साल 2023 में 93.50 लाख श्रद्धालुओं ने किए दर्शन, नए साल में बनेगा नया रिकॉर्ड

जम्मू और कश्मीर के समीप त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित मां वैष्णो देवी (Vaishno Devi) के दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। देवी के दर्शन के लिए लोग लंबी यात्रा पूरी करते हैं। वैसे तो यहां हर मौसम में भिड़ देखने को मिलती है पर इस साल आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या सबसे ज्यादा रही। जानकारी के अनुसार साल 2023 में 93.50 लाख श्रद्धालु वैष्णो धाम आए। इस आंकड़े ने 10 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है। अनुमान यह लगाया जा रहा है की नए साल की शुरुआत में ये आकंड़ा और अधिक बढ़ने वाला है। जिसकी खास वजह है, लोग नए साल की शुरुआत माता के दर्शन के साथ करते हैं।

कहां स्थित है वैष्णो देवी मंदिर

Vaishno Devi

भारत के राज्य जम्मू-कश्मीर के जम्मू जिले में कटरा नगर में स्थित है वैष्णो देवी (Vaishno Devi) मंदिर। जिसका निर्माण लगभग 700 साल पहले एक ब्राह्मण पुजारी पंडित श्रीधर ने कराया था। मंदिर 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर, कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दुनियाभर से भक्त यहां मां वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आते हैं।

दान की एकत्रित राशि से चलता है मंदिर 

यह मंदिर माता वैष्णो देवी (Vaishno Devi) श्राइन बोर्ड की देखरेख में चलता है। इस बोर्ड का गठन साल 1986 में किया गया था। बोर्ड की टीम मंदिर से जुड़े हर कार्य को करती है। वैष्णों देवी मंदिर में दान में मिले पैसों से कार्य किया जाता है। मंदिर की साफ सफाई से लेकर विकास कार्यों के सभी खर्चे दान में एकत्रित धनराशि से किए जाते हैं। वैष्णो देवी धाम की यात्रा में श्रद्धालुओं को भक्ति और प्रकृतिक सुंदरता दोनों का अनुभव होता है।

10 साल पुराना रिकॉर्ड टूटा, नए साल में और भक्त करेंगे दर्शन

श्राइन बोर्ड के अनुसार ही साल 2023 में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 93.50 लाख रही है। इससे पहले साल 2013 में 93.24 लाख श्रद्धालुओं ने माता वैष्णोदेवी के दर्शन किए थे। आने वाले नए साल की शुरुआत में ये आकड़ा और भी बढ़ने की संभावना है। जिसके चलते वैष्णोधाम में सुरक्षा और व्यवस्था के अधिक इंतजाम किए जा रहे हैं। श्रद्धालुओं को इस धाम के दर्शन करने में किसी प्रकार की परेशानी ना हो ये सुनिश्चित किया जा रहा है।

मंदिर से जुड़ी विशेष मान्यता  

Vaishno Devi

कथाओं के अनुसार वैष्णो माता का जन्म दक्षिणी भारत के रत्नाकर परिवार में हुआ था। माता के जन्म से पहले उनके माता-पिता लंबे समय तक नि:संतान रहे। बताया जाता है कि माता का जन्म होने से एक रात पहले उनके माता ने वचन लिया था। उनका वचन था कि वो बालिका जो भी चाहे वे उन्हें करने देंगी, उसके रास्ते में वे नहीं आएंगी। बचपन में माता वैष्णो देवी का नाम त्रिकुटा था। बाद में उनका जन्म भगवान विष्णु के वंश से हुआ, जिसके कारण उनका नाम वैष्णवी पड़ा।

मान्यताओं के अनुसार माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रुप में मानव जाति कल्याण के लिए जन्म लिया। वे एक सुंदर राजकुमारी के अवतार में धरती पर आयीं। 9 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता से तपस्या की आनुमति ली। त्रिकुटा पर्वत पर उन्होंने कठिन तपस्या की। सबसे पहले वे समुद्र किनारे तप करती रहीं। वे भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होकर तपस्या करती रहीं।

माता के परम भक्त कि निशानी है ये मंदिर 

एक बार मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर और उनकी पत्नी ने माता के आदेश पर भंडारे का आयोजन करवाया। श्रीधर नि:संतान होने से दु:खी रहते थे। माता के आदेश पर श्रीधर के भोज में सभी गांववासी पधारे। इस भोज में गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ भी पहुंचे। वैष्णो माता (Vaishno Devi) कन्या के रुप में सभी को भोजन परोसती रहीं। पर भैरवनाथ ने कन्या से कहा उन्हें खीर नहीं मांस चाहिए। तो कन्या ने उन्हें समझाया कि यह ब्राम्हाण का भोज है। भैरवनाथ नाराज होकर कन्या पर क्रोध करने लगे। माता वैष्णवी भैरवनाथ के छल को समझ गई वायु रुप में त्रिकुटा पर्वत की ओर निकल गईं।

Vaishno Devi

भैरवनाथ , माता का वध करने के लिए पीछा करता रहा। माता ने इस दौरान 6 माह तक त्रिकुटा पर्वत की गुफा में तपस्या की। इस दौरान माता के द्वार पर प्रभु राम भक्त हनुमान जी ने भैरवनाथ से युद्ध किया। तपस्या के बाद माता ने गुफा की दूसरी ओर से रास्ता निकाला और महाकाली का रुप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया।

वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ। वह माता से क्षमादान की भीख मांगने लगा। माता वैष्णो देवी जान गईं, भैरव नाथ मोक्ष की इच्छा से उनके पीछे आया था। तभी माता ने उन्हें ये वचन दिया की जो लोग मेरे दर्शन करने आएंगे उनकी यात्रा तभी सफल मानी जाएगी जब वे भैरवनाथ के दर्शन भी करेंगे।

भैरवनाथ के दर्शन से पूरी होती है यात्रा 

Mata Rani

कठिन तप की ज्योत से और भैरवनाथ के वध के बाद माता का शरीर तीन दिव्य ऊर्जा में बंट गया। वे महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के सूक्ष्म रुप में विलीन हो गईं। तभी ये इस मंदिर में उनके इस रुप के दर्शन किए जा रहे हैं। और जिस जगह भैरवनाथ का सिर कटकर गिरा था। वहां बाबा भैरवनाथ मंदिर के दर्शन कर भक्त अपनी यात्रा पूरी करते हैं।