काशी के मुख्य देवता: काशी कोतवाल
अगर आप कभी काशी गए हैं, तो शायद आपने सुना होगा, और अगर नहीं, तो हम आपको बताते हैं। काशी में काल भैरव का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस काल भैरव मंदिर की अपनी खास पहचान है। काल भैरव को भगवान शिव का अवतार माना जाता है।
कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ काशी के राजा हैं और काल भैरव (Kashi Kotwal) उनके कोतवाल, जो लोगों को आशीर्वाद भी देते हैं और सजा भी।
काशी के लोगों का मानना है कि काशी विश्वनाथ के बाद यदि कोई काल भैरव का दर्शन नहीं करता है तो उसकी पूजा अधूरी रहती है।
क्यों कहा जाता है काल भैरव को काशी कोतवाल?
जैसे हर शहर में एक कोतवाली होती है और वहां थानेदार बैठता है, वैसे ही काशी की कोतवाली में भी एक मुख्य कुर्सी होती है। लेकिन इस कुर्सी पर कोई इंसान नहीं, बल्कि बाबा काल भैरव विराजते हैं। थानेदार की कुर्सी बाबा के बगल में होती है, जिस पर थानेदार बैठता है।
इसी वजह से बाबा को काशी का कोतवाल कहा जाता है। काशी के लोग बाबा को अपनी शादी या अन्य विशेष अवसरों का पहला निमंत्रण पत्र चढ़ाते हैं, ताकि उनका काम अच्छे से हो और बाबा का आशीर्वाद बना रहे।
काशी कोतवाल (Kashi Kotwal) की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान् विष्णु की नाभि से एक कमल निकला जिससे ब्रह्मा जी प्रकट हुए, ब्रह्मा जी के पांच सर थे। एक बार की बात है भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी में यह विवाद हो गया कि दोनों में से श्रेष्ठ कौन है। इस विवाद को सुलझाने के लिए वे भगवान शिव के पास पहुंचे। महादेव के दोनों की परीक्षा ली, इस दौरान ब्रह्मा जी की के असत्य कथन से महादेव नाराज हो गए और उन्होंने काल भैरव को उत्पन्न किया।
काल भैरव ने ब्रह्मा जी का पाँचवां सिर काट दिया, जो उनके नाखूनों में फंस गया। इससे काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए वे तीनों लोकों की यात्रा पर निकल पड़े। जब वे काशी पहुंचे, तो ब्रह्मा जी का सिर उनके नाखूनों से अलग हो गया, और उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। इसके बाद शिव जी ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया।
काशी विश्वनाथ से पहले काशी कोतवाल की पूजा
ऐसी मान्यता है कि आज भी जब कोई भक्त काशी में काशी विश्वनाथ के दर्शन करने जाता है। तो उसे सबसे पहले काशी कोतवाल यानी बाबा काल भैरव (Kashi Kotwal) के दर्शन करने होते हैं। इसके बाद ही काशी विश्वनाथ के दर्शन माने जाते हैं। कहा जाता है कि काशी कोतवाल ही काशी के असली रक्षक हैं, और उनकी मर्जी के बिना काशी में कोई प्रवेश नहीं कर सकता।