Ganesh Chaturthi : क्यों मनाया जाता है गणेश चतुर्थी का महापर्व ?

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) भारतीय हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है। जो भगवान गणेश के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

भगवान गणेश को सुख, समृद्धि, बुद्धि, और सौभाग्य के देवता माना जाता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्त इस पर्व को बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ इस त्यौहार (Ganesh Chaturthi) को मनाते हैं।

भगवान गणेश के जन्म की कथा

गणेश को शिव और पार्वती का पुत्र माना जाता है। जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि तथा सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनके जन्म की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण है। भगवान गणेश (Ganesh Chaturthi) के जन्म की कथा शिव और पार्वती के संबंधों से जुड़ी हुई है।
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कैलाश पर शिव गणों के साथ रहते हुए एक दिन पार्वती ने सोचा कि उनका एक पुत्र होना चाहिए, जो उनके साथ हमेशा रहे और उनकी रक्षा कर सके।
इस बात का विचार करते हुए जगत माता पार्वती ने संतान की उत्पत्ति के लिए एक विशेष रचना की। पहले उन्होंने एक बालक की मूर्ति का निर्माण किया।
माता पार्वती के हाथों से निर्मित मूर्ति में स्वतः ही प्राण आ गए। उन्होंने उस बालक को गणेश नाम दिया। गणेश एक सुंदर और आनंदमयी बालक के रूप में प्रकट हुए।

माता के आदेश का किया पालन

जब पार्वती स्नान करने के लिए गईं, तो उन्होंने गणेश (Ganesh Chaturthi) को दरवाजे पर खड़ा रहने के लिए कहा और किसी को भी अंदर आने से मना किया। भगवान शिव, जो पार्वती को देखने के लिए आए थे, उन्हें गणेश ने रोक दिया।
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भगवान शिव ने गणेश को पहचानने की कोशिश की, लेकिन गणेश ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया और उन्हें भीतर जाने से रोक दिया। इस पर भगवान शिव को आश्चर्य हुआ और उन्होंने गणेश से कहा कि वे उनके पति हैं और पार्वती से मिलने के लिए आए हैं।
परन्तु गणेश ने अपनी माँ की आज्ञा का पालन किया और भगवान शिव को अंदर जाने की अनुमति नहीं दी। शिव ने गणेश को देखा और उनकी भव्यता को देखकर बहुत प्रभावित हुए।
लेकिन गणेश ने जब बहुत कहने पर भी भगवान् शिव को माता पार्वती के भवन में प्रवेश नहीं करने दिया तब महादेव ने क्रोध में आकर अपने त्रिशूल से गणेश का मस्तक काट दिया।
जब गणेश का सिर समाप्त हो गया, तब भगवान शिव ने हाथी का सिर प्रदान किया ताकि गणेश का जीवन सुरक्षित रह सके।

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)  की तैयारी और उत्सव

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गणेश चतुर्थी के उत्सव की तैयारी एक महीने पहले ही शुरू हो जाती है। घरों और सार्वजनिक स्थानों पर गणेश की मूर्तियाँ सजाई जाती हैं। विभिन्न आकारों और डिज़ाइन की गणेश की मूर्तियाँ बाजार में उपलब्ध होती हैं। लोग अपनी पसंद के अनुसार मूर्ति को घर लाते हैं और उसे सजाते हैं।

पूजा विधि और अनुष्ठान

गणेश चतुर्थी के दिन सुबह उठकर स्नान करके नए वस्त्र पहनकर गणेश की पूजा की जाती है। पूजा में गणेश जी की मूर्ति को शुद्ध पानी, दूध, शहद, और घी से स्नान कराया जाता है। इसके बाद, उन्हें फूल, फल, मिठाई, और अन्य पूजा सामग्री अर्पित की जाती है। विशेष रूप से, मोदक का भोग अर्पित किया जाता है।

उत्सव के बाद विसर्जन

गणेश चतुर्थी के उत्सव का समापन गणेश विसर्जन के साथ होता है। विसर्जन का दिन गणेश चतुर्थी के दसवें दिन, अनंत चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन, गणेश की मूर्तियों को भव्य शोभायात्रा के साथ जलाशयों में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन के दौरान भजन-कीर्तन और नृत्य का आयोजन भी किया जाता है।

विसर्जन के बाद लोग गणेश जी की वापसी की कामना करते हैं और अगले साल फिर से गणेश चतुर्थी के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं।

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गणेश चतुर्थी का पर्व समाज में एकता और सौहार्द का प्रतीक है। इस पर्व के दौरान लोग मिलकर गणेश पूजा करते हैं, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इस पर्व का सांस्कृतिक महत्व भी बहुत अधिक है, क्योंकि यह भारतीय कला, संगीत और नृत्य का उत्कृष्ट प्रदर्शन भी प्रदान करता है।

गणेश चतुर्थी न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व लोगों को एक साथ लाता है और उनके बीच सामंजस्य स्थापित करता है।