संतान सप्तमी (Santan Saptami) व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत प्रत्येक साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को करने के पीछे विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कारण हैं।
यह व्रत उन माता-पिता द्वारा किया जाता है जो संतान सुख की कामना करते हैं। इसे करने से माना जाता है कि ईश्वर उनकी प्रार्थनाओं को सुनते हैं और उन्हें संतान सुख प्रदान करते हैं।
साथ ही इस व्रत को करने वाले माता पिता की संतान के स्वास्थ्य में वृद्धि के साथ लंबी उम्र और सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है। संतान सप्तमी व्रत का पालन करने से व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। यह व्रत व्यक्ति को धार्मिक कर्तव्यों के प्रति सजग करता है और भक्ति भाव को प्रबल करता है।
संतान सप्तमी व्रत का महत्व
वैसे तो हर व्रत का अपना खास महत्व होता है। जिसका फल व्रत करने वाले भक्त को मिलता है। लेकिन संतान सप्तमी एक ऐसा व्रत है जिसको करने से आपकी संतान के दुःख दूर होते है। इसलिए संतान सप्तमी व्रत कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
संतान सुख की प्राप्ति – यह व्रत विशेष रूप से उन माता-पिता के लिए किया जाता है जो संतान सुख की कामना रखते हैं। इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति के आसार बढ़ जाते हैं और संतान का स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि भी बढ़ती है।
संतान की लंबी उम्र और सुख – व्रत करने से संतान की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना की जाती है।
धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ – इस व्रत से व्यक्ति को मानसिक शांति, शुद्धता और भक्ति का अनुभव होता है।
संतान सप्तमी (Santan Saptami) व्रत विधि
संतान सप्तमी व्रत की विधि निम्नलिखित है:
स्नान और शुद्धता – व्रत के दिन प्रात: स्नान करके स्वच्छ और पवित्र वस्त्र पहनें।
पूजा की तैयारी – घर के पूजा स्थल को स्वच्छ करें और वहाँ एक लकड़ी की चौकी या आसन पर महादेव भगवान का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
व्रत की शुरुआत – व्रत के दिन सूर्योदय के समय भगवान महादेव की पूजा शुरू करें।
विशेष पूजा – संतान सप्तमी (Santan Saptami) व्रत में विशेष रूप से माता पार्वती, भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष पूजा सामग्री जैसे फूल, फल, मिठाई आदि का अर्पण करें।
उपवास – व्रत करने वाले यजमान पूरे दिन उपवास रखें। कुछ भक्त फल, दूध या अन्य हल्का आहार ले सकते हैं।
कथा सुनना – संतान सप्तमी व्रत की कथा सुनना भी महत्वपूर्ण है। कथा सुनने से व्रत का फल और भी अधिक होता है।
आरती और भजन – पूजा के बाद आरती करें और भगवान् का भजन कीर्तन करें।
प्रसाद वितरण – पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें और अंत में गरीबों या ब्राह्मणों को दान दें।
संतान सप्तमी की पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक बहुत ही धर्मपरायण और भक्त राजकुमार था जिसका नाम राजा सौमित्र था। राजा सौमित्र और रानी सुमित्रा बहुत ही धार्मिक और अपने धर्म के प्रति समर्पित थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। वे संतान सुख के लिए बहुत परेशान थे और इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए उन्होंने कई धार्मिक अनुष्ठान किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
राजा और रानी ने एक दिन निर्णय लिया कि वे भगवान गणेश की विशेष पूजा करेंगे। गणेश जी को विघ्नहर्ता और भाग्य का दाता माना जाता है, और वे संतान सुख की प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजा और रानी ने संतान सप्तमी के दिन गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा करने का निर्णय लिया।
संतान सप्तमी के दिन, राजा सौमित्र और रानी सुमित्रा ने पूरे दिन उपवास रखा और विशेष पूजा की। उन्होंने गणेश जी की मूर्ति को सुंदर वस्त्रों से सजाया और विभिन्न पूजन सामग्री जैसे फूल, फल, मिठाई आदि अर्पित की। उन्होंने गणेश जी के मंत्रों का जाप किया और विशेष रूप से संतान सुख की कामना की।
विघ्नहर्ता भगवान गणेश से मिला आशीर्वाद
राजा और रानी की सच्ची भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें आशीर्वाद दिया। भगवान गणेश ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनकी प्रार्थनाएँ सुन ली गई हैं और जल्द ही उन्हें संतान सुख प्राप्त होगा।
कुछ समय बाद, राजा सौमित्र और रानी सुमित्रा को एक सुंदर संतान प्राप्त हुई। उन्होंने गणेश जी के प्रति अपनी भक्ति और आभार को प्रकट किया।
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि संतान सप्तमी के दिन गणेश जी की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत और पूजा, माता-पिता की संतान के प्रति स्नेह और प्रेम को प्रकट करती है।
संतान सप्तमी व्रत के माध्यम से माता-पिता गणेश जी के आशीर्वाद से संतान सुख प्राप्त करने की कामना करते हैं। गणेश जी की पूजा करने से संतान के स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए भी शुभ फल प्राप्त होते हैं।