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि की कामना के लिए तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को दर्शन दिए और सृष्टि के निर्माण और संचालन के लिए कुछ उपाय भी बताए। जहां भगवान शिव प्रकट हुए वहां आज भी शिवलिंग की पूजा की जाती है। और जब भगवान विष्णु अपने चातुर्मास के शयनकाल में होते है तब भगवान शिव काशी से ही विश्व का संचालन करते है। और इसलिए काशी के ज्योतिर्लिंग को विश्वेश्वर या विश्वनाथ कहा जाता है।